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व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर जेपीसी: प्रासंगिकता
- जीएस 3: साइबर सुरक्षा की मूलभूत बातें
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर जेपीसी: प्रसंग
- हाल ही में, संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने लगभग दो वर्षों के विचार-विमर्श के पश्चात व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर प्रारूप रिपोर्ट को अंगीकृत किया।
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर जेपीसी: मुख्य बिंदु
- जेपीसी ने विवादास्पद छूट खंड को बरकरार रखा है जो सरकार को अपनी किसी भी एजेंसी को मामूली परिवर्तनों के साथ कानून के दायरे से बाहर रखने की अनुमति प्रदान करता है है।
- निजता पर न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के वाद के पश्चात विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया था, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ‘निजता का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है।
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर जेपीसी: मुख्य सिफारिशें
- जेपीसी सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से प्रकाशकों के रूप में व्यवहार करने की संस्तुति करता है एवं उन्हें उनके द्वारा धारित (होस्ट) की जाने वाली सामग्री के लिए उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए।
- समिति ने यह भी सिफारिश की कि भारत में किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को तब तक संचालित करने की अनुमति प्रदान नहीं की जानी चाहिए जब तक कि मूल कंपनी भारत में अपना कार्यालय स्थापित नहीं करती।
- डेटा स्थानीयकरण: जेपीसी ने सीमापारीय भुगतान हेतु रिपल (यू.एस.) एवं इंसटैक्स (ई.यू.) की तर्ज पर एक वैकल्पिक स्वदेशी वित्तीय प्रणाली विकसित करने की भी वकालत की।
- जेपीसी का विचार था कि भारत में सभी डिजिटल उपकरणों के प्रमाणन हेतु एक समर्पित प्रयोगशाला स्थापित की जानी चाहिए।
- डेटा के सीमापारीय हस्तांतरण के मामले में, संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा की एक मिरर कॉपी अनिवार्य रूप से भारत लाई जानी चाहिए।
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर जेपीसी: असंतुष्टों की आलोचना
- यह दो समानांतर ब्रह्मांड निर्मित करता है: नियमों के दो समुच्चय- एक निजी क्षेत्र के लिए जहां प्रावधान पूरी कठोरता के साथ लागू होंगे, एवं अन्य सरकारी संस्थाओं के लिए अत्यधिक छूट और निस्सरण खंड के साथ विकसित करने के लिए विधेयक की आलोचना की गई है।
- विधेयक निजता के अधिकार की रक्षा के लिए पर्याप्त रक्षोपाय भी प्रदान नहीं करता है।
- प्रारूप विधेयक ऐतिहासिक निर्णय के आधार पर विधिक ढांचे के निर्माण के लिए न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति द्वारा निर्धारित मानकों की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।
- न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति के प्रारूप विधेयक से मुख्य अपसरण (अंतर) डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) के अध्यक्ष एवं सदस्यों के चयन में है, जो डेटा प्रिंसिपलों के हितों की रक्षा करेगा एवं केंद्र सरकार को अपनी एजेंसियों को इस नियम के अनुप्रयोग से छूट देने के लिए अपमार्ग प्रदान किया जाएगा।
- जबकि 2018 के प्रारूप विधेयक को न्यायिक निरीक्षण के लिए अनुमति प्रदान की गई है, 2019 का विधेयक पूर्ण रूप से डीपीए के लिए चयन प्रक्रिया में कार्यपालिका सरकार के सदस्यों पर निर्भर करता है।
- 2019 का विधेयक “लोक व्यवस्था” को अधिनियम से सरकार की एक एजेंसी को छूट प्रदान करने के एक कारण के रूप में जोड़ता है, इसके अतिरिक्त मात्र उन कारणों को लिखित रूप में अभिलिखित करने हेतु प्रावधान करता है।
- 2018 का विधेयक जिसने राज्य संस्थानों को डेटा प्रिंसिपलों से संसूचित सहमति प्राप्त करने अथवा मात्र “राज्य की सुरक्षा” से संबंधित मामलों के मामले में डेटा को संसाधित करने से छूट की अनुमति प्रदान की एवं साथ “संसदीय निरीक्षण और व्यक्तिगत डेटा तक गैर-सहमति के उपयोग की न्यायिक स्वीकृति” के लिए एक कानून का आह्वान किया।
व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 पर जेपीसी: आगे की राह
- विधेयक में उन छूटों को सम्मिलित किया जाना चाहिए जो लिखित रूप में प्रदान की गई हैं, उन्हें कम से कम संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
- ” लोक व्यवस्था” इस आधार को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि यह दुरुपयोग की बहुत अधिक गुंजाइश प्रदान करता है।
- अब यह संसद का कार्य है कि वह प्रावधानों को और सख्त करे एवं उन्हें 2018 के विधेयक के अनुरूप लाए।