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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) क्या है?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) भारत में एक स्वतंत्र सरकारी एजेंसी है जिसका काम मानवाधिकारों की रक्षा और प्रचार करना है। 2006 में अतिरिक्त संशोधनों के साथ, इसे 1993 के “मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम” के तहत भारतीय संविधान के अनुरूप एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था।

एनएचआरसी के बारे में मुख्य बातें

  • गठन: एनएचआरसी एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (पीएचआरए), 1993 के प्रावधानों के अनुसार की गई थी, जिसे बाद में 2006 में संशोधित किया गया।

o    मुख्यालय: नई दिल्ली, भारत

  • वैधानिक अधिदेश: यह मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के लिए उत्तरदायी है।

o    मानवाधिकार: पीएचआरए मानव अधिकारों को संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकारों के रूप में परिभाषित करता है या अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सन्निहित है और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है।

  • पेरिस सिद्धांतके समनुरूप: जिसे अक्टूबर 1991 में पेरिस में आयोजित मानव अधिकारों के प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था, और 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।

o   एनएचआरसी मानवाधिकारों के प्रोत्साहन और संरक्षण के लिए भारत के सरोकार का प्रतीक है।

एनएचआरसी की संरचना

2019 में पीएचआरसी में संशोधन के पश्चात, एनएचआरसी के संगठनात्मक ढांचे में अनिवार्य योग्यता वाले निम्नलिखित सदस्य सम्मिलित हैं-

            सदस्य                         नियुक्ति मानदंड
एक अध्यक्ष जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो (2019 में एक संशोधन के पश्चात समाविष्ट किया गया)
एक सदस्य जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा हो

 

एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है या रहा हो
तीन सदस्य (जिनमें से एक महिला होनी चाहिए) मानव अधिकारों से संबंधित मामलों के ज्ञान, या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्तियों में से नियुक्त किया जाना है

 

मानित / पदेन सदस्य

 

 

निम्नलिखित निकायों के अध्यक्ष-

·         अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग;

·         राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग;

·         राष्ट्रीय महिला आयोग;

·         राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग;

·         राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और

·         विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त

सदस्यों की नियुक्ति: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति, एनएचआरसी के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करते हैं। इस उच्चाधिकार प्राप्त समिति की संरचना में सम्मिलित होते हैं-

  1.       प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
  2.       भारत के गृह मंत्री
  3.       लोकसभा में विपक्ष के नेता (लोक सभा)
  4.       राज्यसभा में विपक्ष के नेता (राज्यों की परिषद)
  5.       लोकसभा अध्यक्ष (लोक सभा)
  6.       राज्य सभा के उपसभापति (राज्यों की परिषद)
  • कार्यकाल: आयोग के अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, तक पद धारण करते हैं।

o   वे पुनर्नियुक्ति के लिए भी पात्र होंगे।

  • पदच्युति के लिए आधार:

o   पदच्युति राष्ट्रपति द्वारा दिवालियेपन, विकृत चित्तशारीरिक अथवा मानसिक दुर्बलता, किसी अपराध के लिए कारावास का दंड प्राप्त, या वेतन भोगी नियोजन में नियुक्त होने के आधार पर की जाती है।

o   उसे सिद्ध कदाचार या अक्षमता के लिए भी पदच्युत किया जा सकता है यदि सर्वोच्च न्यायालय जांच में उसे दोषी पाती है ।

o   वे राष्ट्रपति को लिखित में अपना त्यागपत्र सौंप सकते हैं

एनएचआरसी की शक्तियां और कार्य

  • हस्तक्षेप: यह न्यायालय के समक्ष लंबित मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप से संबंधित किसी भी कार्यवाही में  उक्त न्यायालय की स्वीकृति से हस्तक्षेप करता है ।
  • जाँच: यह किसी लोक सेवक द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन या इस तरह के उल्लंघन की रोकथाम में उपेक्षा की किसी भी शिकायत की जांच कर सकता है।

o   शिकायतों की जांच करते समय, आयोग को एक दीवानी न्यायालय की समस्त शक्तियां प्राप्त हैं।

  • अतिसंवेदनशील व्यक्तियों के हितों की रक्षा: उदाहरण के लिए, एनएचआरसी किसी भी कारागृह या राज्य सरकार के नियंत्रण में किसी अन्य संस्थान में कैदियों कीनिवास की स्थितियों को देखने और उस पर सिफारिशें करने के लिए जा सकता है।
  • विस्तार क्षेत्र: यह केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए उपयुक्त कदम उठाने की सिफारिश कर सकता है।

o   यह अपना वार्षिक प्रतिवेदन भारत के राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है जो इसे संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

o   आयोग मानवाधिकारों पर संधियों और अंतर्राष्ट्रीय उपकरणों का भी अध्ययन करता है और सरकार को उनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए संस्तुतियां करता है।

