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संयुक्त राष्ट्र मिशनों के दौरान कार्रवाई में मारे गए अधिकांश सैनिक भारतीय थे
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने संगठन के शांति अभियानों की 75वीं वर्षगांठ को एक भव्य समारोह के साथ मनाया।
- ड्यूटी के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले 4,000 से अधिक शांतिरक्षकों की स्मृति का सम्मान करने के लिए, गुतारेस ने सैन्य अधिकारियों एवं राजनयिकों से, अपनी-अपनी वर्दी पहने हुए, एक क्षण का मौन धारण करने का आह्वान किया।
- इसके अतिरिक्त, उन्होंने उन 39 राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले राजदूतों को पदक प्रदान किए, जिन देशों से 2022 में दुखद रूप से अपनी जान गंवाने वाले 103 शांति सैनिकों आते थे।
संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भारतीय सैनिकों का बलिदान
मई 1948 में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इजरायल-अरब युद्ध विराम समझौते की निगरानी के लिए सैन्य पर्यवेक्षकों की अपनी प्रारंभिक टुकड़ी भेजी। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के संपूर्ण इतिहास में, भारतीय सैनिकों एवं विशेषज्ञों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सांख्यिकीय आंकड़ों से ज्ञात होता है कि, शत्रुतापूर्ण कृत्यों के परिणामस्वरूप शांति अभियानों के दौरान दुखद रूप से जान गंवाने वालों में एक महत्वपूर्ण अनुपात भारतीय सैनिकों का था।
- दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के कारण कुल मिलाकर 1,115 शांति सैनिकों की युद्ध के मैदान में मृत्यु हुई है, जिनमें से 69 भारत के थे, इसके बाद चाड (64), घाना (53), नाइजीरिया (44) तथा पाकिस्तान (44) थे।
- कुल मिलाकर, 4,298 शांति सैनिकों की मृत्यु हुई है – 1,481 रोगों के कारण, 1,386 दुर्घटनाओं के कारण, 316 अन्य कारणों से तथा शेष दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के कारण।
- जुलाई 1960 एवं जून 1964 के बीच कांगो में संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन (यूनाइटेड नेशंस ऑपरेशंस इन द कांगो/ओएनयूसी) भारतीय सैनिकों एवं विशेषज्ञों के लिए सर्वाधिक घातक सिद्ध हुआ, जिसमें 15 दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के कारण मारे गए।
संयुक्त राष्ट्र मिशनों में दुर्भावनापूर्ण कृत्यों के कारण भारतीय मौतें
जुलाई 1960 से जून 1964 की अवधि के दौरान, कांगो में संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन (ओएनयूसी) में भारतीय सैनिकों एवं विशेषज्ञ सर्वाधिक संख्या में अधिक हताहत हुए, जिसमें शत्रुतापूर्ण कृत्यों के परिणामस्वरूप 15 मौतें हुईं।
- 1960 में द हिंदू के एक आलेख में स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया था कि किस प्रकार भारतीय सेना के मेजर को संगीन की नोक पर उनके आवास से बलपूर्वक हटा दिया गया था एवं राइफल बट्स से गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था।
- इसके अतिरिक्त, इसने एक ऐसी घटना का वर्णन किया जिसमें सब-मशीन बंदूकों से लैस कांगो के सैनिकों ने एक कर्नल को रोका जो भारतीय दल का नेतृत्व कर रहा था तथा उसके वाहन को जब्त कर लिया।
- मार्च 1963 के अंत तक, अधिकांश भारतीय सैनिक मिशन से वापस आ गए थे।
- लोकसभा को संबोधित करते हुए तत्कालीन उप रक्षा मंत्री डी.आर. चव्हाण ने बताया कि इस ऑपरेशन के दौरान कुल 36 भारतीय सशस्त्र बल कर्मियों ने अपनी जान गंवाई थी।
- सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन II (यूनाइटेड नेशंस ऑपरेशंस इन सोमालिया/UNOSOM) मार्च 1993 से 1995 तक चला एवं दुर्भाग्य से शत्रुतापूर्ण कृत्यों के कारण 12 भारतीय सैनिकों एवं विशेषज्ञों की मृत्यु हो गई।
- जारी मिशनों के संदर्भ में, दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूनाइटेड नेशंस मिशन इन साउथ सूडान/UNMISS) में दुखद रूप से सात भारतीय सैनिकों की मृत्यु हुई है।
संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भारतीय सैनिक, वर्तमान स्थिति
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों के लिए सैनिकों तथा विशेषज्ञों के योगदान के मामले में बांग्लादेश (7,237) एवं नेपाल (6,264) के बाद कुल 6,097 कर्मियों के साथ भारत का तीसरा स्थान है।
- इसके ठीक पीछे रवांडा (5,935) एवं पाकिस्तान (4,334) आते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि शीर्ष पांच योगदानकर्ताओं में से चार भारतीय उपमहाद्वीप से हैं।
- यह भी उल्लेखनीय है कि सेना एवं विशेषज्ञ योगदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा निर्धन अथवा मध्यम-आय के रूप में वर्गीकृत देशों से आता है।
- आज तक चलाए गए 71 ऑपरेशनों के दौरान, 125 देशों के उल्लेखनीय 2 मिलियन शांति सैनिकों ने इन मिशनों में भाग लिया है।
- दक्षिण सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMISS) में 2,426 व्यक्तियों की संख्या वाले भारतीय कर्मियों का सबसे बड़ा दल तैनात है।
निष्कर्ष
UNMISS के बाद, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र स्थिरीकरण मिशन (यूनाइटेड नेशंस स्टेबलाइजेशन मिशन इन द डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो/MONUSCO) में 1,971 कर्मियों तथा लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (यूनाइटेड नेशन इंटरिम फोर्स इन लेबनान/UNIFIL) में 875 कर्मियों के साथ महत्वपूर्ण भारतीय योगदान देखा जाता है।