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किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतःक्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
भूख अधिस्थल: एफएओ-डब्ल्यूएफपी की एक रिपोर्ट
किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015- संदर्भ
- महिला और बाल विकास मंत्रालय ने हिंदू दत्तक ग्रहण एवं निर्वाह अधिनियम (एचएएमए) एवं किशोर न्याय (बालकों की देखभाल तथा संरक्षण) अधिनियम, 2015 के मध्य विधायी अंतराल को पाटने की योजना निर्मित की है, जिसने एचएएमए के के तहत दत्तक माता-पिता को अपने बच्चे को विदेश ले जाने हेतु न्यायालय जाने हेतु बाध्य किया है।
- यह हमा (एचएएमए) के तहत दत्तक ग्रहण करने हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र के लिए एक तंत्र स्थापित करने के लिए एक अधिसूचना जारी करेगा।
- यह बाल तस्करी को रोकने के लिए अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण पर हेग अभिसमय के अनुपालन में भी होगा एवं जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) अधिनियम 2015 के माध्यम से शासित है।
किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015- प्रमुख विशेषताएं
- भारत में किशोर की परिभाषा: किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 “किशोर” या “बालक” को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की हो।
- जेजे अधिनियम ने नामकरण को ‘किशोर’ से बदलकर ‘ बालक’ या ‘कानून के साथ विरोध में बालक’ कर दिया।
- अपराध का वर्गीकरण: जेजे अधिनियम बालकों द्वारा किए गए अपराधों को तीन श्रेणियों- छोटे, गंभीर एवं जघन्य अपराधों में वर्गीकृत करता है।
- जघन्य अपराधों के लिए अपवाद प्रदान करता है: जघन्य अपराधों के मामले में, 16 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के बालकों को वयस्कों के रूप में माना जा सकता है, बशर्ते कि किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) ने बालकों की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं का आकलन किया हो और बालक को प्रमाणित किया हो।
- संस्थागत तंत्र: जेजे अधिनियम प्रत्येक जिले में निम्नलिखित जेजेबी एवं बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) की अनिवार्य स्थापना का प्रावधान करता है जिसमें प्रत्येक जेजेबी / सीडब्ल्यूसी में कम से कम एक महिला सदस्य हों।
- किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी): यह एक न्यायपालिका निकाय है जो जेजे अधिनियम के निरुद्ध किए गए या अपराध के आरोपी बालकों हेतु एक पृथक न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
- बाल कल्याण समिति: जेजे अधिनियम के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा स्थापित।
- सीडब्ल्यूसी के पास देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों की देखभाल, सुरक्षा, उपचार, विकास एवं पुनर्वास के मामलों के निष्पादन के साथ-साथ उनकी बुनियादी आवश्यकताओं एवं सुरक्षा प्रदान करने की शक्ति है।
- समिति बालक को दत्तक ग्रहण लेने की प्रक्रिया हेतु ‘विधिक रूप से मुक्त’ के रूप में भी प्रमाणित करती है।
- संपूर्ण भारत में सभी बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) को अधिनियम के प्रारम्भ होने की तिथि से 6 माह के भीतर अधिनियम के अंतर्गत स्वयं को पंजीकृत करवाना था।
- इससे इन सीसीआई में बेहतर अनुश्रवण (निगरानी) एवं गुणवत्ता मानकों की सुगमता होगी।
- सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा): जेजे अधिनियम ने काला को अधिनियम के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय का दर्जा प्रदान किया। इससे कारा के बेहतर प्रदर्शन और कामकाज में आसानी होगी।