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शरणार्थी नीति- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- अंतर्राष्ट्रीय संबंध।
शरणार्थी नीति चर्चा में क्यों है?
- हाल ही में गृह मंत्रालय (एमएचए) ने घोषणा की कि रोहिंग्या अवैध विदेशी हैं।
कौन हैं रोहिंग्या?
- रोहिंग्या एक नृजातीय समूह है जिसमें अधिकांशतः पश्चिम म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुसलमान सम्मिलित हैं एवं एक बंगाली बोली बोलते हैं।
- म्यांमार ने उन्हें “निवासी विदेशी” या “उप नागरिक” के रूप में वर्गीकृत किया है एवं 2012 में प्रथम बार प्रारंभ हुई हिंसा के पश्चात बड़ी संख्या में म्यांमार छोड़ने हेतु बाध्य किया गया था।
- म्यांमार सेना ने 2017 में हमलों को पुनः प्रारंभ किया एवं लाखों लोगों ने बांग्लादेश में शरण ली।
भारत की शरणार्थी नीति
- भारत में शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के बावजूद उनकी समस्या का समाधान करने के लिए विशिष्ट कानून का अभाव है।
- विदेशी अधिनियम, 1946, एक वर्ग के रूप में शरणार्थियों द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट समस्याओं का समाधान करने में विफल रहा है तथा किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिए केंद्र सरकार को असीमित शक्तियां प्रदान करता है।
- नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (द सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट/CAA) मुस्लिमों को इसके दायरे से बाहर करता है एवं मात्र बांग्लादेश, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में प्रताड़ित किए गए हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख एवं बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रयास करता है।
- भारत 1951 के शरणार्थी अभिसमय एवं इसके 1967 के प्रोटोकॉल का एक पक्षकार नहीं है, जो शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज हैं, फिर भी भारत में विदेशी व्यक्तियों एवं संस्कृति को आत्मसात करने की नैतिक परंपरा है।
- भारत का संविधान भी मनुष्य के जीवन, स्वतंत्रता एवं गरिमा का सम्मान करता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य (1996) के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “जबकि सभी अधिकार नागरिकों के लिए उपलब्ध हैं, विदेशी नागरिकों सहित अन्य सभी व्यक्ति समानता के अधिकार एवं जीवन के अधिकार के हकदार हैं।”
1951 के शरणार्थी अभिसमय के साथ समस्याएं
- 1951 के अभिसमय में शरणार्थियों की परिभाषा केवल नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है, किंतु व्यक्तियों के आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित नहीं है तथा यदि आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन को शरणार्थी की परिभाषा में शामिल किया जाता है, तो यह स्पष्ट रूप से विकसित दुनिया पर एक बड़ा बोझ डालेगा।
शरणार्थियों पर एक कानून की आवश्यकता
- भारत प्रायः शरणार्थियों के एक व्यापक प्रवाह का अनुभव करता है जिसके लिए एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून निर्मित कर भारत के धर्मार्थ दृष्टिकोण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण में बदलाव करने के लिए दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान की आवश्यकता है।
- एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून सभी प्रकार के शरणार्थियों के लिए शरणार्थी-स्थिति निर्धारण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा एवं उन्हें अंतरराष्ट्रीय विधि के तहत उनके अधिकारों की प्रत्याभूति प्रदान करेगा।
- यह भारत की सुरक्षा चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित कर सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय-सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए कोई गैरकानूनी हिरासत या निर्वासन नहीं किया गया है।
- भारत में शरणार्थी आबादी का बड़ा हिस्सा श्रीलंका, तिब्बत, म्यांमार एवं अफगानिस्तान से आता है, हालांकि सरकार द्वारा मात्र तिब्बती एवं श्रीलंकाई शरणार्थियों को ही मान्यता दी जाती है।
- उन्हें सरकार द्वारा तैयार की गई विशिष्ट नीतियों एवं नियमों के माध्यम से प्रत्यक्ष सुरक्षा एवं सहायता प्रदान की जाती है।
आगे की राह
- शरण की मांग करने वाले लोग एक संवेदनशील स्थिति में हैं एवं एक समावेशी तथा सहिष्णु देश में आशा की आखिरी किरण देखते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, शरणार्थियों को समाहित करना चाहिए, किंतु मूल आबादी की कीमत पर नहीं।
- अतः, भारत के लिए एक स्पष्ट शरणार्थी कानून एवं नीति को परिभाषित करने का उचित समय आ गया है।