कृषक आंदोलन |
विवरण |
नील विद्रोह (1859-60) |
- 1959 की शरद ऋतु में बंगाल में नील उत्पादकों का विद्रोह भड़क उठा था।
- इसे ‘नील बिद्रोहो‘ के नाम से भी जाना जाता है।
- यह विद्रोह एक ओर नील बागान मालिकों के विरुद्ध निर्देशित था, दूसरी ओर, यह जमींदारों के विरुद्ध लगान की हड़ताल में बदल गया।
- इस नील विद्रोह ने एक राजनीतिक आंदोलन को जन्म दिया और भारतीय जनता के मध्य ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध राष्ट्रीय भावना को प्रेरित किया।
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रंगपुर ढिंग (1783) |
- रंगपुर विद्रोह बंगाल में हुआ था।
- इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध प्रथम कठोर किसान विद्रोह कहा जाता है।
- 1765 में अंग्रेजों को दीवानी के अधिकार एवं 1767 में पांच वर्षीय बंदोबस्त के कारण किसानों का शोषण हुआ।
- यूरोपीय संग्राहकों तथा भारतीय इजारदारों (राजस्व किसान) ने मिलकर किसानों से पैसे उगाहने का कार्य किया।
- विद्रोह रांची, हजारीबाग, पलामू सहित एक विस्तृत क्षेत्र में फैल गया।
- दो वर्ष के कड़े संघर्ष के बाद वे अंग्रेजों के आधुनिक हथियारों से पराजित हो गए।
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कोल विद्रोह (1832) |
- छोटा नागपुर के कोल आदिवासी ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंटों द्वारा शोषण से परेशान थे।
- कोल एवं अन्य जनजातियों ने अपने प्रमुखों के अधीन स्वतंत्रता का आनंद लिया किंतु ब्रिटिश शक्ति के प्रवेश ने उनकी स्वतंत्रता को खतरे में डाल दिया।
- जनजातीय भूमि को सौंपने एवं साहूकारों, व्यापारियों तथा ब्रिटिश कानूनों के अतिक्रमण ने इस क्षेत्र में तनाव उत्पन्न कर दिया।
- विद्रोह के नेता: बुद्ध भगत, जोआ भगत, मदारा महतो तथा अन्य।
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मालाबार में मप्पिला विद्रोह (1841-1920) |
- मप्पिला या मोपला नाम मलयाली भाषी मुसलमानों को दिया जाता है जो उत्तरी केरल के मालाबार तट में निवास करते थे।
- विद्रोह का प्रारंभ मालाबार क्षेत्र में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन एवं जमींदारों, जो मुख्य रूप से हिंदू थे, दोनों के विरुद्ध एक प्रतिरोध के रूप में हुआ।
- विद्रोह हिंदू-मुस्लिम दंगों के जाल में फंस गया।
- इस अवधि के दौरान मुसलमानों के लिए स्वतंत्रता की पूर्ति के लिए खिलाफत आंदोलन (असहयोग आंदोलन के दौरान) चलाया गया था।
- मोपला विद्रोह के बारे में और पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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संथाल विद्रोह (1855) |
- यह वर्तमान झारखंड में एक स्थानीय/देशी विद्रोह था।
- यह क्रांति न केवल ब्रिटिश राज के विरुद्ध थी बल्कि जमींदारों के विरुद्ध भी थी।
- करों एवं ऋणों का भुगतान कर पाने में विफलता के कारण संथालों को उनकी ही भूमि से बेदखल कर दिया गया था।
- इस विद्रोह की योजना चार भाइयों – सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव ने बनाई थी, विद्रोह को दबा दिया गया और अन्य विद्रोहों द्वारा इसके प्रभाव को कम कर दिया गया।
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दक्कन विद्रोह (1875) |
- रैयतवारी बंदोबस्त बॉम्बे दक्कन क्षेत्र में प्रारंभ की गई राजस्व प्रणाली थी।
- पश्चिमी भारत के दक्कन क्षेत्र के रैयतों को रैयतवारी प्रणाली के तहत भारी कराधान का सामना करना पड़ा।
- किसानों ने स्वयं को साहूकारों के दुष्चक्र में फंसा पाया जो इस व्यवस्था के शोषक तथा मुख्य लाभार्थी थे।
