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कश्मीरी पंडित- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- केंद्र-राज्य संबंध।
कश्मीरी पंडित चर्चा में क्यों है?
- घाटी में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों एवं अन्य हिंदुओं की लक्षित हत्याओं की हालिया घटनाओं ने विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया जिसने एक बार पुनः उनके लौटने के अधिकार तथा घाटी में रहने वाले अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के सवाल को सबके समक्ष ला दिया।
कश्मीरी पंडित
- कश्मीरी पंडित उच्चतम श्रेणी वाली ब्राह्मण जातियों में से एक हैं जो घाटी के मूल निवासी हैं, जिन्हें स्थानीय रूप से पंडितों के रूप में जाना जाता है।
- वे घाटी में अल्पसंख्यक थे, जो कुल आबादी का मात्र 5% हिस्सा था।
- वे परंपरागत रूप से कृषि एवं लघु पैमाने के व्यवसाय पर निर्भर तथा प्रशासन में पसंदीदा वर्गों में से एक थे।
संघर्ष
- कट्टरपंथी इस्लामवादियों एवं आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाना आरंभ किया।
- 1990 के दशक में आतंकवाद के विकास ने कश्मीरी पंडितों को अधिक संख्या में घाटी छोड़ने के लिए बाध्य किया तथा इस तरह वे दूसरे राज्यों में पलायन करने लगे, अपनी सभी संपत्तियों को पीछे छोड़कर दूसरे हिस्सों में शरण लेने लगे।
- जबकि उनमें से अनेकों ने पलायन करना प्रारंभ कर दिया, कुछ ने अपनी जन्मभूमि में रहने का निर्णय लिया।
- कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन एवं हिंदुओं के मध्य संघर्ष उत्पन्न हुआ, जिसके कारण कश्मीरी हिंदुओं की सामूहिक हत्याएं हुईं।
- 1990 के दशक में घाटी से पंडितों के पलायन के पश्चात, इस सदी के कुछ आरंभिक वर्षों में पंडितों को घाटी में वापस भेजने के सरकारी प्रयास देखे गए।
- प्रधानमंत्री की कश्मीरी प्रवासियों की वापसी एवं पुनर्वास योजना के तहत, कश्मीरी पंडित “प्रवासी” युवाओं के लिए घाटी में सरकारी पदस्थापना प्रारंभ हुई।
- अधिकांश, शिक्षक एवं ये सरकारी कर्मचारी संरक्षित उच्च सुरक्षा वाले अंतस्थ क्षेत्रों (एन्क्लेव) में रहे हैं, किंतु उनके काम के लिए उन्हें इन एन्क्लेवों को छोड़कर बाकी आबादी के साथ घुलना-मिलना पड़ता है।
- एक अन्य वर्ग, जिसे “गैर-प्रवासी” पंडितों के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने कभी भी घाटी नहीं छोड़ी, राज्य द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा के बिना, अपने घरों में रहते हैं।
सीडीआर क्या है?
- सेंटर फॉर डायलॉग एंड रिकॉन्सिलिएशन (सीडीआर) मार्च 2001 में समाविष्ट एक दिल्ली स्थित थिंक टैंक है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में शांति के लिए उत्प्रेरक बनना है।
- जम्मू कश्मीर में शांति निर्माण प्रक्रिया हेतु क्रियाशील सीडीआर ने गलतियों को स्वीकार करते हुए स्व-मूल्यांकन के एक हिस्से के रूप में दोनों समुदायों के मध्य वार्ताओं की पहल का समर्थन किया।
कश्मीर में सीडीआर ने क्या किया?
- सीडीआर ने दो प्रमुख युवा कश्मीरियों द्वारा प्रस्तावित एक संवाद के लिए पहल का समर्थन किया, एक मुस्लिम एवं दूसरा एक पंडित, दोनों जिन्होंने 1990 और उसके बाद के वर्षों की हिंसा देखी है।
- उनका मानना है कि वार्ता के सिद्धांत से उपचार संभव हो सकता है।
- इसने दिसंबर 2010 में सीडीआर की ‘साझा साक्षी’, एक पंडित-मुस्लिम संवाद श्रृंखला का नेतृत्व किया।
- सार्वजनिक बुद्धिजीवी एवं दोनों समुदायों के अन्य प्रभावशाली व्यक्ति सहभागी थे।
संवाद के अवलोकन
- संवाद प्रधान मंत्री की रोजगार/नौकरी योजना के शुभारंभ के साथ सन्निपतित हुआ।
- संवादों ने एक सामाजिक वातावरण निर्मित किया जिसने कश्मीरी पंडितों को घाटी में सरकारी पोस्टिंग लेने में सक्षम बनाया।
- उन्होंने 1990 एवं उसके आसपास की घटनाओं तथा उन घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जिन्होंने पंडित समुदाय के विस्थापन को गति दी।
- तीसरे संवाद तक, प्रतिभागी व्यक्तिगत अनुभव साझा कर रहे थे जो उस कथा में उपयुक्त नहीं बैठ रहे थे जो प्रत्येक समुदाय ने दूसरे के बारे में बनाया था।
- बातचीत की प्रक्रिया ने उन्हें संघर्ष के पीछे के वास्तविक कारण के बारे में सोचने हेतु प्रेरित किया, क्या यह सांप्रदायिक मतभेद थे, या यह मात्र धर्म था?
पंडितों की दुर्दशा
- पंडित इस बात से दुखी थे कि मुसलमानों ने पंडितों की हत्याओं का विरोध नहीं किया, तब भी नहीं जब हत्यारों ने उन हत्याओं का दावा किया था। वह व्यापक जिम्मेदारी मुसलमानों की थी क्योंकि वे बहुसंख्यक थे।
- यदि कुछ सामाजिक संगठनों ने त्वरित कार्रवाई की होती, तो पलायन को रोका जा सकता था।
- उन्होंने देखा कि पंडित समुदाय भी नेतृत्व की कमी से पीड़ित था।
- वे उनसे क्षमा याचना की मांग करते हैं एवं संभावित “सत्य आयोग” की स्थापना की मांग करते हैं।
मुसलमान क्या कहते हैं?
- मुस्लिम प्रतिभागियों ने यह महसूस किया कि पंडित घाटी में मुसलमानों के संघर्ष से इनकार कर रहे थे, जो व्यवस्था की ओर से हिंसा का सामना कर रहे थे।
- कश्मीरी मुस्लिम को सदैव पाकिस्तान द्वारा गुमराह, सहायता प्रदान करने एवं उकसाए जाने वाले समुदाय के रूप में चित्रित किया गया था।
- कश्मीर में विरोध धर्म के विरुद्ध नहीं बल्कि सत्ता एवं उत्पीड़न के ढांचे के विरुद्ध था।
वर्तमान स्थिति
- कश्मीर के पंडितों की लक्षित हत्याओं की ताजा बाढ़ ने भय का वातावरण उत्पन्न कर दिया एवं कश्मीर घाटी में उनके पुनर्वास को एक बड़ा झटका दिया।
आगे की राह:
- हमें एक बार पुनः कश्मीर में समुदायों के मध्य तत्काल नागरिक समाज की भागीदारी की आवश्यकता है।
- सरकार इसे सक्षम कर सकती है, किंतु व्यक्तियों एवं नागरिक समाज को धरातल पर ऐसी स्थितियां निर्मित करने की आवश्यकता होगी। उन्हें लोगों को दोषारोपण के खेल को छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।