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माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण यूपीएससी: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण: संदर्भ
- हाल ही में, भारतीय विज्ञान संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस/IISc), बेंगलुरु के एक नवीन अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषक मछलियों की वृद्धि में दोष उत्पन्न कर सकते हैं।
कावेरी नदी में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण: प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के शोधकर्ताओं ने मछलियों में विकृतियों को देखा एवं इस जलीय प्रजाति पर शोध किया।
- रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी नामक तकनीक का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने साइक्लोहेक्सिल कार्यात्मक समूह वाले माइक्रोप्लास्टिक्स तथा जहरीले रसायनों का पता लगाया।
- एक कार्यात्मक समूह एक यौगिक में परमाणुओं को संदर्भित करता है जो इसके रासायनिक गुणों को निर्धारित करता है।
- शोधकर्ताओं ने मछली के भ्रूणों का उपचार तीन स्थानों-तीव्र गति से प्रवाहित होने वाले, धीमी गति से प्रवाहित होने वाले एवं स्थिर स्रोत से एकत्र किए गए जल के नमूनों से किया एवं पाया कि धीमी गति से प्रवाहित होने वाली एवं स्थिर स्थलों से जल के संपर्क में आने वालों ने कंकालीय विकृति, डीएनए क्षति, समय पूर्व कोशिका मृत्यु, हृदय की क्षति तथा मृत्यु दर में वृद्धि इत्यादि का अनुभव किया।
- इन विकृतियों को रोगाणुओं के निस्यंदन के बाद भी देखा गया था, जिसका अर्थ था कि मछलियों में रोगों के लिए माइक्रोप्लास्टिक्स तथा साइक्लोहेक्सिल कार्यात्मक समूह जिम्मेदार हैं।
माइक्रोप्लास्टिक क्या है?
- माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के छोटे टुकड़े होते हैं, जिनकी लंबाई 5 मिमी (0.2 इंच) से कम होती है, जो प्लास्टिक प्रदूषण के परिणामस्वरूप पर्यावरण में उपस्थित होते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक्स सौंदर्य प्रसाधन सामग्री से लेकर सिंथेटिक कपड़ों से लेकर प्लास्टिक बैग्स एवं बोतलों तक अनेक प्रकार के उत्पादों में मौजूद होते हैं। इनमें से अनेक उत्पाद कचरे में आसानी से पर्यावरण में प्रवेश कर जाते हैं।
- उन्हें उनकी उत्पत्ति के आधार पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
- प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स, औद्योगिक निर्माण में उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक छर्रों (अथवा नर्डल्स) एवं सिंथेटिक वस्त्रों (जैसे, नायलॉन) में उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक फाइबर सम्मिलित होते हैं।
- माध्यमिक माइक्रोप्लास्टिक्स: बड़े प्लास्टिक के टूटने से उत्पन्न होते हैं। प्लास्टिक की बोतलें, बैग, मछली पकड़ने के जाल एवं खाद्य पैकेजिंग बड़े टुकड़ों के कुछ उदाहरण हैं जो माइक्रोप्लास्टिक में टूट जाते हैं, अंततः मृदा, जल एवं हवा में अपना मार्ग खोज लेते हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक्स कई घरेलू एवं औद्योगिक उत्पादों में पाए जाते हैं तथा साइक्लोहेक्सिल समूह वाले रसायन, जैसे कि साइक्लोहेक्सिल आइसोसाइनेट, आमतौर पर कृषि एवं दवा उद्योग में उपयोग किए जाते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव
मानव स्वास्थ्य पर
- माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रति मानव अनावृत्ति हवाई धूल, पेयजल (नल के उपचारित जल एवं बोतलबंद पानी सहित) से आने की संभावना है।
- माइक्रोप्लास्टिक हमारे पेट तक पहुंच सकता है जहां वे या तो उत्सर्जित हो सकते हैं, पेट एवं आंतों की परत में फंस सकते हैं अथवा रक्त जैसे शरीर के तरल पदार्थ में मुक्त रूप से गमन कर सकते हैं, जिससे शरीर के विभिन्न अंगों तथा ऊतकों तक पहुंच सकते हैं।
- तंत्रिका तंत्र, हार्मोन, प्रतिरक्षा प्रणाली को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है एवं इसमें कैंसर उत्पन्न करने वाले गुण होते हैं।
समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र
- समुद्री जीवों पर प्रभाव: जब सेवन किया जाता है, तो माइक्रोप्लास्टिक्स उनके पाचन तंत्र में फंस जाते हैं तथा उनके भोज्य व्यवहार को भी परिवर्तित कर देते हैं।
- आमाशय (पेट) में विषाक्त प्लास्टिक के जमा होने से भुखमरी तथा मृत्यु हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वृद्धि एवं प्रजनन उत्पादन कम हो जाता है।
- समुद्री प्रदूषण में वृद्धि: इसके जल-विकर्षक गुणों के कारण भारी धातुओं तथा कार्बनिक प्रदूषकों के लिए एक बाध्यकारी एवं परिवहन एजेंट के रूप में कार्य करना।
माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण: समाधान
- कम करें, पुन: उपयोग करें तथा पुनर्चक्रण करें: विश्व में माइक्रोप्लास्टिक के खतरे को समाप्त करने का यही मंत्र होना चाहिए।
- लैंडफिल पर प्रतिबंध: घरेलू कचरे के प्रबंधन के लिए प्रायः खुले में लैंडफिल तथा ओपन-एयर बर्निंग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए एवं इसे प्रयोग किए गए प्लास्टिक के 100% संग्रह तथा पुनर्चक्रण के साथ प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।
- माइक्रोप्लास्टिक के विकल्प के रूप में बायो प्लास्टिक को बढ़ावा देना: यह उद्योग में निवेश तथा सरकारी सहायता, उत्पादन की लागत को कम करके एवं विभिन्न उद्योगों के लिए इसके आकर्षण को बढ़ाकर किया जा सकता है।
- जागरूकता उत्पन्न करना: स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) की तर्ज पर जनता के मध्य माइक्रोप्लास्टिक व्युत्पन्न उत्पादों, हानिकारक प्रभावों एवं इसके उपयोग को कम करने के तरीकों के बारे में प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए।
- प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन एवं पश्चातवर्ती माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण में कमी सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों (समुदाय, उद्योग, सरकार तथा नागरिक समाज संगठनों) के मध्य एक सहकारी एवं सहयोगी साझेदारी।