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रिवर्स रेपो प्रसामान्यीकरण: प्रासंगिकता
- जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं नियोजन, संसाधन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।
रिवर्स रेपो प्रसामान्यीकरण: संदर्भ
- हाल ही में, भारतीय स्टेट बैंक ने कहा है कि उसका मानना है कि रिवर्स रेपो के प्रसामान्यीकरण हेतु मंच तैयार है।
क्या है रिवर्स रेपो नॉर्मलाइजेशन?
- रिवर्स रेपो नॉर्मलाइजेशन को समझने से और, आइए पहले जानते हैं कि रिवर्स रेपो क्या है एवं वर्तमान परिदृश्य में यह किस प्रकार सामान्य नहीं है।
मौद्रिक नीति प्रसामान्यीकरण
- भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में धन की कुल राशि में कुछ विशिष्ट परिवर्तन करता है ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था सुचारू रूप से कार्य करती रहे।
- जब आरबीआई आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहता है, तो वह “शिथिल मौद्रिक नीति” अपनाता है। इस नीति के दो भाग हैं:
- पहला, आरबीआई अर्थव्यवस्था में अधिक मुद्रा अन्तः क्षेपित करता है एवं इस प्रकार बाजार से सरकारी बॉन्ड खरीदकर तरलता में वृद्धि करता है।
- दूसरा, आरबीआई रेपो दर को भी कम करता है, और अपेक्षा करता है कि, बदले में, वाणिज्यिक बैंक ब्याज दरों को कम करने के लिए प्रोत्साहन महसूस करेंगे।
- कम ब्याज दरों एवं अधिक तरलता से अर्थव्यवस्था में उपभोग एवं उत्पादन दोनों को प्रोत्साहन प्राप्त होने की संभावना है।
- एक शिथिल मौद्रिक नीति के विपरीत एक “दृढ़ मौद्रिक नीति” होती है। इसमें आरबीआई को ब्याज दरों में वृद्धि करना एवं ऋण पत्रों (बॉन्ड) का विक्रय कर (एवं प्रणाली में से से धन का आहरण कर) अर्थव्यवस्था से तरलता का अंतः शोषण शामिल है।
- जब आरबीआई को पता चलता है कि एक शिथिल मौद्रिक नीति अनुत्पादक होने लगी है (जैसे, जब यह उच्च मुद्रास्फीति दर की ओर ले जाती है), तो केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति के रुख को सख्त करके “नीति को सामान्यीकृत” करता है।
क्या है रिवर्स रेपो रेट?
- रिवर्स रेपो वह ब्याज दर है जो आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को भुगतान करता है जब वे आरबीआई के पास अपनी अतिरिक्त तरलता जमा करते हैं।
- इस प्रकार, रिवर्स रेपो, रेपो दर के ठीक विपरीत है।
ब्याज दर के लिए मानक
जब अर्थव्यवस्था वृद्धि कर रही हो।
- रेपो दर बेंचमार्क ब्याज दर है।
जब अर्थव्यवस्था में गिरावट हो रही हो
- व्यवसाय नए निवेश करना बंद कर देते हैं एवं, उसी रूप में, उतने नए ऋण की मांग नहीं करते हैं।
- इसका तात्पर्य है कि बैंकों की आरबीआई से नए फंड की मांग भी कम हो जाती है।
- इस मामले में, बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त तरलता होती है, किंतु वे दो कारणों से व्यवसायों को ऋण प्रदान नहीं कर रहे हैं:
- एक, क्योंकि बैंक उधार देने के लिए अत्यंत जोखिम-प्रतिकूल हैं; तथा
- दो, क्योंकि व्यवसायों की कुल मांग में भी कमी आई है।
- इन स्थितियों में, कार्रवाई रेपो दर से रिवर्स रेपो दर में स्थानांतरित हो जाती है क्योंकि बैंकों को अब आरबीआई से पैसा उधार लेने में कोई रुचि नहीं है।
- इसके स्थान पर, बैंक अपनी अतिरिक्त तरलता को आरबीआई के पास रखने में अधिक रुचि रखते हैं एवं इसी तरह रिवर्स रेपो अर्थव्यवस्था में वास्तविक मानक (बेंचमार्क) ब्याज दर बन जाता है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था को कोविड-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान इस स्थिति का सामना करना पड़ा।
- आरबीआई ने, लॉकडाउन के दौरान, रेपो दर एवं रिवर्स रेपो दर के मध्य के अंतराल को और विस्तृत कर दिया था ताकि बैंकों के लिए इसे कम आकर्षक बनाने हेतु आरबीआई में अपने कोष को सरलता से जमा जा सके।
रिवर्स रेपो प्रसामान्यीकरण
- सरल रूप में, इसका अर्थ है कि रिवर्स रेपो की दरों में वृद्धि होगी।
- बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण, दुनिया भर के अनेक केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दर में वृद्धि की है। भारत में, आरबीआई द्वारा भी रेपो रेट में वृद्धि करने की संभावना है। यद्यपि, रेपो रेट में वृद्धि करने से पूर्व वह दो दरों के आध्या के अंतर को कम करने हेतु पहले रिवर्स रेपो रेट में वृद्धि करेगा।
- एसबीआई को पहले अपेक्षा है कि रिवर्स रेपो 35% से बढ़कर 3.75% हो जाएगा जबकि रेपो दर 4% बनी रहेगी। यह वाणिज्यिक बैंकों को आरबीआई के पास अतिरिक्त धन जमा करने के लिए प्रोत्साहित करेगा, इस प्रकार प्रणाली में से कुछ तरलता को अंतः अवशोषित कर लेगा।
क्यों है प्रसामान्यीकरण ?
- प्रसामान्यीकरण की इस प्रक्रिया का उद्देश्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना है।
- यह न केवल अतिरिक्त तरलता को कम करेगा बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था में चतुर्दिक उच्च ब्याज दरों में भी परिणत होगा।
- इस प्रकार यह उपभोक्ताओं के मध्य धन की मांग को कम करेगा क्योंकि वे धन को केवल बैंक में रखना पसंद करेंगे।
- इस प्रकार, व्यवसायों के लिए नए ऋण लेना महंगा हो जाएगा।