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पैरोल एवं फरलो नियमों में एकरूपता नहीं: यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता
पैरोल एवं फरलो नियमों में एकरूपता नहीं: भारत में जेलों में क्षमता से अधिक भीड़ एक गंभीर मुद्दा है। यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2023 एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (शासन एवं प्रशासन तथा भारत में संबंधित मुद्दे) के लिए पैरोल एवं फरलो नियमों में कोई एकरूपता नहीं, महत्वपूर्ण है।
पैरोल एवं फरलो नियमों में एकरूपता नहीं चर्चा में क्यों है?
- मीडिया में उस समय भारी हंगामा हुआ जब डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह, जो दो शिष्याओं के साथ बलात्कार के लिए 20 साल की जेल की सजा काट रहे थे, को अक्टूबर में 40 दिन की पैरोल पर एक ऑनलाइन सत्संग का आयोजन करते हुए देखा गया था।
- दूसरी ओर, राजीव गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रही दोषी एस. नलिनी को दिसंबर 2021 से रिहाई तक पैरोल के कई विस्तार प्रदान किए गए थे।
पैरोल एवं फरलो के संबंध में कानूनी प्रावधान
- कारागार अधिनियम, 1894 एवं बंदी अधिनियम, 1900 में पैरोल एवं/या फरलो से संबंधित कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं था।
- यद्यपि, कारागार अधिनियम की धारा 59 राज्यों को अन्य बातों के साथ-साथ “दंडों के लघु करण” एवं “अच्छे आचरण के लिए पुरस्कार हेतु” नियम बनाने का अधिकार प्रदान करती है।
- चूंकि “जेल, सुधार गृह…” संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं, जेलों से संबंधित मुद्दों पर विधान निर्मित करने हेतु राज्य सक्षम हैं।
पैरोल/छुट्टी एवं फरलो पर विभिन्न राज्यों के प्रावधान
- उत्तर प्रदेश के नियम सरकार द्वारा आम तौर पर एक माह तक ‘सजा का निलंबन’ (पैरोल या फरलो या छुट्टी शब्द का उल्लेख किए बिना) प्रदान करते हैं।
- तथापि, राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से निलंबन की अवधि 12 माह से अधिक भी हो सकती है।
- महाराष्ट्र के नियम, एक दोषी को 21 या 28 दिनों के लिए (सजा की अवधि के आधार पर), 14 दिनों के लिए ‘आपातकालीन पैरोल’ पर एवं 45 से 60 दिनों के लिए ‘नियमित पैरोल’ पर रिहा करने की अनुमति देते हैं।
- हरियाणा के हाल ही में संशोधित नियम (अप्रैल 2022) एक अपराधी को 10 सप्ताह तक (दो भागों में) ‘नियमित पैरोल’, एक कैलेंडर वर्ष में तीन से चार सप्ताह के लिए ‘फरलो’ एवं चार सप्ताह तक ‘आपातकालीन पैरोल’ की अनुमति प्रदान करते हैं।
- राम रहीम अपने नियमित पैरोल पर है।
- यद्यपि 1982 के तमिलनाडु नियम 21 से 40 दिनों की अवधि के लिए ‘साधारण अवकाश’ की अनुमति प्रदान करते हैं, ‘आपातकालीन अवकाश’ को 15 दिनों तक (चार चरणों में विस्तृत) अनुमति प्रदान की जाती है।
- यद्यपि, असाधारण परिस्थितियों में, सरकार आपातकालीन अवकाश की अवधि में वृद्धि कर सकती है।
- हाल तक, नलिनी अपनी मां की अस्वस्थता के कारण विस्तारित आपातकालीन अवकाश पर थी।
- आंध्र प्रदेश के नियम किसी कैदी के रिश्तेदार की निरंतर अस्वस्थता के कारण इस तरह के विस्तार को विशेष रूप से प्रतिबंधित करते हैं।
- वे ‘फरलो’ एवं पैरोल/आपातकालीन अवकाश के लिए दो सप्ताह तक की अनुमति देते हैं, सिवाय इसके कि सरकार विशेष परिस्थितियों में पैरोल/आपातकालीन अवकाश में वृद्धि कर सकती है।
- ओडिशा के नियम चार सप्ताह तक के लिए ‘फरलो’, 30 दिनों तक के ‘पैरोल लीव’ एवं 12 दिनों तक के ‘स्पेशल लीव’ की अनुमति प्रदान कर हैं।
- पश्चिम बंगाल एक दोषी को अधिकतम एक माह की अवधि के लिए ‘पैरोल’ पर एवं किसी भी ‘आपातकाल’ की स्थिति में पांच दिनों तक रिहा करने का प्रावधान करता है।
- केरल चार चरणों में 60 दिनों की ‘साधारण छुट्टी’ तथा एक बार में 15 दिनों तक की ‘आपातकालीन छुट्टी’ का प्रावधान करता है।
