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प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
प्रसंग
- हाल ही में, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) ने रिन्यूएबल एनर्जी एंड लैंड यूज इन इंडिया बाय मिड-सेंचुरी नामक एक रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट के बारे में
- यह रिपोर्ट भारत के सामने प्रकट होने वाले ऊर्जा संक्रमण के भूमि-उपयोग के निहितार्थ एवं इन संसाधनों को कहां अवस्थित होना चाहिए, इसके बारे में महत्वपूर्ण विकल्पों पर विचार करती है।
- यह वर्तमान भूमि-उपयोग अध्ययनों की समीक्षा करता है तथा फिर मध्य शताब्दी के परिदृश्यों के आधार पर भविष्य की संभावित आवश्यकताओं की रूपरेखा तैयार करता है
राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- भारत 2050 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने हेतु भूमि के महत्वपूर्ण हिस्सों का उपयोग करेगा एवं भूमि उपयोग में वृद्धि का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है।
- सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए 2050 में लगभग 50,000-75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा एवं पवन ऊर्जा परियोजनाओं हेतु अतिरिक्त 15,000-20,000 वर्ग किलोमीटर भूमि का उपयोग किया जाएगा।
- परोक्ष प्रभावों सहित, परिणामी भूमि आवरण परिवर्तन, प्रति किलोवाट-घंटे में 50 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड तक कार्बन के शुद्ध निर्मोचन का कारण बनेंगे।
- कोयला आधारित ऊर्जा के विपरीत, अक्षय ऊर्जा उत्पादन भूमि के चरित्र को मौलिक रूप से परिवर्तित नहीं करता है।
- यूरोप या संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत, ऊर्जा उत्पादन को कृषि, शहरीकरण, मानव आवास एवं प्रकृति संरक्षण जैसे भूमि के वैकल्पिक उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।
हिमालय में जल विद्युत परियोजनाएं
संस्तुतियां
- नवीकरणीय ऊर्जा के लिए कुल भूमि उपयोग आवश्यकताओं को कम करना:
- अपतटीय पवन ऊर्जा को बढ़ावा देना
- रूफटॉप सोलर एवं जल निकायों पर सौर ऊर्जा जहां शुद्ध पर्यावरणीय लाभों को निश्चित किया जा सकता है।
- नवीकरणीय उत्पादन हेतु भूमि के अभिनिर्धारण एवं मूल्यांकन का इष्टतम प्रयोग:
- संभावित स्थलों के श्रेणीकरण हेतु स्पष्ट पर्यावरणीय एवं सामाजिक मानदंड विकसित करना।
- निविदाओं में उच्चतम श्रेणी क्रम (रैंक) वाले स्थलों के चयन को प्रोत्साहित करना।
- अनुचित क्षेत्रीय संकेंद्रण को सीमित करना तथा व्यापक पैमाने पर वितरित नवीकरणीय उत्पादन का समर्थन करना।
- अक्षय ऊर्जा उत्पादन हेतु संभावित रूप से उपयुक्त भूमि के संभार में वृद्धि करना:
- कृषि वैद्युत (वोल्टाइक) अनुसंधान के वृहद रूप से विस्तार का समर्थन करना
- जहां फसलें, मृदा एवं परिस्थितियां उपयुक्त हों तथा उपज को अनुरक्षित रखा जा सकता है अथवा सुधार किया जा सकता है, वहां कृषि वोल्टाइक के प्रयोग को प्रोत्साहित करना।