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भारत की सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट समस्या, चुनौतियां एवं आगे की राह

भारत की सौर पीवी अपशिष्ट समस्या: ये परित्यक्त अथवा अनुपयोगी सौर पैनल एवं घटक हैं, जो तब उत्पन्न होते हैं जब सौर पैनल अपने उपयोगी जीवन के अंत तक पहुंच जाते हैं या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2023 एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 3- प्रदूषण एवं भारत तथा विश्व में प्रदूषण को समाप्त करने के लिए विभिन्न नीतियां एवं कार्यक्रम) के लिए भारत की सौर पीवी अपशिष्ट समस्या भी महत्वपूर्ण है।

 

भारत की सौर पीवी अपशिष्ट समस्या चर्चा में क्यों है?

हाल के वर्षों में, भारत में नीति निर्माताओं ने एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने तथा कुशल अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास किया है। हालांकि, सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) उद्योग में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए अभी भी स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी है।

भारत में सौर पीवी अपशिष्ट

भारत में नवंबर 2022 तक लगभग 62 गीगा वाट की स्थापित क्षमता के साथ विश्व स्तर पर सौर फोटोवोल्टिक (PV) प्रणालियों  का चौथा सर्वाधिक वृहद अभिनियोजन है। हालांकि, इसका यह भी अर्थ है कि भविष्य में संभावित सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट की एक बड़ी मात्रा है।

  • 2016 में अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2030 तक 50,000 से 325,000 टन फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट के बीच कहीं भी उत्पन्न हो सकता है तथा यह संख्या 2050 तक चार मिलियन टन से अधिक हो सकती है।
  • देश भर में फोटोवोल्टिक पैनलों की तीव्र रूप से से स्थापना के साथ, भारत को अगले दो दशकों में बड़ी मात्रा में फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट का उत्पादन करने का अनुमान है, जो संभावित रूप से इसे 2050 तक  विश्व के शीर्ष पांच फोटोवोल्टिक अपशिष्ट उत्पादकों में से एक बना देगा।

 

भारत में सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) प्रौद्योगिकी

भारत में सौर पीवी प्रतिष्ठानों के लिए उपयोग की जाने वाली प्रमुख तकनीक क्रिस्टलीय सिलिकॉन (सी-सी) है। भारत में एक विशिष्ट पीवी पैनल 93% सी-सी मॉड्यूल एवं 7% कैडमियम टेल्यूराइड थिन-फिल्म मॉड्यूल से निर्मित है।

  • एक सी-सी मॉड्यूल विभिन्न घटकों से निर्मित होता है, जिसमें एक ग्लास शीट, एक एल्यूमीनियम फ्रेम, एक एनकैप्सुलेंट, एक बैकशीट, तांबे के तार तथा सिलिकॉन वेफर्स शामिल हैं।
  • सी-सी मॉड्यूल चांदी, टिन एवं सीसा का उपयोग करके निर्मित होता है। दूसरी ओर, पतली-फिल्म मॉड्यूल यौगिक अर्धचालक, कांच एवं कैप्सूल से निर्मित होता है।

सौर पीवी अपशिष्ट कैसे उत्पन्न होता है?

चूंकि सौर पैनल अपने जीवन काल के अंत तक पहुंचते हैं, उनके फ्रेम के कुछ घटकों को निष्कर्षित किया जाता है एवं रद्दी (स्क्रैप) के रूप में बेचा जाता है, जबकि जंक्शनों एवं केबलों को ई-अपशिष्ट दिशानिर्देशों के अनुसार पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।

  • कांच की परत को आंशिक रूप से पुनर्नवीनीकरण किया जाता है तथा शेष को आम तौर पर सामान्य अपशिष्ट के रूप में निस्तारित किया जाता है।
  • सीमेंट भट्टियों में मॉड्यूल को भस्म करके सिलिकॉन एवं चांदी को पुनः प्राप्त किया जा सकता है, जो कुल सामग्रियों का लगभग 50% पुनर्प्राप्ति योग्य पाया गया है।

