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भारत में पीपीपी मॉडल
पीपीपी मॉडल यूपीएससी आईएएस परीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। इस खंड से प्रश्न, प्रारंभिक परीक्षा एवं मुख्य परीक्षा दोनों में पूछे जा सकते हैं। यह यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के पेपर -3 पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है एवं उम्मीदवारों को इस टॉपिक पर व्यापक समझ विकसित करने हेतु इसे विस्तृत रूप से समझना चाहिए।
पीपीपी मॉडल का अर्थ
- सार्वजनिक निजी भागीदारी अथवा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) एक सार्वजनिक आधारिक अवसंरचना परियोजना के लिए एक वित्तीयन मॉडल है जिसमें एक सरकारी एजेंसी तथा एक निजी क्षेत्र की कंपनी के मध्य सहयोग शामिल है।
- पीपीपी का उपयोग परियोजनाओं के वित्तपोषण, निर्माण एवं संचालन के लिए, जैसे कि सार्वजनिक परिवहन नेटवर्क, कोई आधारिक संरचना निर्माण कार्य अथवा यहां तक कि उद्यानों के निर्माण में भी किया जा सकता है।
- जबकि सार्वजनिक भागीदार का प्रतिनिधित्व स्थानीय, राज्य एवं / या राष्ट्रीय स्तर पर सरकार द्वारा किया जाता है, निजी भागीदार कोई भी निजी स्वामित्व वाला व्यवसाय, विशेषज्ञता के विशिष्ट क्षेत्र के साथ सार्वजनिक निगम हो सकता है।
- पीपीपी आधारिक अवसंरचना, कार्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सार्वजनिक क्षेत्र की संभावित लागत, गुणवत्ता एवं व्यापक स्तर पर लाभ प्रदान करते हैं।
पीपीपी के लाभ
- निजी क्षेत्र के वित्त तक पहुंच: पीपीपी परियोजनाओं में प्रायः निजी क्षेत्र के द्वारा वित्त की व्यवस्था करना एवं उपलब्ध कराना शामिल होता है, जो सार्वजनिक क्षेत्र को अपने स्वयं के राजस्व (करों) या उधार के माध्यम से वित्त पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने की अनिवार्यता से मुक्त करता है।
- निजी क्षेत्र में उच्च दक्षता: जोखिम का आवंटन एवं संबंधित प्रदर्शन पुरस्कार तथा दंड पीपीपी अनुबंध में प्रोत्साहन सृजित करते हैं जो निजी भागीदार को परियोजना के प्रत्येक चरण में दक्षता प्राप्त करने एवं जहां संभव हो दक्षता सुधार आरंभ करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं।
- निधियों के उपयोग में पारदर्शिता में वृद्धि: पीपीपी नीति ढांचे में आमतौर पर एक निरीक्षण एजेंसी का निर्माण शामिल होता है जैसा कि केंद्र एवं भारत में अनेक राज्यों में पीपीपी कोष (सेल) पहले से ही निर्मित किए गए हैं। इन एजेंसियों की प्रायः एमआईएस भूमिका होती है एवं पीपीपी प्रापण की पारदर्शिता में सुधार करने में सहायता कर सकती है।
पीपीपी के विभिन्न मॉडल
- पीपीपी में बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी), बिल्ड-ओन-ऑपरेट (बीओओ), बिल्ड-ऑपरेट-लीज-ट्रांसफर (बीओएलटी), डिजाइन-बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (डीबीएफओटी), ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर (ओएमटी), टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (टीओटी), हाइब्रिड एन्यूइटी मॉडल (एचएएम) एवं इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) जैसे मॉडल शामिल हैं।
आइए हम उनमें से प्रत्येक को संक्षेप में समझें।
बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी)
- इस मॉडल के तहत, एक निजी भागीदार डिजाइन, निर्माण, संचालन (अनुबंधित अवधि के दौरान) एवं परियोजना को सार्वजनिक क्षेत्र में वापस स्थानांतरित करने हेतु उत्तरदायी है।
- यहां, निजी क्षेत्र पूंजी लाता है एवं समझौते में पहले से निर्धारित की गई अवधि के लिए उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र करता है।
- उदाहरण: राष्ट्रीय राजमार्ग जैसी परियोजनाएं।
बिल्ड-ओन-ऑपरेट (बीओओ)
