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मध्यस्थता विधेयक 2021- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: भारतीय संविधान- संसद एवं राज्य विधानमंडल – संरचना, कार्यकरण, कार्यों का संचालन, शक्तियां एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।
समाचारों में मध्यस्थता विधेयक
- हाल ही में, वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता में विधि एवं न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने मध्यस्थता विधेयक में पर्याप्त बदलाव की सिफारिश की है।
- मध्यस्थता विधेयक का उद्देश्य मध्यस्थता को संस्थागत बनाना एवं भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना करना है।
मध्यस्थता विधेयक पर सांसदों के पैनल की सिफारिश
- अनिवार्य मुकदमेबाजी-पूर्व मध्यस्थता पर: मुकदमेबाजी-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य बनाना-
- वास्तव में मामलों में विलंब का कारण बनता है एवं
- मामलों के निपटारे में विलंब करने के लिए गैरहाजिर रहने वाले वादियों के हाथ में एक अतिरिक्त उपकरण सिद्ध होता है।
- मध्यस्थता विधेयक पर पैनल की सिफारिश ने केंद्र को उच्चतर न्यायालयों को मध्यस्थता के लिए नियम निर्मित करने की शक्ति देने के प्रावधान के विरुद्ध चेतावनी दी।
- विधेयक का खंड 26 यह प्रावधान करता है कि न्यायालय द्वारा उपाबद्ध मध्यस्थता उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा किसी भी नाम से संबोधित किए जाने वाले अभ्यास, निर्देशों या नियमों के अनुसार संचालित की जाएगी।
- पैनल ने सिफारिश की कि खंड 26 के वर्तमान प्रावधानों के स्थान पर न्यायालय द्वारा संलग्न मध्यस्थता के बारे में विशिष्ट प्रावधान किए जाने चाहिए।
- मध्यस्थता विधेयक पर पैनल ने सरकार एवं उसकी एजेंसियों से जुड़े गैर-व्यावसायिक प्रकृति के विवादों/मामलों पर विधेयक के प्रावधानों के लागू न होने पर भी सवाल उठाया।
- एमसीआई सदस्यों पर: उन्होंने प्रस्तावित मध्यस्थता परिषद (मेडिएशन काउंसिल ऑफ इंडिया/एमसीआई) के अध्यक्ष एवं सदस्यों की योग्यता एवं नियुक्ति पर भी चर्चा की।
- पैनल इस बात पर बल देता है कि एमसीआई के अध्यक्ष एवं पूर्णकालिक सदस्यों के पास ‘मध्यस्थता’ में ‘प्रदर्शित क्षमता’ तथा ‘ज्ञान एवं अनुभव’ होना चाहिए।
- विधेयक में वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, ‘वैकल्पिक परिवाद समाधान’ से संबंधित समस्याओं से निपटने वाले व्यक्ति परिषद के सदस्य तथा अध्यक्ष बन सकते हैं।
- राज्य मध्यस्थता परिषदों का गठन: अनुशंसा करते हैं कि भारतीय मध्यस्थता परिषद को सौंपे गए कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों की व्यापक परिधि को ध्यान में रखते हुए, राज्यों में भी मध्यस्थता परिषदों की स्थापना की जानी चाहिए।
- इन राज्य मध्यस्थता परिषदों को भारतीय मध्यस्थता परिषद के समग्र अधीक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण के तहत कार्य करना है तथा ऐसे कार्यों/दायित्वों का निर्वहन करना है जो इसके (भारतीय मध्यस्थता परिषद) द्वारा निर्दिष्ट किए जाएं।
- मध्यस्थों पर: पैनल का मानना है कि मध्यस्थों को पंजीकृत करने वाले अनेक निकायों के स्थान पर, प्रस्तावित मध्यस्थता परिषद को मध्यस्थों के पंजीकरण एवं मान्यता प्रदान करने हेतु नोडल प्राधिकरण बनाया जाना चाहिए। यह ये भी सिफारिश करता है कि-
- मध्यस्थता परिषद द्वारा प्रत्येक मध्यस्थ को एक विशिष्ट पंजीकरण संख्या प्रदान की जानी चाहिए,
- मध्यस्थता परिषद को समय-समय पर प्रशिक्षण सत्र आयोजित करके मध्यस्थ का निरंतर मूल्यांकन करने का अधिकार होना चाहिए एवं
- मध्यस्थ को मध्यस्थता का संचालन करने के योग्य होने हेतु वार्षिक आधार पर न्यूनतम क्रेडिट अंक अर्जित करना चाहिए।
प्रारूप मध्यस्थता विधेयक 2021: मुख्य विशेषताएं
- प्रारूप विधेयक मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता का प्रस्ताव करता है एवं साथ ही तत्काल राहत की मांग के मामले में सक्षम न्यायिक मंचों/न्यायालयों से संपर्क करने के संबंध में वादियों के हितों की रक्षा करता है।
- मध्यस्थता समझौता समझौते (मेडिएशन सेटेलमेंट एग्रीमेंट/एमएसए) के रूप में मध्यस्थता के सफल परिणाम को विधि द्वारा प्रवर्तनीय करने योग्य बनाया गया है। चूंकि मध्यस्थता समझौता समझौता पक्षकारों के मध्य सहमति से बाहर है, इसलिए सीमित आधार पर इसे चुनौती देने की अनुमति प्रदान की गई है।
- मध्यस्थता प्रक्रिया की गई मध्यस्थता की गोपनीयता की रक्षा करती है एवं कतिपय मामलों में इसके प्रकटीकरण के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करती है।
- 90 दिनों के भीतर राज्य / जिला / तालुका विधिक प्राधिकरणों के साथ मध्यस्थता निपटान समझौते का पंजीकरण भी प्रदान किया गया है ताकि इस तरह से पहुंचे निपटान के प्रमाणित रिकॉर्ड के रखरखाव को सुनिश्चित किया जा सके।
- भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना का प्रावधान करता है।
- सामुदायिक मध्यस्थता का प्रावधान करता है।