सोलर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट से जुड़े खतरे

भारत को फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट की अनौपचारिक प्रबंधन की बढ़ती मात्रा के साथ एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, मात्र लगभग 20% अपशिष्ट को औपचारिक रूप से पुनर्प्राप्त किया जा रहा है।

  • अपशिष्ट का अनौपचारिक प्रबंधन लैंडफिल में जमा हो जाता है एवं आसपास के वातावरण को प्रदूषित करता है।
  • इसके अतिरिक्त, एनकैप्सुलेंट को भस्म करने से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड एवं हाइड्रोजन साइनाइड निर्मोचित होता है।
  • भारत को फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट को एकत्रित करने, भंडारण करने, पुनर्चक्रण करने तथा पुन: उपयोग करने में विविध समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • भारत में पुनर्चक्रित फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट का पुनरुद्देशित अथवा पुन: उपयोग करने के लिए बाजार नगण्य है, मुख्य रूप से पर्याप्त प्रोत्साहन एवं योजनाओं की कमी के कारण जिसमें व्यवसाय निवेश कर सकते हैं।

आगे की राह

पीवी अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार के लिए भारत को तीन महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए।

  • सब प्रथम, इसे उस भ्रम से बचना चाहिए जो फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट को अन्य ई- अपशिष्ट के साथ समूहीकृत करने से उत्पन्न हो सकता है तथा इसके स्थान पर ई-अपशिष्ट दिशानिर्देशों के भीतर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट उपचारण के लिए विशिष्ट प्रावधान बनाएं।
    • इसके अतिरिक्त, अपशिष्ट के संग्रह तथा उपचारण में होने वाली वित्तीय हानि से बचाने के लिए एक केंद्रीय बीमा अथवा नियामक निकाय की स्थापना की जानी चाहिए।
  • दूसरे, फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट की खतरनाक प्रकृति पर बल देने हेतु, देश भर में फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर संवेदीकरण एवं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
  • अंत में, चूंकि भारत में घरेलू सौर फोटोवॉल्टिक-पैनल निर्माण सीमित है, अतः स्थानीय अनुसंधान एवं विकास प्रयासों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
    • केवल एक प्रकार के मॉड्यूल पर निर्भर रहने से विशिष्ट प्राकृतिक संसाधनों की असमान कमी हो सकती है तथा पुनर्चक्रण एवं महत्वपूर्ण सामग्रियों को पुनर्प्राप्त करने की स्थानीय क्षमता में बाधा उत्पन्न होगी।
    • इस प्रकार, उपयुक्त अवसंरचना सुविधाओं एवं पर्याप्त धन के माध्यम से घरेलू स्तर पर  फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भविष्य की चुनौती से बचने हेतु भारत के लिए स्पष्ट नीतिगत निर्देशों, प्रभावी पुनर्चक्रण रणनीतियों एवं वर्तमान में सहयोग में वृद्धि करना महत्वपूर्ण है।

 

भारत की सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट समस्या के संदर्भ में प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न

प्र. सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट (सोलर पीवी वेस्ट) क्या है?

उत्तर. सौर ऊर्जा फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट से तात्पर्य बेकार अथवा अनुपयोगी सोलर पैनल एवं घटकों से है, जो तब उत्पन्न होते हैं जब सोलर पैनल अपने उपयोगी जीवन के अंत तक पहुँच जाते हैं अथवा क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

 

प्र. भारत में कितना सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है?

उत्तर. अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2030 तक 50,000-3,25,000 टन फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट तथा 2050 तक चार मिलियन टन से अधिक उत्पन्न कर सकता है।

 

प्र. एक विशिष्ट सौर पीवी पैनल के घटक क्या हैं?

