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प्रासंगिकता
- जीएस 2: विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां और अंतःक्षेप एवं उनकी अभिकल्पना तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
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प्रसंग
- मेकेदातु में कावेरी नदी पर जलाशय निर्मित करने के कर्नाटक के कदम का तमिलनाडु द्वारा विरोध किया जा रहा है।
- कर्नाटक सरकार ने यद्यपि बलपूर्वक कहा कि मेकेदातु परियोजना पर कोई समझौता नहीं होगा तथा राज्य ने केंद्रीय जल मंत्रालय को इसके बारे में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) पहले ही भेज दी है एवं संभावना है कि परियोजना को शीघ्र ही स्वीकृति मिल जाएगी।
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परियोजना के बारे में:
- मेकेदातु कर्नाटक के रामनगर जिले में बेंगलुरु से लगभग 100 किमी दूर कावेरी और अर्कावती नदियों के संगम पर स्थित एक गहरी खाई है।
- 2013 में, कर्नाटक सरकार ने मेकेदातु के ऊपर एक बहुउद्देशीय संतोलक जलाशय परियोजना के निर्माण की घोषणा की।
- इसका उद्देश्य बेंगलुरू एवं रामनगर जिले की पेयजल समस्याओं में कमी लाना था।
- इससे राज्य की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए जलविद्युत उत्पादन की भी संभावना है।
तमिलनाडु क्यों विरोध कर रहा है?
- तमिलनाडु का दृढतापूर्वक कहना है कि
- यह परियोजना कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के अंतिम निर्णय का उल्लंघन है।
- परियोजना कावेरी नदी के प्राकृतिक प्रवाह को अत्यधिक प्रभावित करेगी एवं तमिलनाडु में सिंचाई को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी।
- यह परियोजना संघवाद के सिद्धांतों के विरुद्ध है क्योंकि कोई भी ऊपरी नदी तटीय राज्य (इस मामले में कर्नाटक) निचले नदी तटीय राज्य (इस मामले में तमिलनाडु) की सहमति एवं सम्मिलन के बिना अंतरराज्यीय नदी के प्राकृतिक प्रवाह में एक पक्षीय हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। .
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न्यायाधिकरण एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय:
- 1990 में स्थापित न्यायाधिकरण ने 2007 में अपना अंतिम निर्णय दिया।
- इसने प्रतिपादित किया
- तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) जल
- कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट
- केरल के लिए 30 टीएमसी फीट
- पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट।
- न्यायाधिकरण ने आदेश दिया कि वर्षा के अभाव वाले वर्षों के दौरान, सभी राज्यों हेतु आवंटन कम हो जाएगा।
- यद्यपि, तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ने निर्णय स्वीकार करने में अनिच्छा व्यक्त की तथा जल बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों में विरोध और हिंसा हुई।
- सर्वोच्च न्यायालय ने तब इस विषय को अपने संज्ञान में लिया एवं 2018 के निर्णय में, उसने तमिलनाडु के पहले हिस्से से कर्नाटक को75 टीएमसी फीट का संविभाजन कर दिया।
आगे की राह
- केंद्र सरकार ने कहा कि इस परियोजना को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) के अनुमोदन की आवश्यकता है। इस प्रावधान की पुनरावृति सर्वोच्च न्यायालय ने तब की जब उसने कहा कि जल शक्ति मंत्रालय द्वारा डीपीआर पर विचार करने के लिए सीडब्ल्यूएमए की स्वीकृति एक पूर्वापेक्षा होगी।
- कर्नाटक द्वारा भेजी गई डीपीआर को सीडब्ल्यूएमए में एक बार प्रस्तुत किया गया था, किंतु राज्यों के मध्य आम सहमति के अभाव के कारण इसे स्वीकृति प्राप्त नहीं हो सकी।
- इसके अतिरिक्त, चूंकि परियोजना एक अंतरराज्यीय नदी पर प्रस्तावित की गई थी, इसलिए इसे अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम के अनुसार निचले नदी तटीय राज्य (राज्यों) के अनुमोदन की आवश्यकता थी।