विभिन्न राज्यों में ‘कस्टडी पैरोल‘ का प्रावधान
- हरियाणा में, एक कट्टर अपराधी, जो किसी भी पैरोल या फरलो के लिए अपात्र है, को छह घंटे से अधिक की अवधि के लिए पुलिस अनुरक्षण के अधीन एक करीबी रिश्तेदार के अंतिम संस्कार अथवा विवाह में सम्मिलित होने के लिए रिहा किया जा सकता है।
- तमिलनाडु में, एक कैदी को पुलिस एस्कॉर्ट दिया जाता है जो आपातकालीन छुट्टी पर रिहा किया जाता है एवं समुदाय के लिए खतरनाक होता है।
- इसी तरह, केरल में, जो कैदी आपातकालीन अवकाश के पात्र नहीं हैं, उन्हें अधिकतम 24 घंटे की अवधि के लिए पुलिस अनुरक्षण के अधीन मिलने की अनुमति दी जा सकती है।
फरलो, पैरोल एवं छुट्टी के मध्य अंतर
- जबकि ‘फरलो’ को जेल में अच्छे आचरण के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में माना जाता है एवं इसे काटी गई एक सजा के रूप में गिना जाता है, पैरोल या छुट्टी अधिकांशतः दंड का निलंबन है।
- परिवार में मृत्यु, गंभीर रोग अथवा विवाह जैसी विशिष्ट आपात स्थितियों के लिए आपातकालीन पैरोल अथवा छुट्टी दी जाती है।
- जबकि अधिकांश राज्य केवल करीबी रिश्तेदारों जैसे पति-पत्नी, माता-पिता, पुत्र, पुत्री, भाई एवं बहन को करीबी परिवार मानते हैं, केरल में मृत्यु के मामले में 24 तथा विवाह के मामले में 10 से अधिक रिश्तेदारों की लंबी सूची है।
- हालांकि नियमित पैरोल या छुट्टी जेल में न्यूनतम सजा (एक वर्ष से चार वर्ष तक भिन्न) की सेवा के पश्चात दी जाती है, कुछ राज्यों में अन्य पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्व शामिल हैं जैसे-
- कृषि फसलों की बुवाई अथवा कटाई,
- घर की अनिवार्य मरम्मत, एवं
- पारिवारिक विवाद सुलझाना।
विभिन्न राज्यों में असमानताएं
- केरल में, एक अपराधी को एक वर्ष की सजा सुनाए जाने पर एक वर्ष की एक तिहाई जेल की सजा काटने के बाद साधारण छुट्टी के लिए पात्र माना जाता है।
- हरियाणा में ‘कट्टर’ कैदियों की एक लंबी सूची है, जो कुछ शर्तों के तहत ‘हिरासत पैरोल’ के अतिरिक्त रिहा होने के हकदार नहीं हैं।
- आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल एवं पश्चिम बंगाल भारतीय दंड संहिता की धारा 392 से 402 के तहत आदतन अपराधियों एवं दोषियों की रिहाई की अनुमति नहीं प्रदान करते हैं, जो समाज के लिए खतरनाक हैं। कुछ राज्य ऐसी शर्तें आरोपित नहीं करते हैं।
- प्रत्येक राज्य में एक कैदी को दंडित करने के लिए एक अलग मानदंड होता है जो समय पर पैरोल या फरलो के पश्चात आत्मसमर्पण नहीं करता है।
- हरियाणा ऐसे दोषी को 10 दिन से अधिक समय तक रहने पर दो-तीन साल की कैद के साथ-साथ 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाता है।
- दूसरी ओर, तमिलनाडु केवल जेल नियमों के तहत दोषी को सजा देता है एवं उत्तर प्रदेश अनुशासनहीनता दर्ज करता है एवं ओवरस्टे के आधार पर ‘सजा के निलंबन’ पर प्रतिबंध आरोपित करता है।
एकरूपता की आवश्यकता
- इस तथ्य के बावजूद कि अधिकार के मामले में अस्थायी रिहाई का लाभ नहीं उठाया जा सकता है, उपरोक्त प्रावधान प्रदर्शित करते हैं कि प्रत्येक राज्य के अपने नियम हैं जो न केवल दायरे एवं सामग्री में भिन्न होते हैं, बल्कि कुछ लोगों को लाभ प्रदान करने हेतु उनका उल्लंघन भी किया जा सकता है।
- राज्यों का मार्गदर्शन करने एवं दुरुपयोग को रोकने के लिए किसी सामान्य कानूनी ढांचे के बिना, स्वेच्छाचारिता बढ़ने की संभावना है, जिससे संपूर्ण आपराधिक न्याय प्रणाली खतरे में पड़ जाएगी।
निष्कर्ष
- राज्य सूची में ‘कारागारों’ के साथ, यह कार्य तब तक संभव नहीं है जब तक कि कम से कम आधे राज्य केंद्र सरकार से पैरोल एवं फरलो पर देश के लिए एक सामान्य कानून निर्मित करने का अनुरोध करने के लिए एक साथ नहीं आते।