उत्तर. एक विशिष्ट सौर पीवी पैनल में क्रिस्टलीय सिलिकॉन मॉड्यूल, कैडमियम टेल्यूराइड पतली-फिल्म मॉड्यूल, एक एल्यूमीनियम फ्रेम, एक एनकैप्सुलेंट, एक बैकशीट, तांबे के तार एवं सिलिकॉन वेफर्स होते हैं। चांदी, टिन  तथा सीसा का उपयोग क्रिस्टलीय सिलिकॉन मॉड्यूल के निर्माण हेतु किया जाता है एवं पतली-फिल्म मॉड्यूल ग्लास, एनकैप्सुलेंट एवं यौगिक अर्धचालक से बने होते हैं।

 

प्र. भारत में सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन किस प्रकार किया जाता है?

उत्तर. वर्तमान में, भारत में केवल लगभग 20% सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट को औपचारिक रूप से एकत्र एवं पुनर्चक्रित किया जाता है, जबकि शेष का अनौपचारिक रूप से उपचारण किया जाता है। उपयुक्त प्रोत्साहनों एवं योजनाओं की कमी के कारण भारत को सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट को एकत्र करने, भंडारण करने, पुनर्चक्रण करने  तथा पुन: उपयोग करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

 

प्र. सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट से जुड़े खतरे क्या हैं?

उत्तर. सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट हानिकारक रसायनों, जैसे सीसा एवं कैडमियम को पर्यावरण में निर्मुक्त सकता है, यदि इसे उचित रूप से उपचारित ना किया जाए। एनकैप्सुलेंट को भस्म करने से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड एवं हाइड्रोजन साइनाइड भी निष्कर्षित होता है।

 

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FAQs

सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट (सोलर पीवी वेस्ट) क्या है?

सौर ऊर्जा फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट से तात्पर्य बेकार अथवा अनुपयोगी सोलर पैनल एवं घटकों से है, जो तब उत्पन्न होते हैं जब सोलर पैनल अपने उपयोगी जीवन के अंत तक पहुँच जाते हैं अथवा क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

भारत में कितना सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है?

अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2030 तक 50,000-3,25,000 टन फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट तथा 2050 तक चार मिलियन टन से अधिक उत्पन्न कर सकता है।

एक विशिष्ट सौर पीवी पैनल के घटक क्या हैं?

एक विशिष्ट सौर पीवी पैनल में क्रिस्टलीय सिलिकॉन मॉड्यूल, कैडमियम टेल्यूराइड पतली-फिल्म मॉड्यूल, एक एल्यूमीनियम फ्रेम, एक एनकैप्सुलेंट, एक बैकशीट, तांबे के तार एवं सिलिकॉन वेफर्स होते हैं। चांदी, टिन तथा सीसा का उपयोग क्रिस्टलीय सिलिकॉन मॉड्यूल के निर्माण हेतु किया जाता है एवं पतली-फिल्म मॉड्यूल ग्लास, एनकैप्सुलेंट एवं यौगिक अर्धचालक से बने होते हैं।

भारत में सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन किस प्रकार किया जाता है?

वर्तमान में, भारत में केवल लगभग 20% सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट को औपचारिक रूप से एकत्र एवं पुनर्चक्रित किया जाता है, जबकि शेष का अनौपचारिक रूप से उपचारण किया जाता है। उपयुक्त प्रोत्साहनों एवं योजनाओं की कमी के कारण भारत को सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट को एकत्र करने, भंडारण करने, पुनर्चक्रण करने तथा पुन: उपयोग करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट से जुड़े खतरे क्या हैं?

सौर फोटोवॉल्टिक अपशिष्ट हानिकारक रसायनों, जैसे सीसा एवं कैडमियम को पर्यावरण में निर्मुक्त सकता है, यदि इसे उचित रूप से उपचारित ना किया जाए। एनकैप्सुलेंट को भस्म करने से वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन फ्लोराइड एवं हाइड्रोजन साइनाइड भी निष्कर्षित होता है।