Table of Contents
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
जीएस पेपर II- स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र / सेवाओं के विकास एवं प्रबंधन से संबंधित मुद्दे
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा चर्चा में क्यों है?
- हाल ही में, शिक्षा मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि उन्हें राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के ढांचे को संशोधित करने हेतु अनेक राज्यों से इनपुट प्राप्त नहीं हुआ है।
शिक्षा
शिक्षा मानव की पूर्ण क्षमता को प्राप्त करने, एक समान एवं न्यायसंगत समाज के विकास तथा राष्ट्रीय विकास को प्रोत्साहन देने हेतु मौलिक है। 2015 में भारत द्वारा अपनाए गए सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के लक्ष्य 4 (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स/एसडीजी 4) में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा – 2030 तक “समावेशी एवं समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना तथा सभी के लिए आजीवन शिक्षण के अवसरों को बढ़ावा देना” (इंश्योर इंक्लूसिव एंड इक्विटेबल क्वालिटी एजुकेशन एंड प्रमोट लाइफ लोंग लर्निंग अपॉर्चुनिटी फॉर ऑल) का आकांक्षी है। लक्ष्य के लिए संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन एवं शिक्षण को प्रोत्साहन देने हेतु पुन: समनुरूप करने की आवश्यकता होगी, ताकि सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी महत्वपूर्ण प्रयोजनों एवं लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त किया जा सके।
भारत के लिए 2040 तक एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का लक्ष्य होना चाहिए जो किसी से पीछे न हो, सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि पर ध्यान दिए बिना सभी शिक्षार्थियों के लिए उच्चतम गुणवत्ता वाली शिक्षा तक समान पहुंच हो। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 21वीं सदी की प्रथम शिक्षा नीति है जो हमारे देश की अनेक बढ़ती विकासात्मक अनिवार्यताओं को संबोधित करती है, जिसमें एक नवीन शिक्षा प्रणाली का निर्माण करने हेतु इसके विनियमन एवं शासन सहित शिक्षा संरचना के समस्त पहलुओं के संशोधन तथा सुधार के प्रस्ताव सहित भारत की परंपराओं एवं मूल्य प्रणालियों पर आधारित होते हुए, एसडीजी 4 सहित 21 वीं सदी की शिक्षा के आकांक्षात्मक लक्ष्यों के समनुरूप है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुसार, निम्नलिखित चार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा विकसित की जाएगी:
- आरंभिक बाल्यावस्था की देखभाल एवं शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन/NCFECCE)
- विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर स्कूल एजुकेशन/NCFSE)
- शिक्षक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर टीचर एजुकेशनNCFTE)
- प्रौढ़ शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा ( नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर एडल्ट एजुकेशन/ एनसीएफएई)
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा क्या है?
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) का उद्देश्य हमारे विद्यालयों एवं कक्षाओं में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी/एनईपी) 2020 के दृष्टिकोण को वास्तविकता में परिवर्तित करके देश में उत्कृष्ट शिक्षण तथा अधिगम को सशक्त बनाना एवं सक्षम करना है।
- राष्ट्रीय संचालन समिति (नेशनल स्टीयरिंग कमिटी/NSC), डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में, अधिदेश समूह द्वारा समर्थित, राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग/NCERT) के साथ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा के विकास का नेतृत्व कर रही है।
क्रियान्वयन
राज्य स्तर पर
-
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार चिन्हित 25 क्षेत्रों/विषयों में राज्य फोकस समूहों द्वारा जिला स्तरीय परामर्श, मोबाइल ऐप सर्वेक्षण एवं स्थिति पत्रों (पोजीशन पेपर्स) के विकास के आधार पर, सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सर्वप्रथम अपने राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एससीएफ) तैयार करेंगे।
