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संयुक्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण: यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन III- समावेशी विकास एवं मुद्दे
संयुक्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण: प्रसंग
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव (यूनाइटेड नेशंस सेक्रेटरी जनरल/यूएनएसजी), एंटोनियो गुटेरेस ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया एवं कहा, “विश्व व्यापक संकट में है, विशाल वैश्विक गतिरोध में फंस गई है, यहां तक कि जी 20 भी भू-राजनीतिक विभाजन के जाल में है”।
संयुक्त राष्ट्र: इतिहास
- 1920 में स्थापित राष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रथम अंतर-सरकारी संगठन था तथा द्वितीय विश्व युद्ध के साथ इसकी उपयोगिता समाप्त हो गई थी।
- संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा स्थान होने का दावा करता है जहां विश्व के समस्त राष्ट्र आम समस्याओं पर विचार विमर्श कर सकते हैं तथा साझा समाधान ढूंढ सकते हैं जिससे समस्त मानवता लाभान्वित हो।
संयुक्त राष्ट्र परिवर्तन के बिंदु पर क्यों है?
- संयुक्त राष्ट्र के बाहर एक क्लब: जून में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन ने संयुक्त राष्ट्र के बाहर जलवायु कार्रवाई में गति लाने हेतु एक सहकारी अंतर्राष्ट्रीय जलवायु क्लब के लक्ष्यों का समर्थन किया।
- विश्व व्यापार संगठन की अव्यवहार्यता: विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के कोरम के बिना विवाद निपटान तंत्र ने संस्था को निष्क्रिय कर दिया है।
- विफल वादे: 1992 में रियो में धन के हस्तांतरण की आवश्यकता को जी 7 द्वारा स्वीकार किए जाने के बावजूद, जलवायु संकट उत्पन्न करने में उनकी भूमिका के कारण, 2009 में जलवायु वित्त में प्रति वर्ष कम से कम 100 बिलियन डॉलर प्रदान करने का वादा अधूरा है।
- चीन की चुनौती: चीन ने बहुपक्षीय संस्थानों के प्रतिद्वंद्वी समूह को चुना है। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) साझा विकास के नए चालक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग हेतु एक नवीन मंच निर्मित कर नीति, आधारिक अवसंरचना, व्यापार, वित्तीय एवं व्यक्तियों से व्यक्तियों के मध्य संपर्क हासिल करना चाहता है तथा एक तिहाई जीडीपी एवं 930 अरब डॉलर के निवेश के साथ विश्व की आधी आबादी को समाहित करता है।
- गैर-पारंपरिक सुरक्षा की चुनौती: चीन की वैश्विक विकास पहल (ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव) 2021, तथा संबद्ध वैश्विक सुरक्षा पहल (लिंक्ड ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव), 2022, एक शहरीकृत विश्व, अर्थात डिजिटल शासन एवं गैर-पारंपरिक सुरक्षा का प्रत्युत्तर देने हेतु एक वैचारिक ढांचा विकसित कर रहा है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली ने सम्मिलित नहीं किया है।
- संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक विभाजन: अटलांटिक शक्तियों एवं रूस-चीन गठबंधन के मध्य गहन होते विभाजन को प्रदर्शित करने वाली संस्थाओं के टकराव से अधिक महत्वपूर्ण धन, प्रौद्योगिकी एवं शक्ति का प्रसार है। खतरों के बावजूद, ‘शेष’ अब पक्ष नहीं लेने में सक्षम हैं तथा संयुक्त राष्ट्र के भीतर नेतृत्व की तलाश कर रहे हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासचिव (यूएनएसजी) ने “विश्व के गठबंधन” के रूप में वर्णित किया है।
संयुक्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण: आगे की राह
- प्रमुख शक्तियों में रणनीतिकार विश्व को व्यवस्था के चारों ओर द्विआधारी रूप में देखते हैं। एक बहुध्रुवीय विश्व में, प्रश्न यह है कि मानव कल्याण के लिए किस प्रकार की व्यवस्था की आवश्यकता है तथा क्या सिद्धांत उद्देश्य को बेहतर ढंग से पूरा करेंगे।
- एक विस्तृत विचार हेतु उपयुक्त समय आ गया है कि दोनों वैश्विक व्यवस्थाएं, सहायता की राशि एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स/आईपीआर) के उल्लंघन पर वर्तमान बहुपक्षीय ध्यान से दूर रहें तथा बुखार साथ ही प्रतिस्पर्धी संस्थानों के लिए एक भूमिका को पहचानें क्योंकि देश अब सौदेबाजी के बिना स्वयं सर्वोत्तम शर्तों को सुरक्षित कर सकते हैं।
- जिस तरह ‘रियो सिद्धांत’ जलवायु परिवर्तन का मार्गदर्शन करना जारी रखते हैं, वसुधैव कुटुम्बकम अथवा ‘विश्व एक परिवार के रूप में’, कल्याण के तुलनीय स्तरों पर ध्यान केंद्रित करना राज्यों के मध्य संवाद हेतु सार्वभौमिक सामाजिक-आर्थिक सिद्धांतों के एक समूह का मूल हो सकता है।
- न्यायसंगत सतत विकास के इर्द-गिर्द वर्तमान वैश्विक सहमति में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सार्वभौमिक सभ्यता के सिद्धांत को आगे बढ़ाने के लिए एक स्पष्ट सामाजिक उद्देश्य जोड़ा है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन को एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखते हुए “पर्यावरण के लिए उपयुक्त जीवन शैली” पर बल दिया।
संयुक्त राष्ट्र का पुनर्निर्माण: भारत की भूमिका
- भारत की जी 20 समूह की अध्यक्षता, 2022 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल/यूएनएससी) एवं 2023 में शंघाई सहयोग संगठन (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन/एससीओ) जब प्रमुख शक्तियां एक-दूसरे से बात भी नहीं कर रही हैं तथा अकेले भारत, जो अब पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, उनमें से प्रत्येक के साथ वार्ता कर रहा है, एक ऐतिहासिक अवसर प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष
- संयुक्त राष्ट्र, यद्यपि निष्क्रिय है, वैश्विक शासन हेतु एकमात्र वैश्विक मंच है। संयुक्त राष्ट्र के पतन से किसी देश को लाभ नहीं होगा। यदि हम संयुक्त राष्ट्र को भंग भी कर दें, तो भी संयुक्त राष्ट्र को पुनर्स्थापित करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। भारत तथा वैश्विक हित संयुक्त राष्ट्र को समाप्त करने के स्थान पर संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में निहित है।