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प्रागैतिहासिक भारत: यूपीएससी परीक्षा के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है
प्रागैतिहासिक युग (पाषाण युग): प्रागैतिहासिक काल मूल रूप से लेखन या प्रलेखन के विकास से पूर्व का समय है। यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 1- भारतीय कला एवं संस्कृति) के लिए प्रागैतिहासिक काल महत्वपूर्ण है।
भारत में प्रागैतिहासिक काल
- प्रागैतिहासिक काल को लेखन/दस्तावेज़ीकरण के आविष्कार से पूर्व घटित हुई घटनाओं का संग्रह माना जाता है। यही कारण है कि इसे प्राचीन इतिहास में प्रागैतिहासिक काल माना जाता है। प्रागैतिहासिक काल मूल रूप से मानव सभ्यताओं के मध्य लेखन कला के विकास से पूर्व की मानवीय गतिविधियों, सभ्यता, प्रस्तर के औजारों के उपयोग इत्यादि का अभिलेख है।
प्रागैतिहासिक काल का विभाजन
- प्राचीन इतिहास का प्रागैतिहासिक काल तीन युगों में विभाजित है। यही कारण है कि इसे “ए 3 एज सिस्टम” के रूप में भी जाना जाता है।
- प्रागैतिहासिक काल के तहत ये विकासवादी युग प्राचीन काल में मानव गतिविधि के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
- प्रागैतिहासिक काल के तीन युग नीचे सूचीबद्ध हैं-
- पाषाण युग,
- कांस्य युग एवं
- लौह युग
प्रागैतिहासिक काल का पाषाण युग क्या है
- पाषाण युग के बारे में: प्रागैतिहासिक युग के दौरान मानव के विकास में पाषाण युग प्रथम चरण है।
- पाषाण युग के विभिन्न औजार पत्थरों से निर्मित होते थे जिससे इसका नाम पाषाण युग पड़ा।
- जानकारी के स्रोत: प्रागैतिहासिक काल (पाषाण युग सहित) की जानकारी का मुख्य स्रोत पुरातात्विक उत्खनन है।
- वर्गीकरण: भारतीय पाषाण युग को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
- पुरापाषाण युग (प्राचीन पाषाण युग): अवधि – 500,000 – 10,000 ईसा पूर्व
- मध्यपाषाण काल (उत्तर पाषाण युग): अवधि – 10,000 – 6000 ईसा पूर्व
- नवपाषाण युग (नवीन पाषाण युग): काल – 6000 – 1000 ई.पू
- उपरोक्त वर्गीकरण हेतु मानदंड: पाषाण युग का उपरोक्त वर्गीकरण मुख्य रूप से निम्नलिखित मानदंडों के आधार पर किया गया था-
- भूवैज्ञानिक युग,
- पत्थर के औजारों का प्रकार एवं तकनीक, तथा
- निर्वाह आधार
पुरापाषाण युग (प्राचीन पाषाण युग): अवधि – 500,000 – 10,000 ईसा पूर्व
- उत्पत्ति: ‘पुरापाषाण’ शब्द ग्रीक शब्द ‘पैलियो’ एवं ‘लिथिक’ से लिया गया है। ‘पैलियो’ का अर्थ है पुराना एवं ‘लिथिक’ का अर्थ है पत्थर, अतः, इसे पुराना पाषाण युग कहा जाता है।
- संबद्ध भौगोलिक युग: भारत की पुरापाषाण संस्कृति (पुराना पाषाण युग) का विकास प्लाइस्टोसीन काल या हिम युग में हुआ था।
- प्लाइस्टोसीन काल या हिमयुग उस युग का भूवैज्ञानिक काल है जब पृथ्वी बर्फ से ढकी हुई थी एवं मौसम इतना ठंडा था कि मानव या पौधे का अस्तित्व सुरक्षित नहीं रह सकता था।
- किंतु उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, जहां बर्फ पिघल चुकी थी, मनुष्यों की सर्वाधिक प्राचीन प्रजातियां अस्तित्व में हो सकती थीं।
- वर्गीकरण: भारत में पुराने पाषाण युग या पुरापाषाण युग को निम्नलिखित तीन चरणों में विभाजित किया गया है-
- निम्न पुरापाषाण युग: 100,000 ईसा पूर्व तक
- मध्य पुरापाषाण युग: 100,000 ईसा पूर्व – 40,000 ईसा पूर्व
- उत्तर पुरापाषाण युग: 40,000 ईसा पूर्व – 10,000 ईसा पूर्व
- उपरोक्त वर्गीकरण के लिए मानदंड: पुरापाषाण युग के उपरोक्त वर्गीकरण के निम्नलिखित के अनुसार किए गए थे-
- लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले पत्थर के औजारों की प्रकृति एवं
- जलवायु परिवर्तन की प्रकृति।
पुरापाषाण युग (प्राचीन पाषाण युग) के दौरान भारतीय लोगों की प्रमुख विशेषताएं
- निवास स्थान: माना जाता है कि भारतीय लोग ‘नेग्रीटो’ प्रजाति के थे एवं खुले आकाश, नदी घाटियों, गुफाओं एवं चट्टानों के आश्रयों में निवास करते थे।
- खानपान की रीति: भारतीय खाद्य संग्रहकर्ता थे, जंगली फल एवं सब्जियां खाते थे तथा जानवरों के शिकार पर जीवित रहते थे।
- मकान, मिट्टी के बर्तन, कृषि का ज्ञान नहीं था। बाद के चरणों में ही उन्होंने आग की खोज की।
- कला का विकास: उत्तर/ऊपरी पुरापाषाण काल में चित्रकला के रूप में कला के प्रमाण प्राप्त होते हैं।
- प्रयुक्त उपकरण: भारतीय लोग जानवरों के शिकार सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए बिना पॉलिश किए, खुरदुरे पत्थरों जैसे हाथ की कुल्हाड़ी, चौपर, ब्लेड, तक्षणी एवं खुरचनी का इस्तेमाल करते थे।
- प्रस्तर/पत्थर का उपयोग: भारत में, पुरापाषाण काल के मानव ने क्वार्टजाइट नामक कठोर चट्टान से निर्मित पत्थर के औजारों का उपयोग किया। इसलिए उन्हें भारत में ‘क्वार्टजाइट’ पुरुष भी कहा जाता है।