Table of Contents
जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 3: पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण।
जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र- संदर्भ
- विगत वर्ष, आठ प्राच्य श्वेत पार्श्व (ओरिएंटल वाइट बैक्ड) गिद्धों को भारत में प्रथम बार जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र (जेसीबीसी) से वनों में मुक्त किया गया था।
- एक वर्ष पश्चात, वे पक्षीशाला (एवियरी) के बाहर वन्य पर्यावास में अच्छी तरह से घुलमिल गए हैं, जिसने संरक्षणवादियों को संभावना प्रदान की है।
जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र- प्रमुख बिंदु
- जटायु संरक्षण और प्रजनन केंद्र के बारे में: यह एशिया का प्रथम गिद्ध प्रजनन केंद्र है, जिसे वर्ष 2001 में स्थापित किया गया है
- अवस्थिति: यह हरियाणा के पंचकूला जिले के पिंजौर शहर में बीर शिकारगाह वन्य जीव अभ्ययारण्य के भीतर अवस्थित है।
- उद्देश्य: इसकी स्थापना भारतीय गिद्धों एवं घरेलू गौरैयों के प्रजनन तथा संरक्षण हेतु की गई थी।
- क्रियान्वयन संगठन: जेसीबीसी का संचालन वन विभाग, हरियाणा एवं बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) द्वारा ब्रिटिश चैरिटी रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स (आरएसपीबी) की सहायता से किया जाता है।
- जटायु संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र चार पर्यावरणीय संकटग्रस्त प्रजातियों के प्रजनन की दिशा में कार्य करता है। आईयूसीएन रेड डाटा बुक में उनकी संबंधित संकट की स्थिति इस प्रकार है-
- भारतीय गिद्ध (जिन्हें लंबी चोंच वाले गिद्ध भी कहा जाता है) – गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- स्लेंडर – बिल्ड (पतली चोंच वाले) गिद्ध- गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- हिमालयी गिद्ध (हिमालयी ग्रिफॉन गिद्ध के रूप में भी जाना जाता है) – संकटापन्न
- प्राच्य श्वेत पार्श्व (ओरिएंटल वाइट बैक्ड) वाले गिद्ध- गंभीर रूप से संकटग्रस्त
भारत में गिद्धों कीस्थिति
- वास स्थान: भारत गिद्धों की नौ प्रजातियों (ऊपर की चार समेत) का आवाज है एवं उनमें से अधिकांश विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे हैं। गिद्धों की अन्य पांच प्रजातियां एवं उनके आईयूसीएन संकटग्रस्त स्थिति-
- मिस्र के गिद्ध– संकटापन्न
- लाल सिर वाले गिद्ध– गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- भारतीय ग्रिफॉन गिद्ध– संकट मुक्त
- सिनेरियस गिद्ध– निकट संकटग्रस्त
- दाढ़ी वाले गिद्ध या लैमर्जियर– निकट संकटग्रस्त
- भारी गिरावट: गिद्धों की तीन प्रजातियों (भारतीय, पतली चोंच वाले एवं प्राच्य श्वेत पार्श्व वाले गिद्ध) की आबादी में 1990 के दशक के बाद से 97% से अधिक की गिरावट आई है।
- इसी अवधि में, प्राच्य श्वेत पार्श्व वाले गिद्धों की आबादी में 9% की भारी गिरावट आई है।
- भारी गिरावट का मुख्य कारण: विभिन्न अध्ययनों से यह सिद्ध हो चुका है कि भारत में डायक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग से गिद्धों की आबादी समाप्त हो गई थी।