द हिंदू संपादकीय विश्लेषण: यूपीएससी एवं अन्य राज्य पीएससी परीक्षाओं के लिए प्रासंगिक विभिन्न अवधारणाओं को सरल बनाने के उद्देश्य से द हिंदू अखबारों के संपादकीय लेखों का संपादकीय विश्लेषण। संपादकीय विश्लेषण ज्ञान के आधार का विस्तार करने के साथ-साथ मुख्य परीक्षा हेतु बेहतर गुणवत्ता वाले उत्तरों को तैयार करने में सहायता करता है। आज का हिंदू संपादकीय विश्लेषण ‘तलाक पाने वाली अधिकांश महिलाओं को इसकी ओर धकेला गया’ पर चर्चा करता है कि कैसे पतियों द्वारा महिलाओं को तलाक लेने के लिए प्रेरित करने वाले यौन शोषण एवं विवाह के मामलों में के “उबारने की उम्मीद से परे बर्बाद” होने के मामलों में अनिवार्य कूलिंग ऑफ अवधि को हटाने पर हाल के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के संदर्भ में इस पर चर्चा करता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सुधार से परे विवाह में युगलों के लिए यह कहते हुए राहत प्रदान की है कि छह से 18 माह की कूलिंग-ऑफ अवधि से केवल अधिक नुकसान होगा। ऐसे जोड़ों को न्याय दिलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विवेकाधिकार का उपयोग किया है।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय संभावित रूप से भारतीय महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले संकट को कम कर सकता है जो तलाक की मांग करती हैं।
वर्तमान में विवाहित महिलाओं की तुलना में तलाकशुदा महिलाओं में अपमान, अवमानना तथा धमकियों जैसी भावनात्मक हिंसा का प्रसार दो गुना अधिक था।
यह ध्यान देने योग्य है कि हालिया विवाहित महिलाओं का अनुपात जिन्होंने अपने पति से दुर्व्यवहार का अनुभव किया है, तलाकशुदा/अलग रहने वाली महिलाओं के मध्य उच्च प्रतिशत के बावजूद अपेक्षाकृत कम है। हालांकि, वर्तमान में विवाहित महिलाओं में से 30% से अधिक ने अपने जीवन में किसी समय भावनात्मक, शारीरिक अथवा यौन हिंसा का सामना किया है। चौंकाने वाली बात यह है कि उनमें से लगभग 80% ने इसका खुलासा किसी के सामने नहीं किया, जो आंशिक रूप से भारत में तलाक की कम दर की व्याख्या करता है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला महिलाओं को अपने जीवन में तेजी से आगे बढ़ने में सहायता कर सकता है, क्योंकि वर्तमान में विवाहित महिलाओं की तुलना में तलाकशुदा महिलाओं के पास रोजगार की दर अधिक है।
यद्यपि तलाकशुदा महिलाओं ने अलग होने के बाद अधिक स्वतंत्रता प्राप्त की है, उनकी स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। उनमें से केवल लगभग 70% को अकेले ही विभिन्न स्थानों की यात्रा करने एवं अपने पैसे के बारे में निर्णय लेने की अनुमति है।
प्र. तलाक के मामलों में कूलिंग ऑफ पीरियड क्या है?
उत्तर. कूलिंग ऑफ पीरियड तलाक के पहले एवं दूसरे प्रस्ताव के बीच छह माह की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि है। इस अवधि के दौरान, अदालत विवाहित युगलों को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने एवं सुलह करने का प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
प्र. सर्वोच्च न्यायालय ने क्यों कहा कूलिंग-ऑफ पीरियड अधिक नुकसान पहुंचा सकता है?
उत्तर. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां विवाह की स्थिति में सुधार नहीं हो पाता है, कूलिंग ऑफ पीरियड स्थिति में सुधार करने से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। यह शामिल पक्षों की पीड़ा तथा वेदना को बढ़ा सकता है एवं उनकी मानसिक एवं भावनात्मक स्थिति को खराब कर सकता है।
प्र. संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?
उत्तर. भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले या उसके समक्ष लंबित मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने की शक्ति प्रदान करता है। यह प्रावधान प्रायः उन मामलों में उपयोग किया जाता है जहां कानून सम्मिलित पक्षकारों को न्याय अथवा राहत प्रदान करने में विफल रहता है।
प्र. क्या सर्वोच्च न्यायालय तलाक के मामलों में अनुच्छेद 142 का उपयोग कर सकता है?
उत्तर. हां, तलाक के मामलों में सम्मिलित पक्षों को न्याय दिलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत अपने असाधारण विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। यह उन मामलों में किया जा सकता है जहां कानून राहत प्रदान करने में विफल रहता है अथवा जहां पक्षकार सुधार की स्थिति से परे पीड़ादायक विवाहों में फंस जाते हैं।
कूलिंग ऑफ पीरियड तलाक के पहले एवं दूसरे प्रस्ताव के बीच छह माह की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि है। इस अवधि के दौरान, अदालत विवाहित युगलों को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने एवं सुलह करने का प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जहां विवाह की स्थिति में सुधार नहीं हो पाता है, कूलिंग ऑफ पीरियड स्थिति में सुधार करने से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। यह शामिल पक्षों की पीड़ा तथा वेदना को बढ़ा सकता है एवं उनकी मानसिक एवं भावनात्मक स्थिति को खराब कर सकता है।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी मामले या उसके समक्ष लंबित मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने की शक्ति प्रदान करता है। यह प्रावधान प्रायः उन मामलों में उपयोग किया जाता है जहां कानून सम्मिलित पक्षकारों को न्याय अथवा राहत प्रदान करने में विफल रहता है।
हां, तलाक के मामलों में सम्मिलित पक्षों को न्याय दिलाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत अपने असाधारण विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। यह उन मामलों में किया जा सकता है जहां कानून राहत प्रदान करने में विफल रहता है अथवा जहां पक्षकार सुधार की स्थिति से परे पीड़ादायक विवाहों में फंस जाते हैं।
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