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भारत में जन्म के समय लिंग अनुपात पर प्यू रिपोर्ट

भारत में जन्म के समय लिंग अनुपात-यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां
    • विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

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भारत में जन्म के समय लिंग अनुपात चर्चा में क्यों है?

  • प्यू रिसर्च सेंटर के नवीनतम अध्ययन में बताया गया है कि भारत में “पुत्र पूर्वाग्रह” में गिरावट आ रही है क्योंकि यह पाया गया कि जन्म के समय लिंग अनुपात थोड़ा सामान्य हो जाता है।

 

जन्म के समय लिंग अनुपात पर प्यू रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • लापता लड़कियों की संख्या में कमी: देश में “लापता” बच्चियों की औसत वार्षिक संख्या 2010 में 480,000 (4.8 लाख) से गिरकर 2019 में 410,000 (4.1 लाख) हो गई।
    • “लापता” का अर्थ है कि इस अवधि के दौरान कितने और महिला जन्म हुए होंगे यदि कोई महिला-चयनात्मक गर्भपात नहीं हुआ होता।
  • जन्म के अंतराल में लिंग अनुपात को पाटना: भारत की 2011 की जनगणना में प्रति 100 बालिकाओं पर लगभग 111 बालकों के बृहद असंतुलन से, जन्म के समय लिंग अनुपात विगत एक दशक में थोड़ा सामान्य हुआ प्रतीत होता है।
    • भारत में जन्म के समय लिंगानुपात राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे/एनएफएचएस) की 2015-16 के दौर में लगभग 109 तथा 2019-21 से आयोजित एनएफएचएस की नवीनतम दौर में 108 बालकों तक सीमित है।
  • लिंग-चयनात्मक गर्भपात: प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट गीत करती है कि 2000 एवं 2019 के मध्य, महिला-चयनात्मक गर्भपात के कारण नौ करोड़ महिला जन्म “लुप्त” हो गए।

 

धर्म-वार लिंग चयनात्मक गर्भपात  

  • सिखों में: रिपोर्ट में धर्म-वार लिंग चयन का भी विश्लेषण किया गया है, जो यह इंगित करता है कि सिखों के लिए यह अंतर सर्वाधिक था।
    • अध्ययन बताता है कि जहां सिख भारतीय आबादी के 2% से कम हैं, वहीं 2000 एवं 2019 के मध्य भारत में “लापता” होने वाली नौ करोड़ बालिकाओं में से अनुमानित 5% या लगभग 440,000 (4.4 लाख)  के लिए उत्तरदायी हैं।
    • 2001 की जनगणना में, सिखों का लिंगानुपात प्रति 100 महिलाओं पर 130 पुरुषों का था, जो उस वर्ष के राष्ट्रीय औसत 110 से कहीं अधिक था।
    • 2011 की जनगणना तक, सिख अनुपात प्रति 100 बालिकाओं पर 121 बालकों तक सीमित हो गया था।
    • यह अब 110 के आसपास है, जो देश के हिंदू बहुसंख्यक (109) में जन्म के समय पुरुषों एवं महिलाओं के अनुपात के समान है।
  • अन्य धर्मों में: ईसाई (105 बालकों पर 100 बालिकाएं) एवं मुस्लिम (106 बालकों पर 100  बालिकाएं)  दोनों में लिंगानुपात प्राकृतिक मानदंड के करीब है एवं यह प्रवृत्ति कायम है।
    • हिंदुओं में “लापता”  बालिकाओं का अंश उनकी संबंधित जनसंख्या अंश से ऊपर है।

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भारत में लिंग चयनात्मक गर्भपात का पता लगाना

  • लिंग-चयनात्मक गर्भपात की समस्या 1970 के दशक में उपलब्ध जन्मपूर्व निदान तकनीक की उपलब्धता के साथ प्रारंभ हुई, जिसमें लिंग चयनात्मक गर्भपात की अनुमति प्रदान की गई थी।
  • प्रमुख धर्मों के मध्य, लिंग चयन में सर्वाधिक कमी उन समूहों में प्रतीत होती है, जिनमें पहले सर्वाधिक लिंग असंतुलन था, विशेष रुप से सिखों में।
  • संपूर्ण विश्व में,  जन्म के समय बालकों की संख्या बालिकाओं की संख्या से मामूली अधिक, प्रत्येक 100 महिला शिशुओं के लिए लगभग 105 पुरुष शिशुओं के अनुपात में है।
  • 1950 तथा 1960 के दशक में भारत में यह अनुपात संपूर्ण देश में प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण उपलब्ध होने से पहले था।
  • भारत ने 1971 में गर्भपात को वैध कर दिया, किंतु अल्ट्रासाउंड स्कैन तकनीक के प्रारंभ के कारण 1980 के दशक में लिंग चयन का चलन प्रारंभ हो गया।
  • 1970 के दशक में, भारत का लिंगानुपात 105-100 के वैश्विक औसत के समान था, किंतु 1980 के दशक के प्रारंभ में यह बढ़कर प्रति 100 बालिकाओं पर 108 बालकों तक पहुंच गया एवं 1990 के दशक में प्रति 100 बालिकाओं पर 110 बालकों तक पहुंच गया।

 

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