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चक्रीय अर्थव्यवस्था तथा नगरीय ठोस एवं तरल अपशिष्ट पर रिपोर्ट

सर्कुलर इकोनॉमी यूपीएससी: प्रासंगिकता

  • जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।

म्युनिसिपल सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट: संदर्भ

  • म्युनिसिपल सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट इन सर्कुलर इकोनॉमी ’पर हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (मिनिस्ट्री आफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स/MoHUA) ने भराव क्षेत्र (लैंडफिल) पर पुनर्चक्रण योग्य  पदार्थों (रिसाइकिलेबल) के निपटान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की।

 

चक्रीय अर्थव्यवस्था पर रिपोर्ट: प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि लैंडफिल / डंप साइटों में पुनर्चक्रण करने योग्य निपटान से न केवल मूल्यवान संसाधनों की हानि होती है बल्कि पर्यावरण प्रदूषण भी होता है।
  • रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड  एवं शहरी विकास  तथा उद्योग विभाग सभी नगरीय अपशिष्ट को लैंडफिल में डंप करने के लिए एक कर का आरोपण प्रारंभ करें।
  • इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में यह भी विचार था कि सरकार को पुनर्नवीनीकरण सामग्री से बने उत्पादों पर जीएसटी तथा अन्य करों को घटाकर 5% करना चाहिए ताकि अपशिष्ट पुनर्चक्रण को बढ़ावा मिल सके।

 

चक्रीय अर्थव्यवस्था/सर्कुलर इकोनॉमी क्या है?

  • सर्कुलर इकोनॉमी उत्पादन तथा उपभोग का एक प्रतिमान है, जिसमें मौजूदा सामग्रियों एवं उत्पादों को यथासंभव लंबे समय तक साझा करना, पट्टे पर देना, पुन: उपयोग करना, मरम्मत करना, नवीनीकरण करना एवं पुनर्चक्रण करना सम्मिलित है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था का महत्व

  • अपशिष्ट प्रबंधन: आने वाले दशकों में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं द्वारा भारी मात्रा में उत्पन्न अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए एक कुशल अपशिष्ट प्रबंधन पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है।
  • बैटरी उद्योगों को समर्थन: एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की व्यापकता भी बैटरी उद्योगों को बाहरी विकास से उत्पन्न संभावित आपूर्ति श्रृंखला आघातों से आंशिक रूप से  सुरक्षित कर सकती है।
  • रोजगार के अवसर: यह भविष्य की पीढ़ियों के लिए गुणवत्तापूर्ण रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगा क्योंकि अपशिष्ट प्रबंधन तथा पुनर्चक्रण की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में नए रोजगार सृजित होंगे।
  • सामाजिक-आर्थिक लाभ: भारत का अधिकांश पुनर्चक्रण क्षेत्र अनौपचारिक है एवं श्रमिकों को मानकीकृत  पारिश्रमिक के बिना असुरक्षित वातावरण में काम करना पड़ता है। अतः, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक विभिन्न सामाजिक-आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं एवं बेहतर गुणवत्तापूर्ण जीवन की आशा कर सकते हैं।

भारत में चक्रीय अर्थव्यवस्था: आवश्यक कदम

  • इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन नियमों को संशोधित कीजिए: नीति निर्माताओं को विभिन्न स्वच्छ ऊर्जा घटकों को अपने दायरे में लाने के लिए वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को संशोधित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, संशोधित नियमों में नवीकरणीय ऊर्जा मूल्य श्रृंखला में सम्मिलित विभिन्न हितधारकों उत्तरदायित्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए।
  • डंपिंग तथा बर्निंग पर पूर्ण प्रतिबंध: वर्तमान में, नवीकरणीय ऊर्जा अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए लैंडफिलिंग सबसे सस्ता तथा सर्वाधिक सामान्य अभ्यास है, जो पर्यावरण की दृष्टि से धारणीय नहीं है। अध्ययनों से ज्ञात होता है कि सौर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल से सीसा एवं कैडमियम जैसे भारी धातुओं  का निक्षालन 90% एवं 40% तक बढ़ सकता है।
  • अनुसंधान तथा विकास: नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग को पुनर्चक्रण प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान तथा विकास में निवेश करना चाहिए। अनुसंधान तथा विकास में निवेश से पुनर्चक्रण हेतु नवीन तरीकों की खोज करने में सहायता प्राप्त सकती है जिसके परिणामस्वरूप उच्च दक्षता एवं पर्यावरणीय रूप से कम हानिकारक पदचिह्न हो सकते हैं।
  • वित्त पर ध्यान: अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नवीन वित्तपोषण मार्गों के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों को नवीकरणीय ऊर्जा अपशिष्ट  पुनर्चक्रण सुविधाओं की स्थापना के लिए वितरित ऋणों पर कम ब्याज दर वसूलने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  • गुणवत्ता नियंत्रण मानक: केंद्र तथा राज्य दोनों सरकारों को अपनी निविदाओं में उपयोग किए जाने वाले घटकों के लिए कठोर गुणवत्ता नियंत्रण मानक निर्धारित करने चाहिए। इस तरह के मानक घटकों के समय से पहले समाप्त होने तथा परिणामी अपशिष्ट निर्माण को रोकेंगे।
    • घटिया घटक प्रारंभिक जीवन क्षति के कारण अत्यधिक मात्रा में अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं जो प्रायः अपूरणीय होता है एवं घटकों को अक्सर त्यागना पड़ता है।

 

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