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निवारक निरोध: एक अपरिहार्य बुराई

निवारक निरोध: एक अपरिहार्य बुराई

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प्रासंगिकता

जीएस 2: भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, विकास क्रम, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं मूल संरचना।

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प्रसंग

  • हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पीठ ने एक निर्णय दिया कि निवारक निरोध (प्रिवेंटिव डिटेंशन) का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब निरुद्ध व्यक्ति सार्वजनिक व्यवस्था को कुप्रभावित कर रहा हो अथवा कुप्रभावित करने की संभावना हो।

निर्णय के प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय ने कहा कि निवारक निरोध एक आवश्यक बुराई है और इसका उपयोग केवल सार्वजनिक अव्यवस्था के निवारण हेतु किया जाना चाहिए।
  • निवारक निरोध सामान्य नजरबंदी का पर्याय नहीं है।
  • विधि-व्यवस्था की समस्याओं से निपटने के लिए राज्य को निवारक निरोध का स्वेच्छाचारी रूप से  प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • जब कोई न्यायालय निवारक निरोध से संबंधित मामलों को देखती है, तो सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक जो पूछा जाना चाहिए, वह यह है कि क्या ऐसी स्थिति से निपटने के लिए देश का सामान्य कानून पर्याप्त था।
    • यदि उत्तर हाँ है, तो निवारक निरोध को अवैध घोषित किया जाएगा।

 

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निवारक निरोध (पीडी) क्या है?

  • निवारक निरोध का अर्थ है किसी ऐसे व्यक्ति को निरुद्ध करना जिसने अभी तक कोई अपराध कारित नहीं किया है,  किंतु प्रशासन का विचार है कि वह एक संकट है और जिससे सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने की संभावना है।

 

संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान का अनुच्छेद 22(1) और अनुच्छेद 22(2) निवारक निरोध के दुरुपयोग के विरुद्ध नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है। यह प्रावधान करता है कि
    • किसी व्यक्ति को उसके गिरफ्तार किए जाने के आधार के बारे में बताए बिना गिरफ्तार और निरुद्ध नहीं किया जा सकता है।
    • गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसकी पसंद के विधि व्यवसायी द्वारा बचाव करने से इनकार नहीं किया जा सकता जो उसे बचाव का अधिकार  प्रदान करता है।
    • गिरफ्तार किए गए प्रत्येक व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर निकटतम दंडाधिकारी (मजिस्ट्रेट) के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • निरुद्ध किए गए व्यक्ति की हिरासत मजिस्ट्रेट द्वारा अधिकृत अवधि से अधिक नहीं हो सकती है।

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यह क्यों आवश्यक है?

  • पूर्ण व्यक्तिगत स्वतंत्रता न तो संभव है और न ही वांछनीय एवं समाज की शांति एवं स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में व्यवधान के लिए स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की आवश्यकता है।
  • अलगाववादी प्रवृत्तियाँ: इस मुद्दे से निपटने के लिए भारतीय संघ की अविनाशी प्रकृति को सुनिश्चित करने के लिए कठोर कानूनों की आवश्यकता है। निवारक निरोध उन कानूनों में से एक है।
  • सामान्य रूप से निवारक निरोध का उपयोग नहीं किया जाता है। इन कृत्यों में निरुद्ध किए गए व्यक्तियों की संख्या   अधिक नहीं है। इसका तात्पर्य है कि किसी को निवारक  निरोध के अंतर्गत गिरफ्तार करने से पूर्व उचित ध्यान दिया जाता है।
  • अत्यधिक विविध समाज में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना एक जटिल मामला है। निवारक निरोध जैसे कानूनों का असामाजिक और विध्वंसक तत्वों पर निरोधक प्रभाव पड़ता है।
  • शत्रुतापूर्ण गतिविधियों, जासूसी, अवपीड़क, आतंकवाद जैसे अंतरराष्ट्रीय अपराधों से निपटने के लिए एक प्रभावी साधन की आवश्यकता है। निवारक निरोध यह सुनिश्चित करता है कि राज्य की अखंडता और संप्रभुता अक्षुण्ण रहे।

मुद्दे

  • निवारक निरोध जैसे उपकरण प्रतिगामी हैं और किसी भी लोकतांत्रिक देश के संविधान में स्थान नहीं पाते हैं।
  • स्वेच्छाचारिता: पुलिस यह निर्धारित करती है कि कोई व्यक्ति संकट उत्पन्न कर रहा है अथवा नहीं और इसका परीक्षण प्रमुख साक्ष्यों द्वारा नहीं किया जाता है, न ही कानूनी रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा इसकी जांच की जाती है।
  • अधिकारों का उल्लंघन: यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करता है, जो मौलिक अधिकारों का स्रोत है।
  • इसने प्रशासन को भेदभावपूर्ण व्यवहार करने और प्रताड़ित करने हेतु विस्तृत क्षेत्र प्रदान किया है। यह अधिकारियों को विध्वंसक गतिविधियों के लिए निवारक निरोध का दुरुपयोग करने से प्रतिबंधित नहीं करता है।
  • एक विषम समाज में, निवारक निरोध जैसे उपकरणों का उपयोग समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के  विरुद्ध किया जाता है।

 

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आगे की राह

  • जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है,  निवारक निरोध एक आवश्यक बुराई है।
  • यदा-कदा, यह मौलिक अधिकारों के साथ विरोधाभास में हो सकता है। यद्यपि, इसे प्रत्येक समय संवैधानिकता के व्यापक क्षेत्र के तहत कार्य करना चाहिए।

 

 

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