- 1864 में अमेरिकी गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद कपास की कीमतों में गिरावट, 1867 में भू-राजस्व में 50% की वृद्धि करने के सरकार के निर्णय एवं खराब फसल की पुनरावृत्ति के कारण स्थितियां और बदतर हो गई थीं।
- इस विद्रोह में साहूकारों का सामाजिक बहिष्कार भी शामिल था।
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मुंडा उलगुलान (1899-1900) |
- रांची में इस आंदोलन का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था।
- उलगुलान, जिसे ‘ग्रेट तुमल्ट’ कहा जाता है, ने मुंडा राज और स्वतंत्रता को अभिनिश्चित करने का प्रयास किया।
- अंग्रेजों के भूमि अनुबंध आदिवासी पारंपरिक भूमि व्यवस्था को ध्वस्त कर रहे थे।
- इस विद्रोह के परिणामस्वरूप, सरकार ने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 अधिनियमित किया।
- पारंपरिक पात्रों तथा भाषा का प्रयोग लोगों को जागृत करने हेतु किया जाता था, उन्हें “रावण” (डिकू / बाहरी लोगों और ब्रिटिश सरकार) को ध्वस्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
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पागल पंथी |
- इस विद्रोह का नेतृत्व करम शाह ने किया था।
- यह पागल पंथी नामक धार्मिक भिक्षुओं द्वारा मार्गदर्शित था। प्रारंभिक चरण में इसे जमींदारों के विरुद्ध निर्देशित किया गया था तथा बाद में इसने एक ब्रिटिश विरोधी आंदोलन का स्वरूप ग्रहण कर लिया।
- करम शाह ने सिखाया कि ईश्वर ने मानव जाति को निर्मित किया। अतः, वे सभी समान हैं तथा एक दूसरे के भाई हैं।
- इसलिए करीम शाह के अनुयायी एक-दूसरे को ‘भाई-साहेब’ कहकर संबोधित करते थे। उनका व्यवहार तथा रहन-सहन मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों को असामान्य एवं विचित्र प्रतीत हो रहा था।
- इस प्रकार मैदानी लोगों द्वारा भाई-साहेबों को ‘पागल’ (पागल-टोपी) कहा जाने लगा।
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फराजी विद्रोह |
- यह विद्रोह हाजी शरीयतुल्ला तथा उनके पुत्र दादू मियां के नेतृत्व में हुआ था।
- शरीयतुल्ला ने बंगाल के मुसलमानों को इस्लाम के सच्चे रास्ते पर लाने की कसम खाई।
- हाजी शरीयतुल्ला ने बंगाल में ब्रिटिश शासन को मुसलमानों के धार्मिक जीवन के लिए हानिकारक माना, इसलिए वह बंगाल से अंग्रेजी घुसपैठियों को खदेड़ना चाहते थे।
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तेभागा आंदोलन (1946-47) |
- तेभागा आंदोलन मुख्य रूप से बंगाल प्रांतीय कृषक सभा के कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित किया गया था।
- तेभागा आंदोलन बटाईदारों का आंदोलन था जो अपने लिए भूमि से उपज के दो तिहाई भाग एवं जमींदारों के लिए एक तिहाई भाग (इसलिए शब्द तेभागा) की मांग कर रहे थे।
- विरोध करने वाले काश्तकारों ने अपने एजेंडे में एक नया नारा जोड़ा: जमींदारी व्यवस्था का पूर्ण उन्मूलन।
- बंगाल के विभाजन तथा नई सरकार के वादों के कारण आंदोलन को स्थगित करना पड़ा।
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तेलंगाना आंदोलन (1946-52) |
- यह आधुनिक भारतीय इतिहास का सर्वाधिक वृहद किसान गुरिल्ला युद्ध था, जिसने 3000 गांवों तथा 30 लाख की आबादी को प्रभावित किया।
- असजाही निज़ामों के अधीन हैदराबाद की रियासत को नागरिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी, बलात शोषण इत्यादि जैसे मुद्दों से अभिलक्षित किया गया था।
- भारत की सबसे बड़ी रियासत का निरंकुश-सामंती शासन हिल गया था।
- इस आंदोलन ने भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश के गठन एवं इस क्षेत्र में राष्ट्रीय आंदोलन के एक अन्य उद्देश्य को साकार करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
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