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रुपए का मूल्यह्रास यूपीएससी: प्रासंगिकता
- जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।
रुपए का अवमूल्यन: प्रसंग
- हाल ही में, भारतीय रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.03 का ऐतिहासिक निम्नतम स्तर अंकित किया; इस वर्ष जनवरी के बाद से इसमें करीब 6 प्रतिशत की गिरावट आई है।
डॉलर के मुकाबले रुपये का अवमूल्यन: प्रमुख बिंदु
- रुपये के मूल्यह्रास से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों जैसे आयात, मुख्य रूप से ईंधन की कीमतों एवं मुद्रास्फीति की वृद्धि होने पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।
- वित्त मंत्री ने हालांकि कहा कि भारतीय मुद्रा ग्रीनबैक (अमेरिकी डॉलर) के मुकाबले अन्य वैश्विक मुद्राओं की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है।
रुपया क्यों गिर रहा है?
- मांग एवं आपूर्ति: यदि कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है, तो डॉलर की मांग आपूर्ति की तुलना में अधिक होगी एवं इससे डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए जैसी घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन होगा।
- रूस-यूक्रेन युद्ध: रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक व्यवधान हमारे आयात को महंगा बना रहे हैं, जिससे चालू खाता घाटा में कितनी हो रही है।
- बढ़ती मुद्रास्फीति: बढ़ती मुद्रास्फीति घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास करती है क्योंकि मुद्रास्फीति को मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी के साथ समझा जा सकता है। परिणामस्वरूप, उच्च मुद्रास्फीति का अनुभव करने वाले देशों में अन्य मुद्राओं के मुकाबले उनकी मुद्राएं कमजोर होती हैं।
- कच्चे तेल की ऊंची कीमतें: कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें हमारे व्यापार घाटे को और बढ़ा रही हैं जिससे रुपये के मूल्य में कमी आ रही है।
- भारत से पूंजी का बहिर्वाह: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में वृद्धि की है एवं भारत जैसे उभरते बाजारों की तुलना में डॉलर की संपत्ति पर लाभ (रिटर्न) में वृद्धि हुई है। इससे भारत से अमेरिका में डॉलर का बहिर्वाह हुआ है।
भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट: प्रभाव
- कच्चे माल की लागत में वृद्धि: चूंकि, भारत अनेक प्रकार के कच्चे माल का आयात करता है, इस कारण से तैयार माल की कीमत बढ़ सकती है जिससे उपभोक्ताओं पर प्रभाव पड़ सकता है।
- निर्यात को बढ़ावा: एक आदर्श परिदृश्य में, रुपये के अवमूल्यन से निर्यात में वृद्धि हो सकती है। यद्यपि, कमजोर वैश्विक मांग तथा निरंतर अस्थिरता के वर्तमान परिदृश्य में, निर्यातक मुद्रा में गिरावट का समर्थन नहीं कर रहे हैं।
- मुद्रास्फीति: गिरते रुपये का सबसे बड़ा प्रभाव मुद्रास्फीति पर पड़ता है, क्योंकि भारत अपने कच्चे तेल का 80 प्रतिशत से अधिक आयात करता है, जो देश का सबसे बड़ा आयात है।
- विदेश में पढ़ने वाले यात्रियों एवं छात्रों को बैंकों से डॉलर खरीदने के लिए अधिक रुपये व्यय करने होंगे।
- शेयर बाजार: रुपये के मूल्यह्रास से विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से बाहर निकल सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शेयरों तथा इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश में गिरावट आ सकती है।
क्या रुपया और गिरेगा?
- मजबूत डॉलर तथा भारत में बढ़ते मुद्रास्फीति के दबाव के कारण रुपये पर दबाव बने रहने की संभावना है।
- इसके अतिरिक्त, अनवरत एफपीआई बहिर्वाह से भी मुद्रा पर भार पड़ने की संभावना है।
- इसके अतिरिक्त, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए दृष्टिकोण आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों, चीन में लॉकडाउन एवं यूक्रेन में युद्ध के मध्य मेरा साजन दिख रहा है, जिससे सुरक्षित-हेवन डॉलर के मांग में रहने की संभावना है।
रुपये का मूल्यह्रास क्या है?
- मुद्रा का मूल्यह्रास, हमारे संदर्भ में रुपये का तात्पर्य है कि घरेलू मुद्रा विदेशी मुद्राओं के मुकाबले अपना मूल्य खो रही है।
- एक वस्तु की भांति, एक मुद्रा मांग तथा आपूर्ति में उतार-चढ़ाव (एक अस्थायी विनिमय दर प्रणाली में) के अधीन है।
- चूंकि यूएस डॉलर (यूएसडी) विश्व में सर्वाधिक कारोबार वाली मुद्रा है, अतः अधिकांश मुद्राओं को भारतीय रुपये सहित अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बेंचमार्क किया जाता है।
- उदाहरण के लिए, यदि रुपये में 70 से 75 तक की गिरावट आई है, तो इसका तात्पर्य है कि पहले जब हम 1 अमरीकी डालर के उत्पाद का क्रय करने हेतु 70 रुपये का भुगतान करते थे, अब हम उसी उत्पाद का क्रय करने हेतु 75 रुपये का भुगतान कर रहे हैं। यद्यपि, निर्यात के मामले में, इसका तात्पर्य है कि हमें 1 अमरीकी डालर के उत्पाद का विक्रय करने हेतु 70 रुपये के संदर्भ में 75 रुपये प्राप्त होंगे।