  • जागरूकता उत्पन्न करना: एनएचआरसी समाज के विभिन्न वर्गों केमध्य मानवाधिकार साक्षरता का प्रसार करता है और प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों और अन्य उपलब्ध माध्यमों के माध्यम से इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए उपलब्ध सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है।

o   यह  मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व के अन्य मानवाधिकार संगठनों के साथ समन्वय करने में भी सक्रिय भूमिका निभाता है।

  • इसने संयुक्त राष्ट्र निकायों और अन्य राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगों के प्रतिनिधिमंडलों के साथ-साथ नागरिक समाज के सदस्यों, अधिवक्ताओंतथा अनेक देशों के राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मेजबानी की है।
  • नागरिक समाजों के साथ सहयोग: यह मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों और संस्थानों के प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।

o   यह मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने और गैर सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित करने के लिए भी जाना जाता है।

एनएचआरसी के साथ संबद्ध चुनौतियां

  • परामर्श की अनुशंसात्मक प्रकृति: इसका तात्पर्य है कि यह विधिक रूप से अपने निर्णयों को लागू नहीं कर सकता है और इसके लिए संबंधित प्राधिकारी की इच्छा पर निर्भर करता है। अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अधिकार की कमी के कारण इसके निर्णय को सीधे तौर पर भी अस्वीकृत किया जा सकता है।
  • स्वतंत्र जांच तंत्र का अभाव: क्योंकि इसकी अपनी स्वतंत्र जांच मशीनरी नहीं है। इसलिए, इसे सीबीआई जैसी अन्य एजेंसियों पर निर्भर रहना होगा जो निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं भी कर सकती है।
  • समय अवधि की बाध्यता: मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत, मानवाधिकार आयोग ऐसी किसी घटना की जांच नहीं कर सकता है, यदि शिकायत घटना के एक वर्ष से अधिक समय के पश्चात की गई हो। इसलिए, बड़ी संख्या में वास्तविक शिकायतों का समाधान नहीं हो पाता है।
  • कई बार एनएचआरसी को राजनीतिक संबद्धता वाले न्यायाधीशों और नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद के गंतव्य के रूप में देखा जाता है। इसके साथ ही धनकी अपर्याप्तता भी इसके प्रभावी कार्य संचालन में बाधा उत्पन्न करती है।
  •  एनएचआरसी की जांच शक्तियों से सशस्त्र बलों का अपवर्जन भारत में मानवाधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करने के लिए अपनी शक्तियों और अधिकार को और प्रतिबंधित करता है।

भारत में मानवाधिकार की स्थिति में सुधार के लिए सुझाव

  • एनएचआरसी में सुधार:

o   प्रवर्तन प्राधिकारियों द्वारा इसके निर्णयों का प्रवर्तन सुनिश्चित करने की शक्तियाँ इसे सौंपकर।

o   स्वतंत्र जांच तंत्र: मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए एनएचआरसी के पूर्ण नियंत्रण में स्थापित किया जाना चाहिए।

o   नागरिक समाज से सम्बद्ध व्यक्तियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं आदि को सम्मिलित करके इसकी संरचना में विविधता लाना: इससे एनएचआरसी के नौकरशाही में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप संगठन का कामकाज बेहतर होगा।

  • सशस्त्र बल: सशस्त्र बलों की परिभाषा केवल थल सेना, नौसेना और वायुसेना तक ही सीमित होनी चाहिए।

o   इसके अतिरिक्त, यहां तक कि इन मामलों में भी आयोग को अधिकारों के उल्लंघन के मामलों की स्वतंत्र रूप से जांच करने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए।

  • एनएचआरसी को देश में मानवाधिकारों का एक प्रभावी प्रहरी बनने के लिए, एनएचआरसी को अधिक कुशलतापूर्वक और स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए सशक्त बनाना आवश्यक है। इससे भारत में मानवाधिकार की स्थिति को सुधारने औरसशक्त करने में सहायता मिलेगी।

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FAQs

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) क्या है?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) भारत में एक स्वतंत्र सरकारी एजेंसी है जिसका काम मानवाधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी सुरक्षा करना है। इसे 1993 में "मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम" के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था और बाद में 2006 में संशोधित किया गया था।

एनएचआरसी का अधिदेश क्या है?

NHRC भारत में मानवाधिकारों की सुरक्षा और प्रचार के लिए जिम्मेदार है। यह मानवाधिकारों को व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकारों के रूप में परिभाषित करता है, जो संविधान द्वारा गारंटीकृत या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों में सन्निहित हैं और भारत में अदालतों द्वारा लागू किए जाने योग्य हैं।

एनएचआरसी की संरचना क्या है?

एनएचआरसी में एक अध्यक्ष, एक सदस्य जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है, एक सदस्य जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश है या रहा है, और ज्ञान या व्यावहारिक ज्ञान वाले तीन सदस्य (एक महिला सहित) होते हैं। मानवाधिकार मामलों में अनुभव. इसमें विभिन्न राष्ट्रीय आयोगों के पदेन सदस्य भी शामिल हैं।