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नए दत्तक नियम- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- बच्चों से संबंधित मुद्दे।
नए दत्तक नियम चर्चा में क्यों है?
दत्तक ग्रहण करने (गोद लेने) के नए नियमों के कार्यान्वयन पर भ्रम की स्थिति है, जिसके लिए न्यायालयों से जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को गोद लेने की याचिकाओं को स्थानांतरित करने की आवश्यकता होती है।
- डीएम को न्यायालय के स्थान पर दत्तक ग्रहण करने के आदेश देने का अधिकार दिया गया है।
- न्यायालयों में लंबित सभी मामलों को स्थानांतरित किया जाना है।
- देश में सैकड़ों दत्तक माता-पिता अब चिंतित हैं कि स्थानांतरण प्रक्रिया में और विलंब होगा जो पूर्व से ही एक लंबी और थकाऊ प्रक्रिया है।
- ऐसे प्रश्न हैं कि क्या कार्यपालिका द्वारा पारित कोई आदेश तब पारित होगा जब एक दत्तक बच्चे के उत्तराधिकार एवं दाय पर अधिकारों को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जाती है।
भारत में दत्तक ग्रहण: एक पृष्ठभूमि
- 2015 में, तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री ने केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ( सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी/CARA) को सशक्त बनाकर संपूर्ण दत्तक ग्रहण प्रणाली को केंद्रीकृत किया।
- इसे विभिन्न विशिष्ट दत्तक ग्रहण एजेंसियों, बच्चों का एक पंजीयन कार्यालय (रजिस्ट्री), भावी दत्तक माता-पिता (अभिभावक) के साथ-साथ दत्तक ग्रहण करने से पूर्व उनका सुमेल करने का अधिकार दिया गया था।
- इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार एवं मानव दुर्व्यापार की जांच करना था क्योंकि बाल देखभाल संस्थान एवं गैर सरकारी संगठन केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के पश्चात बच्चों को सीधे गोद लेने के लिए दे सकते थे।
दत्तक ग्रहण आदेश जारी करेंगे डीएम
- किशोर न्याय अधिनियम (जुवेनाइल जस्टिस/जेजे अधिनियम), 2015 में संशोधन करने के लिए संसद ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया।
- प्रमुख परिवर्तनों में जिला मजिस्ट्रेटों एवं अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेटों को “कोर्ट” (न्यायालय) शब्द को हटाकर किशोर न्याय अधिनियम की धारा 61 के तहत दत्तक ग्रहण करने के आदेश जारी करने हेतु अधिकृत करना सम्मिलित है।
- एक सरकारी वक्तव्य के अनुसार, “मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने एवं उत्तरदायित्व में वृद्धि करने हेतु” ऐसा किया गया था।
- डीएम को अधिनियम के तहत बाल देखभाल संस्थानों का निरीक्षण करने के साथ-साथ जिला बाल संरक्षण इकाइयों, बाल कल्याण समितियों, किशोर न्याय बोर्डों, विशेष किशोर पुलिस इकाइयों, बाल देखभाल संस्थानों इत्यादि के कामकाज का मूल्यांकन करने का भी अधिकार प्रदान किया गया है।
संशोधित नियमों पर चिंता
- माता-पिता (अभिभावकों), कार्यकर्ताओं, अधिवक्ताओं एवं दत्तक ग्रहण करने वाली एजेंसियों को स्थानांतरित करना होगा तथा प्रक्रिया को नए सिरे से आरंभ करना होगा।
- इस तरह के आदेश में विलंब का अर्थ प्रायः यह हो सकता है कि बच्चे को विद्यालय में प्रवेश नहीं मिल सकता क्योंकि माता-पिता के पास अभी तक जन्म प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है।
- माता-पिता (अभिभावक) एवं अधिवक्ता यह भी कहते हैं कि न तो न्यायाधीश एवं न ही जिलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट/डीएम) को किशोर न्याय अधिनियम (जेजे एक्ट) में बदलाव के बारे में पता है, जिससे व्यवस्था में भ्रम उत्पन्न होता है एवं विलंब होता है।
- डीएम नागरिक मामलों को नहीं संभालते हैं जो एक बच्चे को विरासत एवं उत्तराधिकार के अधिकार प्रदान करते हैं।