-
- शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाले राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एवं स्वायत्त संगठन एनसीएफ के लिए इनपुट प्रदान करेंगे।
राष्ट्रीय स्तर पर
-
- एनसीईआरटी माय गॉव (MyGov) पोर्टल पर एक सर्वेक्षण करेगा एवं पाठ्यक्रम कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया प्राप्त करेगा।
महत्व
- अधिदेश दस्तावेज़: पूर्व में जारी नवीन शिक्षा नीति 2020 के तहत एनसीएफ के विकास के लिए दिशा-निर्देशों का उद्देश्य बच्चों के समग्र विकास, कौशल पर बल देना, शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका, मातृभाषा में सीखना, सांस्कृतिक सुदृढ़ता लाना है एवं इसे वि-उपनिवेशीकरण की दिशा में एक कदम के रूप में माना जा सकता है।
- भारतीय शिक्षा प्रणाली के अधिदेश समूह ने 28 फरवरी 2023 को नवीन एनसीएफ के आधार पर पाठ्यक्रम के संशोधन की समय सीमा निर्धारित की है।
- औद्योगीकरण, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद ने इस विश्व को प्रभावित किया है जिसने भारत को दो शताब्दियों तक ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश बना दिया था।
- ब्रिटेन की राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति ने भारतीय जीवन के प्रत्येक परिवेश को प्रभावित करते हुए भारतीय इतिहास को अपने नियंत्रण के अधीन कर लिया।
- औपनिवेशिक राज्य के संरक्षण में शिक्षा के औपनिवेशिक प्रतिमान ने भारत की स्वदेशी शिक्षा प्रणाली को विस्थापित कर दिया एवं यह उपनिवेश की आबादी के लिए स्वाभाविक बाध्यता (प्राकृतिक दायित्व) बन गई।
- यद्यपि भारत को 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी, भारत में उपनिवेशवादी शैक्षिक मॉडल वर्तमान में भी प्रचलित है एवं इससे भारतीय शिक्षा प्रणाली को शीघ्र ही समाप्त करने की आवश्यकता है।
नवीन पाठ्यक्रम के माध्यम से, समस्त छात्रों का विकास होगा
- मूलभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता ( फाऊंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमैरेसी/FLN)
- लैंगिक समानता सहित संवैधानिक एवं अन्य मानवीय मूल्य।
- भारत में एक सुदृढ़ता तथा गौरव।
- सेवा की भावना (सेवा) दूसरों की आवश्यकताओं के लिए, अपने देश के लिए एवं संपूर्ण विश्व के लिए।
- बोलने, लिखने, बहुभाषावाद, वैज्ञानिक स्वभाव, कलात्मकता एवं सौंदर्यशास्त्र, समस्या-समाधान, स्थायी जीवन, सांस्कृतिक साक्षरता, सामाजिक-भावनात्मक क्षमता तथा संभवत सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप से जीवन काल में स्वयं की सीखने की क्षमता सहित 21 वीं सदी की क्षमताएं।
- उच्च शिक्षा एवं लाभकारी नियोजन हेतु तत्परता (एक वास्तविक बहु-विषयक एवं समग्र शिक्षा छात्रों को न केवल उनकी पहली नौकरी के लिए, बल्कि उनकी दूसरी तथा तीसरी नौकरी के लिए भी तैयार करेगी!)।
भारत में शिक्षा एक नज़र में
संवैधानिक प्रावधान
-
- भारतीय संविधान का भाग IV, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी/DPSP) के अनुच्छेद 45 एवं अनुच्छेद 39 (एफ) में राज्य द्वारा वित्त पोषित होने के साथ-साथ न्यायसंगत एवं सुलभ शिक्षा का प्रावधान है।
- 1976 में संविधान के 42वें संशोधन ने शिक्षा को राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।
- केंद्र सरकार की शिक्षा नीतियां एक व्यापक दिशा प्रदान करती हैं एवं राज्य सरकारों से इसका अनुपालन करने की अपेक्षा की जाती है। किंतु यह अनिवार्य नहीं है, उदाहरण के लिए तमिलनाडु 1968 में प्रथम शिक्षा नीति द्वारा निर्धारित त्रि-भाषा फार्मूले का पालन नहीं करता है।
- 2002 में 86वें संशोधन ने अनुच्छेद 21-ए के तहत शिक्षा को प्रवर्तनीय अधिकार बना दिया।
- शिक्षा का अधिकार (राइट टू एजुकेशन/आरटीई) अधिनियम, 2009 का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना है एवं शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू करना है, जिसमें समाज के वंचित वर्गों के लिए 25% आरक्षण अनिवार्य है।
सरकार की पहल
-
- सर्व शिक्षा अभियान, मध्याह्न भोजन योजना, नवोदय विद्यालय (एनवीएस स्कूल), केंद्रीय विद्यालय (केवी स्कूल) एवं शिक्षा में सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग 1986 के राष्ट्रीय शिक्षा नीति का परिणाम है।