Home   »   भारत की भौतिक विशेषताएं: उत्तरी मैदान   »   भारत की भौतिक विशेषताएं: उत्तरी मैदान

भारत की भौतिक विशेषताएं: उत्तरी मैदान

भारत की भौतिक विशेषताएं: प्रासंगिकता

  • जीएस 1: विश्व भर में प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों का वितरण

Uncategorised

 

क्या आपने यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2021 को उत्तीर्ण कर लिया है?  निशुल्क पाठ्य सामग्री प्राप्त करने के लिए यहां रजिस्टर करें

भारत की भौतिक विशेषताएं

  • भारत की भौतिक विशेषताओं को प्रमुख रूप से 6 भागों में विभाजित किया जा सकता है:

 

  • पिछले लेख में हमने हिमालय के बारे में विस्तार से चर्चा की थी। इस लेख में, हम उत्तरी मैदानों पर चर्चा करेंगे।

 

उत्तरी मैदानी स्थान

  • वे शिवालिक के दक्षिण में स्थित हैं एवं हिमालयी अग्र भ्रंश (फ्रंटल फॉल्ट) (एचएफएफ) द्वारा पृथक किए गए हैं।
  • उत्तरी मैदान की दक्षिणी सीमा प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरी किनारे के साथ एक लहरदार अनियमित रेखा है।
  • पूर्व दिशा की ओर, उत्तरी मैदान पूर्वांचल की पहाड़ियों से घिरा है।

उत्तरी मैदान की विशेषताएं

  • उत्तरी मैदान भारत की सर्वाधिक नवीन भू आकृतिक विशेषता है।
  • वे तीन नदियों – सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों से निर्मित हुए हैं।
    • यह उत्तरी मैदानों को विश्व का सर्वाधिक वृहद जलोढ़ भूभाग बनाता है।
  • ये मैदान पूर्व से पश्चिम तक लगभग 3,200 किमी क्षेत्र तक विस्तृत हैं।
  • इन मैदानों की औसत चौड़ाई 150-300 किमी के मध्य होती है। जलोढ़ निक्षेपों की अधिकतम गहराई 1,000-2,000 मीटर के मध्य होती है।

 

उत्तरी मैदानी भाग

  • उत्तर से दक्षिण तक, इन मैदानों को तीन प्रमुख क्षेत्रों: भाबर, तराई एवं जलोढ़ मैदान में विभाजित किया जा सकता है। जलोढ़ मैदानों को आगे खादर और बांगर में विभाजित किया जा सकता है।

 

भाबर

  • भाबर ढलान के विच्छेद स्थल पर शिवालिक तलहटी के समानांतर 8-10 किमी के मध्य की एक संकरी पट्टी है।
  • इसके परिणामस्वरूप,  पर्वतों (सिंधु एवं तीस्ता) से आने वाली धाराएं एवं नदियाँ चट्टानों तथा शिलाखंडों की भारी निक्षेप संग्रह करती हैं एवं कभी-कभी इस क्षेत्र में अदृश्य हो जाती हैं।
  • वर्षा की ऋतु को छोड़कर इस क्षेत्र में शुष्क नदी के प्रवाह की विशेषता है क्योंकि सरंध्री बटिकाश्म (कंकड़)-युक्त शैल संस्तर (रॉक बेड) की उपस्थिति के कारण अधिकांश धाराएं निमज्जित हो जाती हैं एवं भूमिगत हो जाती हैं।
  • भाबर क्षेत्र फसलों की खेती उपयुक्त नहीं है। यद्यपि, इस क्षेत्र में वृहद जड़ों वाले बड़े  वृक्ष पनपते हैं।
  • भाबर पट्टी पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र की तुलना में पूर्व में संकरी है।

 

तराई

  • भाबर के दक्षिण में तराई बेल्ट है, जिसकी चौड़ाई लगभग 10-20 किमी है।
  • यहाँ अधिकांश धाराएं एवं नदियाँ बिना किसी उचित रूप से सीमांकित वाहिका (चैनल) के फिर से उभरती हैं, जिससे तराई के रूप में जानी जाने वाली दलदली एवं आप्लावित स्थितियां उत्पन्न होती हैं।
  • इस क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पति की शानदार वृद्धि हुई है एवं यहां विविध वन्य जीवों का आवास है।
  • वहाँ के क्षेत्र कभी घने वनों से आच्छादित थे,  यद्यपि, आज अधिकांश तराई भूमि (विशेषकर पंजाब, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में) को कृषि योग्य बना कर कृषि भूमि में परिवर्तित कर दिया गया है।