- यदि बच्चे के 18 वर्ष का होने पर इन अधिकारों का विरोध किया जाता है, तो यह सुनिश्चित करने के लिए एक न्यायिक आदेश अधिक मान्य है कि बच्चा अपने अधिकारों से वंचित न रहे।
- सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) का कहना है कि देश में विभिन्न न्यायालयों में दत्तक ग्रहण करने के लगभग 1,000 मामले लंबित हैं।
- यह इतना बड़ा बोझ नहीं है।
भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया
- दत्तक ग्रहण दो कानूनों द्वारा शासित है:
- हिंदू दत्तक ग्रहण एवं निर्वाह अधिनियम, 1956 (हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट/HAMA): यह एक माता-पिता (अभिभावक) केंद्रित कानून है जो उत्तराधिकार, विरासत, परिवार के नाम की निरंतरता एवं अंतिम संस्कार के अधिकारों के लिए पुत्रहीन को पुत्र प्रदान करता है एवं इसमें बाद में बेटियों को दत्तक ग्रहण करने को शामिल किया गया था क्योंकि कन्यादान हिंदू परंपरा में धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
- किशोर न्याय अधिनियम, 2015: यह कानून के साथ संघर्ष में बच्चों के साथ-साथ देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के मुद्दों से संबंधित है एवं दत्तक ग्रहण करने पर मात्र एक छोटा अध्याय है।
- दत्तक माता-पिता के लिए दोनों कानूनों के अलग-अलग पात्रता मानदंड हैं।
- किशोर न्याय अधिनियम के तहत आवेदन करने वालों को सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के पोर्टल पर पंजीकरण कराना होता है जिसके बाद एक विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी एक गृह अध्ययन रिपोर्ट तैयार करती है।
- इसके बाद उम्मीदवार को दत्तक ग्रहण करने हेतु योग्य पाया जाता है, दत्तक ग्रहण करने के लिए कानूनी रूप से मुक्त घोषित बच्चे को आवेदक को संदर्भित किया जाता है।
- हिंदू दत्तक ग्रहण एवं निर्वाह अधिनियम के तहत, एक “दत्तक होम” समारोह या एक गोद लेने का विलेख या एक न्यायालय का आदेश अपरिवर्तनीय दत्तक ग्रहण अधिकार प्राप्त करने हेतु पर्याप्त है।
भारत में बच्चे को गोद लेने के मुद्दे
- माता-पिता (अभिभावक) केंद्रितता: वर्तमान दत्तक ग्रहण करने का दृष्टिकोण अत्यधिक अभिभावक-केंद्रित है, किंतु माता-पिता को इसे बाल-केंद्रित बनाना चाहिए।
- बच्चे की आयु: अधिकांश भारतीय माता-पिता भी शून्य एवं दो वर्ष की आयु के बीच एक बच्चा चाहते हैं, यह मानते हुए कि यह तब होता है जब माता-पिता का बच्चे से बंधन बनता है।
- संस्थागत मुद्दे: चूंकि परित्यक्त बच्चों एवं संस्थागत देखभाल में बच्चों का अनुपात एकतरफा है, अतः दत्तक ग्रहण करने हेतु पर्याप्त बच्चे उपलब्ध नहीं हैं।
- वंश भेदभाव: अधिकांश भारतीयों का दत्तक ग्रहण करने के बारे में एक विकृत दृष्टिकोण है क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके जीन, रक्त एवं वंश को उनके बच्चों में आगे बढ़ाया जाए।
- लालफीताशाही: 2016 के किशोर न्याय नियम एवं 2017 के दत्तक ग्रहण नियम लागू होने के बाद बच्चे को गोद लेना भी कोई सरल कार्य नहीं है।
दत्तक ग्रहण करने में व्यावहारिक मुद्दे
- दत्तक ग्रहण करने का अनुश्रवण एवं बच्चों की सोर्सिंग की पुष्टि करने तथा माता-पिता (अभिभावक) दत्तक ग्रहण करने हेतु उपयुक्त हैं अथवा नहीं, यह निर्धारित करने के लिए कोई नियम नहीं हैं।
- केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ( सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी/CARA) के तहत दत्तक ग्रहण करने की प्रणाली में अनेक समस्याएं हैं किंतु इसके मूल में यह तथ्य है कि इसके पंजीयन कार्यालय में बहुत कम बच्चे उपलब्ध हैं।
- नवीनतम आंकड़ों के अनुसार दत्तक ग्रहण करने वाले पूल में मात्र 2,188 बच्चे हैं, जबकि 31,000 से अधिक माता-पिता (अभिभावक) बच्चे को गोद लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।