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कोल गैसीकरण यूपीएससी: प्रासंगिकता
- जीएस 3: आधारिक अवसंरचना: ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, हवाई अड्डे, रेलवे इत्यादि।
राष्ट्रीय कोल गैसीकरण मिशन: प्रसंग
- हाल ही में, केंद्र सरकार ने कोयले के उपयोग में विविधता लाने के लिए 2030 तक 100 मिलियन टन (एमटी) कोल गैसीकरण प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय मिशन दस्तावेज तैयार किया है।
2030 तक कोयला गैसीकरण: प्रमुख बिंदु
- भारत में 307 अरब टन तापीय कोयले का भंडार उपस्थित है एवं उत्पादित कोयले का लगभग 80 प्रतिशत ताप विद्युत संयंत्रों में उपयोग किया जाता है।
- पर्यावरणीय चिंताओं एवं नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के कारण इसके सतत उपयोग के लिए कोयले का विविधीकरण अनिवार्य हो गया है।
- कोल गैसीकरण भविष्य है तथा इसे दाहक कोयले की तुलना में एक स्वच्छ विकल्प माना जाता है।
कोल गैसीकरण क्या है?
- कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ईंधन गैस का उत्पादन करने के लिए कोयले को हवा, ऑक्सीजन, भाप या कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा नियंत्रित परिस्थितियों में आंशिक रूप से ऑक्सीकृत किया जाता है।
- कोयला गैसीकरण प्रक्रिया: इसमें 5 चरण – गैसीकरण, शीतलन तथा सफाई, स्थानांतरण, शुद्धिकरण एवं उपयोग सम्मिलित होते हैं।
भारत में कोल गैसीकरण
- 2020 में, कोयला मंत्रालय ने कहा कि भारत का लक्ष्य 2030 तक 100 मिलियन टन (एमटी) कोयला गैसीकरण करना है, जिसमें 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश होगा।
- 2021 में, सरकार ने भविष्य में इसे धारणीय रूप से उपयोग करने के लिए राष्ट्रीय कोल गैसीकरण मिशन प्रारंभ किया।
- सभी कोयला कंपनियों को एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने तथा अपने कोयला उत्पादन का कम से कम 10% गैसीकरण करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने की सलाह दी गई है।
- इसके अतिरिक्त, भविष्य की सभी वाणिज्यिक कोयला ब्लॉक नीलामियों में, गैसीकरण उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने वाले कोयले के लिए राजस्व हिस्सेदारी में 20% छूट का प्रावधान किया गया है, बशर्ते गैसीकरण के लिए उपयोग की जाने वाली कोयले की मात्रा कुल कोयला उत्पादन का कम से कम 10% हो।
कोल गैसीकरण: क्यों आवश्यक है?
- भारत, पेरिस समझौते, 2016 के हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते, तीन मात्रात्मक जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (नेशनली डिटरमाइंड कंट्रीब्यूशन/एनडीसी) के रूप में घोषित किया है।
- 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता में 33 से 35 प्रतिशत की कमी।
- 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता हासिल करना।
- 2030 तक अतिरिक्त वृक्ष एवं वन आवरण के माध्यम से 5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक निर्मित करना।
- भारत के अधिकांश ज्ञात कोयला भंडार गैर- पुनर्प्राप्ति योग्य हैं क्योंकि वे गहरे, बिखरे हुए एवं वनों से आच्छादित हैं।
- भूमिगत कोयला गैसीकरण इस भरपूर भंडार को निष्कर्षित करने में सहायता कर सकता है।
कोल गैसीकरण के लाभ
- पर्यावरणीय लाभ: कोल गैसीकरण ऊर्जा उत्पादन का अधिक पर्यावरण अनुकूल विधि प्रदान करता है। गैसीकरण की प्रक्रिया कार्बनिक पदार्थों को कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड एवं हाइड्रोजन गैस में परिवर्तित करती है। जीवाश्म ईंधन से विद्युत उत्पादन के लिए इस प्रक्रिया का व्यापक रूप से औद्योगिक पैमाने पर उपयोग किया जाता है। गैसीकरण संयंत्र वायु प्रदूषकों की अत्यधिक न्यून मात्रा का उत्पादन करते हैं।
- आर्थिक लाभ: गैसीकरण का उपयोग कम कीमत वाले फीडस्टॉक, जैसे पेट कोक एवं कोयले को विद्युत, ईंधन तथा उर्वरक जैसे मूल्यवान उत्पादों में बदलने के लिए किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, गैसीकरण विद्युत विद्युत संयंत्र की परिचालन लागत पारंपरिक कोयले से संचालित होने वाले संयंत्रों की तुलना में कम है तथा इसके लिए अल्प प्रदूषण नियंत्रण उपकरण की आवश्यकता होती है।
- परिवहन ईंधन का उत्पादन: गैसीकरण प्रक्रिया का उपयोग मेथनॉल एवं अमोनिया तथा यूरिया जैसे रसायनों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जो अनेक उर्वरकों के लिए आधारभूत हैं। गैसीकरण का उपयोग तेल रेत, कोयले एवं बायोमास से परिवहन ईंधन के उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है।
- विश्वसनीय तकनीक: परिशोधन (रिफाइनिंग), उर्वरक एवं रासायनिक उद्योगों में 50 से अधिक वर्षों से संपूर्ण विश्व में वाणिज्यिक स्तर पर गैसीकरण का उपयोग किया गया है। जैसे-जैसे गैसीकरण का उपयोग नगरपालिका एवं खतरनाक अपशिष्ट रूपांतरण में होता है, संयंत्र संचालकों के पास संसाधनों के संरक्षण तथा हानिकारक उत्सर्जन को सीमित करने का अवसर होता है।