Uncategorised

जलोढ़ मैदान

  • तराई के दक्षिण में एक पट्टी है जिसमें प्राचीन एवं नवीन जलोढ़ निक्षेप हैं जिन्हें क्रमशः बांगर एवं खादर के नाम से जाना जाता है।
  • इन मैदानों में नदीय अपरदन एवं निक्षेपी भू-आकृतियों के प्रौढ़ चरणों की विशिष्ट विशेषताएं हैं जैसे कि बालू रोधिका, विसर्प, गोखुर झीलें एवं गुंफित धाराएं ।
  • यहाँ, नदियों के मुहाने (गंगा एवं ब्रह्मपुत्र) विश्व के कुछ सर्वाधिक वृहद डेल्टा निर्मित करते हैं, उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध सुंदरबन डेल्टा।
    हरियाणा एवं दिल्ली राज्य सिंधु एवं गंगा नदी प्रणालियों के मत है एक जल विभाजक बनाते हैं।
  • ब्रह्मपुत्र के मैदान: ये अपने नदी किनारे के द्वीपों एवं बालू रोधिकाओं के लिए जाने जाते हैं। इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में समय-समय पर बाढ़ आती रहती है एवं नदियों के प्रवाह में परिवर्तन होता रहता है, जिससे गुंफित धाराएं बनती हैं।
    • ब्रह्मपुत्र नदी, बांग्लादेश में प्रवेश करने से पूर्व धुबरी में लगभग 90° दक्षिण की ओर मुड़ने से पहले उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित होती है।
    • इन नदी घाटी के मैदानों में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का आवरण है जो गेहूं, चावल, गन्ना एवं जूट जैसी विभिन्न फसलों को आलंब प्रदान करता है, एवं इसलिए, एक बड़ी आबादी को आधार प्रदान करता है

 

भांगर

  • भांगर प्राचीन जलोढ़ है जो नदी के किनारों के किनारे निर्मित होती है, इस प्रकार बाढ़ के मैदान की तुलना में ऊंची वेदिकाओं का निर्माण करती है।
  • ह्यूमस की मात्रा होने के कारण इनका रंग गहरा होता है एवं ये उत्पादक भी होते हैं।
  • यहां की मिट्टी चिकनी है एवं इसमें चूने के भाग उपस्थित होते हैं, जिन्हें कंकर ग्रंथिका भी कहा जाता है।
    • कंकड़ या कुंकुर एक तलछटीय शब्द है, जिसे कभी-कभी अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की मिट्टी में बनने वाले अपरदित (डेट्राइटल) या अवशिष्ट वेल्लित, प्रायः ग्रंथिल कैल्शियम कार्बोनेट हेतु प्रयुक्त किया जाता है।
  • वे आमतौर पर दोआब में पाए जाते हैं।
  • क्षेत्रीय विविधताएं: बंगाल के डेल्टा क्षेत्र में बारिंद मैदानी क्षेत्र और मध्य गंगा और यमुना दोआब में ‘भूर संरचनाएं’।

 

खादर

  • खादर नवीन जलोढ़ से संघटित है एवं नदी के किनारे बाढ़ के मैदान निर्मित करता है।
  • ये नदी के किनारों के समीप पाए जाते हैं, एवं रंग में हल्के, गठन में रेतीले एवं भांगर की तुलना में अधिक छिद्रित होते हैं।
  • यह गांगेय जल प्रणाली का सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र है क्योंकि लगभग प्रत्येक वर्ष नदी की बाढ़ से जलोढ़ की एक नई परत जमा हो जाती है।
  • पंजाब में, इन बाढ़ के मैदानों को स्थानीय रूप से बेटलैंड्सया बेट्सके रूप में जाना जाता है।
स्मार्ट पुलिसिंग सूचकांक 2021 सिडनी डायलॉग ऑपरेशन संकल्प यूएनडब्ल्यूटीओ ने पोचमपल्ली गांव को विश्व के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांवों में से एक के रूप में मान्यता दी
एक तीव्र आघात के साथ- आईएमडी के वर्षा पूर्वानुमान प्रारूप चक्रवात गुलाब- चक्रवातों की मुख्य विशेषताएं एवं नामकरण शहरी बाढ़: अवलोकन, कारण और सुझावात्मक उपाय आईएमडी एवं भारत में मौसम का पूर्वानुमान
वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2021 न्यूनतम विकसित देशों की रिपोर्ट वैश्विक भूख सूचकांक 2021 भूख अधिस्थल: एफएओ-डब्ल्यूएफपी की एक रिपोर्ट

 

 

Sharing is caring!

भारत की भौतिक विशेषताएं: उत्तरी मैदान_3.1