- इस मॉडल के तहत, नवनिर्मित स्थापना/ प्रसुविधा का स्वामित्व निजी पक्ष में निहित रहेगा।
- निजी क्षेत्र का भागीदार आधारिक अवसंरचना के घटक को अनंत काल (स्थायी रूप से) के लिए वित्तीयन, निर्माण, स्वामित्व एवं संचालन करता है।
- दूसरी ओर, सार्वजनिक क्षेत्र का भागीदार परियोजना द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं को ‘क्रय’ करने हेतु सहमत होता है।
बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओओटी)
- बीओटी के इस संस्करण में, परियोजना को सरकार या निजी ऑपरेटर को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- निजी क्षेत्र के भागीदार को एक निर्दिष्ट अवधि के लिए एक आधारिक अवसंरचना के घटक ( तथा उपयोगकर्ता शुल्क आरोपित करने हेतु) के वित्त, डिजाइन, निर्माण एवं संचालन के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया जाता है, जिसके पश्चात स्वामित्व सार्वजनिक क्षेत्र के भागीदार को वापस स्थानांतरित कर दिया जाता है।
बिल्ड-ऑपरेट-लीज-ट्रांसफर (बीओएलटी)
- इस मॉडल में, सरकार एक निजी इकाई को एक परियोजना का निर्माण करने (एवं संभवतः इसे डिजाइन करने हे तू ही), स्वामित्व धारण करने, इसे सार्वजनिक क्षेत्र को पट्टे पर देने तथा फिर, पट्टे की अवधि के अंत में, परियोजना का स्वामित्व सरकार को हस्तांतरित करने हेतु रियायत प्रदान करती है।
डिजाइन-बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (डीबीएफओटी)
- इस मॉडल के अंतर्गत, निजी पक्ष रियायत की अवधि के लिए परियोजना के डिजाइन, निर्माण, वित्तीयन तथा संचालन हेतु पूर्ण उत्तरदायित्व ग्रहण करता है।
ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर (ओएमटी)
- इस मॉडल के तहत, निजी पक्ष आमतौर पर स्थापना/ प्रसुविधा का संचालन करता है, नियमित एवं गैर-नियमित रखरखाव करती है एवं सरकार को भूमिका सौंपे जाने तक प्रसुविधा के संचालन एवं रखरखाव में प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिए, औद्योगिक संयंत्र परियोजनाओं पर, जहां उच्च स्तर के संचालन एवं रखरखाव कौशल की आवश्यकता होती है।
टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (टीओटी)
- इस मॉडल के अंतर्गत, राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं का मुद्रीकरण किया जाता है जहां निवेशक एकमुश्त भुगतान करते हैं तथा बदले में, उन्हें लंबी समयावधि (आमतौर पर 30 वर्ष) हेतु टोल संग्रह का अधिकार प्राप्त होता है।
- यह मॉडल निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक है क्योंकि उन्हें आरंभ से ही एक आधारिक अवसंरचना परियोजना का निर्माण नहीं करना होता है।
- 2019 में संशोधन के अनुसार, पीपीपी द्वारा वित्त पोषित कोई भी परियोजना जो एक वर्ष से अधिक समय से संचालित है, टीओटी मॉडल के माध्यम से मुद्रीकरण हेतु पात्र हैं।
इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी)
- इस पीपीपी मॉडल के तहत कच्चे माल की खरीद एवं निर्माण लागत को पूर्ण रूप से सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
- इस मॉडल में निजी क्षेत्र की भागीदारी न्यूनतम है तथा इंजीनियरिंग विशेषज्ञता के प्रावधान तक सीमित है।
हाइब्रिड एन्यूइटी मॉडल (एचएएम)
- एचएएम वर्तमान दो मॉडलों – बीओटी एन्यूइटी एवं ईपीसी के मध्य का मिश्रण है।
- इस मॉडल के अनुसार, सरकार प्रथम पांच वर्षों में वार्षिक भुगतान (एन्यूइटी) के माध्यम से परियोजना लागत का 40% योगदान देगी। शेष 60% सृजित परिसंपत्ति एवं निजी कंपनी के प्रदर्शन के आधार पर प्रदान किया जाएगा।
- चूंकि सरकार मात्र 40% अंश का भुगतान करती है, निर्माण चरण के दौरान, निजी प्रतिभागी को शेष राशि के लिए वित्त की व्यवस्था करनी होती है।
- इस मॉडल के तहत, निजी कंपनी को कोई टोल अधिकार प्राप्त नहीं है।