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जी 20 की भारत की अध्यक्षता – भारत के विकास के लिए अवसर- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह तथा भारत, अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से जुड़े समझौते।
जी 20 की भारत की अध्यक्षता चर्चा में क्यों है?
- लगभग तीन माह में, भारत पहली बार 1 दिसंबर, 2022 से 30 नवंबर, 2023 तक जी-20 समूह (G20) के वर्ष भर के अध्यक्ष का पद ग्रहण करेगा, जिसका समापन 2023 में भारत में G20 शिखर सम्मेलन के साथ होगा।
जी-20 के बारे में
- जी-20, 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की सरकारों एवं केंद्रीय बैंक के गवर्नरों का एक अंतरराष्ट्रीय मंच है।
- इसका गठन 1999 में किया गया था।
विशेषताएं
- G20 अर्थव्यवस्थाएं सकल विश्व उत्पाद (ग्रॉस वर्ल्ड प्रोडक्ट/GWP) का लगभग 85 प्रतिशत, विश्व व्यापार का 80 प्रतिशत हिस्सा गठित करती हैं।
- जी-20 राष्ट्रों की सरकारों के प्रमुख समय-समय पर शिखर सम्मेलनों में भाग लेते हैं ताकि समस्याओं से निपटा जा सके अथवा विश्व को चिंतित करने वाले मुद्दों का समाधान किया जा सके।
- समूह वित्त मंत्रियों एवं विदेश मंत्रियों की अलग-अलग बैठकें भी आयोजित करता है।
उद्देश्य
- समूह का गठन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता को प्रोत्साहित करने से लेकर संबंधित नीतिगत मुद्दों के अध्ययन, समीक्षा एवं उच्च स्तरीय चर्चा को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से किया गया था।
- फोरम का उद्देश्य मौद्रिक, राजकोषीय एवं वित्तीय नीतियों के बेहतर समन्वय द्वारा भुगतान की समस्याओं तथा वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल के लिए पूर्व-कार्रवाई करना है तथा उन मुद्दों का समाधान करना चाहता है जो किसी एक संगठन की जिम्मेदारियों से परे हैं।
चुनौतियां
- भारत के पास एक स्पष्ट वैश्विक वित्तीय कार्यसूची होनी चाहिए।
- देश में बौद्धिक, आर्थिक, प्रबंधकीय एवं प्रशासनिक रूप से जी-20 वर्ष का नेतृत्व करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
- भू-राजनीतिक रूप से, भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक जुड़ा हुआ है किंतु भौगोलिक आर्थिक रूप से कम जुड़ा है एवं विश्व बैंक, आईएमएफ, विश्व व्यापार संगठन तथा विदेशी निवेश के मुद्दों पर इसका संकीर्ण ध्यान स्पष्ट रूप से इंगित होता है।
- भारत के पास वैश्विक वित्तीय विनियमों के पुनर्गठन, सेवाओं एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था में व्यापार के लिए एक नवीन संरचना के डिजाइन एवं वित्तीय प्रवाह में पारदर्शिता के लिए बेहतर सीमा पार मानकों की स्थापना जैसे मुद्दों पर योगदान करने के लिए बहुत कुछ है।
- भारत को संगठनात्मक चुनौतियों का समाधान करना होगा एवं आधारिक अवसंरचना, प्रबंधन तथा बौद्धिक अंतराल को दूर करना होगा।
भारत मेज पर क्या ला सकता है?
- अपने संतुलित रुख को बनाए रखते हुए, भारत को रूस एवं यूक्रेन के मध्य शांति वार्ता प्रारंभ करके की दोनों देशों के बीच स्थिति को बेअसर करने की आवश्यकता है।
- अब समय आ गया है कि भारत एक पारदर्शी नई आर्थिक व्यवस्था के समर्थन में अपनी आवाज उठाए एवं एक समृद्ध तथा न्यायपूर्ण विश्व का निर्माण करे क्योंकि विभिन्न देशों से कुछ वस्तुओं पर अनुचित प्रतिबंध राज्यों के मध्य वाणिज्य को सीमित करता है जब व्यापार स्वतंत्रता मौजूद होती है।
- वैश्विक एजेंडा निवेश की ओर प्रवृत्त है, जबकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आर्थिक विविधीकरण, विश्व को स्थायी रूप से शहरीकरण करने एवं हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था तथा नवीन फसल किस्मों को मानव कल्याण एवं वैश्विक जलवायु परिवर्तन दोनों के उत्तर के रूप में लाने के लिए प्रेरक शक्ति है।
- डिजिटल-सूचना-प्रौद्योगिकी क्रांति की क्षमता का उपयोग करने के लिए डिजिटल पहुंच को “सार्वभौमिक सेवा” के रूप में पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है जो उपलब्ध विशिष्ट अवसरों को साझा करने के लिए भौतिक संपर्क से परे जाती है।
निष्कर्ष
भारत के राष्ट्रपति पद को नवीन वास्तविकताओं का उत्तर देने की क्षमता एवं ऊर्जा के साथ समूह को छोड़ना चाहिए तथा इसे एक नवीन एवं मजबूत संस्थागत वास्तुकला के माध्यम से भविष्य के लिए तैयार बहुपक्षवाद का निर्माण करना चाहिए।