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राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: प्रासंगिकता

  • जीएस 2: वैधानिक, नियामक एवं विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय।

 

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: प्रसंग

  • हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण/नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की स्थिति को एक “अद्वितीय” मंच के रूप में घोषित किया है, जो देश भर में पर्यावरणीय मुद्दों को उठाने के लिए स्व प्रेरित शक्तियों से संपन्न है।

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राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: मुख्य बिंदु

  • न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को पर्यावरण की रक्षा करने हेतु अपनी मांसपेशियों को शिथिल करने के लिए अपने मंच पर दस्तक देने के लिए “लाक्षणिक गोडोट” (मेटाफोरिकल गोडोट) की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।
  • शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जब पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं एवं मामला दीवानी प्रकृति का होता है तथा वे अधिनियम से संबंधित होते हैं, तो  राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण या तो सुधार की दिशा में या हानि के रोकथाम की दिशा में कार्रवाई कर सकता है।
  • न्यायालय ने केंद्र, विधि विशेषज्ञों एवं हां तक ​​कि न्यायालय के स्वयं के न्याय मित्र की आपत्तियों को खारिज कर दिया है, जिन्होंने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के विरुद्ध स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति के खिलाफ तर्क दिया था।

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राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के बारे में

  • पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी एवं शीघ्र निस्तारण के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के तहत राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई है।
  • यह बहु-विषयक मुद्दों से जुड़े पर्यावरणीय विवादों को संभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता से सुसज्जित एक विशेष निकाय है।
  • ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड के बाद भारत एक विशेष इक्रित पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला विश्व का तीसरा देश बन गया एवं ऐसा करने वाला प्रथम विकासशील देश बन गया है।
  • प्रारंभ में, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को पांच स्थानों पर स्थापित करने का प्रस्ताव है एवं स्वयं को और अधिक सुलभ बनाने हेतु खंडपीठ प्रक्रिया का पालन करेगा।
    • नई दिल्ली न्यायाधिकरण की पीठ का प्रमुख स्थान है एवं भोपाल, पुणे, कोलकाता तथा चेन्नई न्यायाधिकरण की पीठ के अन्य चार स्थान होंगे।

स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: संरचना

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण में एक अध्यक्ष, न्यायिक सदस्य एवं विशेषज्ञ सदस्य सम्मिलित होते हैं।
  • सदस्य पांच वर्ष की अवधि हेतु पद धारण करेंगे एवं पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे।
  • अध्यक्ष की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
  • केंद्र सरकार द्वारा गठित एक चयन समिति, न्यायिक सदस्यों एवं विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति करती है।
  • न्यायाधिकरण में न्यूनतम 10 एवं अधिकतम 20 पूर्णकालिक न्यायिक सदस्य एवं विशेषज्ञ सदस्य होंगे।

 

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: शक्तियां एवं अधिकार क्षेत्र

  • पर्यावरण से संबंधित प्रश्नों से जुड़े सभी दीवानी मामलों पर न्यायाधिकरण का क्षेत्राधिकार है।
  • पर्यावरण से संबंधित एवं उससे संबंधित अथवा उसके आनुषंगिक मामलों के लिए किसी भी विधिक अधिकार का प्रवर्तन एवं व्यक्तियों तथा संपत्ति को हुए नुकसान के लिए राहत  तथा क्षतिपूर्ति प्रदान करना।
  • न्यायाधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं है, किंतु प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
  • न्यायाधिकरण को आवेदनों या अपीलों को दाखिल करने के 6 माह के भीतर निस्तारण हेतु अधिदेशित है।
  • कोई आदेश/निर्णय/अधिनिर्णय पारित करते समय, यह पूर्वोपाय सिद्धांत, सतत विकास के सिद्धांतों, एवं प्रदूषक भुगतान सिद्धांत को लागू करेगा।

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राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण: विधान

  • जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974,
  • जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977,
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980,
  • वायु (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981,
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986,
  • सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 एवं
  • जैविक विविधता अधिनियम, 2002।

 

 

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