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भारत में प्रथम लिगो परियोजना : प्रासंगिकता
- जीएस 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां; प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण एवं नवीन तकनीक विकसित करना।
भारत में प्रथम लिगो परियोजना : प्रसंग
- महाराष्ट्र सरकार ने लिगो (एलआईजीओ) के निर्माण के लिए 225 हेक्टेयर भूमि हस्तांतरित की है, जो भारत में इस प्रकार की प्रथम स्थापना है।
भारत में प्रथम लिगो परियोजना : मुख्य बिंदु
- 2016 में, केंद्र सरकार ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों पर अनुसंधान के लिए लिगो-भारत मेगा विज्ञान प्रस्ताव को ‘सैद्धांतिक रूप से’ स्वीकृति प्रदान की थी।
- परियोजना के लिए भूमि का हस्तांतरण पूर्व में कुछ समय के लिए रोक दिया गया था जिसका कारण कोविड-19 महामारी के कारण आरोपित किए गए प्रतिबंध थे।
लिगो के बारे में
- लिगो का अर्थ “लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी” है।
- यह विश्व की सर्वाधिक वृहद गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला एवं परिशुद्ध अभियांत्रिकी का चमत्कार है।
- लिगो में संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर दो व्यापक रूप से पृथक किए गए इंटरफेरोमीटर शामिल हैं – एक हनफोर्ड, वाशिंगटन में एवं दूसरा लिविंगस्टन, लुइसियाना में – गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने के लिए एक साथ संचालित होते हैं।
- लिगो में वर्तमान में दो इंटरफेरोमीटर सम्मिलित हैं, प्रत्येक में दो 4 किमी (5 मील) लंबी भुजाएं होती हैं जो एक “एल” के आकार में व्यवस्थित होती हैं। गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने के लिए ये उपकरण ‘एंटीना’ के रूप में कार्य करते हैं।
- उन्हें इंटरफेरोमीटर कहा जाता है क्योंकि वे एक व्यतिकरण प्रारूप निर्मित करने हेतु प्रकाश के दो या दो से अधिक स्रोतों को संयोजित कर कार्य करते हैं, जिसे मापा एवं विश्लेषण किया जा सकता है।
लिगो प्रच्छन्न है: प्रकाशीय या रेडियो दूरबीनों के विपरीत, लिगो विद्युत चुम्बकीय विकिरण (जैसे, दृश्य प्रकाश, रेडियो तरंगें, सूक्ष्म तरंगों) नहीं देखता है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण तरंगें विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का हिस्सा नहीं हैं।
- उन्हें इंटरफेरोमीटर कहा जाता है क्योंकि वे एक व्यतिकरण प्रारूप निर्मित करने हेतु प्रकाश के दो या दो से अधिक स्रोतों को संयोजित कर कार्य करते हैं, जिसे मापा एवं विश्लेषण किया जा सकता है।
- लिगो गोल नहीं है एवं अंतरिक्ष में विशिष्ट स्थानों को इंगित नहीं कर सकता है: चूंकि लिगो को तारों से प्रकाश एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है, अतः इसे प्रकाशीय दूरबीन दर्पण (ऑप्टिकल टेलीस्कोप मिरर) या रेडियो टेलीस्कोप डिश जैसे गोल या डिश के आकार की आवश्यकता नहीं है।
- एकल लिगो संसूचक (डिटेक्टर) स्वयं से आरंभ में गुरुत्वाकर्षण तरंगों की पुष्टि नहीं कर सका। विद्युत चुम्बकीय पर्यवेक्षकों को संसूचन से जुड़े एक संभावित प्रकाश स्रोत को खोजने में सहायता करने हेतु, हमारे पास अनेक संसूचक – आदर्श रूप से 3 या अधिक – आकाश में सिग्नल को स्थानीयकृत करने हेतु होने चाहिए।
लिगो-इंडिया परियोजना के बारे में
- लिगो-इंडिया परियोजना अनुमानित रूप से 1,200 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित की जानी है एवं यह महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के दुधला गांव में स्थापित की जाएगी।
- भारत में वेधशाला को परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित किया जाएगा।
- लिगो-इंडिया लिगो प्रयोगशाला (कैल्टेक एवं एमआईटी द्वारा संचालित) एवं भारत में तीन संस्थानों: राजा रमन्ना उन्नत प्रौद्योगिकी केंद्र (आरआरकेट, इंदौर में), प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान (अहमदाबाद में आईपीआर), एवं इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए, पुणे में) के मध्य एक सहयोग है।