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दलित मुसलमानों एवं ईसाइयों के लिए एससी कोटा- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- सामान्य अध्ययन II- कमजोर वर्गों के लिए गठित कानून, संस्थान एवं निकाय।
दलित मुसलमानों एवं ईसाइयों के लिए एससी कोटा चर्चा में क्यों है?
केंद्र शीघ्र ही हिंदू, बौद्ध एवं सिख धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों में धर्मांतरित होने वाले दलितों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग के गठन पर निर्णय ले सकता है।
- ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों के लिए अनुसूचित जाति (शेड्यूल कास्ट/एससी) आरक्षण लाभ की मांग करने वाली अनेक याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हैं।
दलित तथा कोटा लाभ
- अनुसूचित जातियों को आरक्षण देने के पीछे मूल तर्क यह था कि ये वर्ग अस्पृश्यता की सामाजिक बुराई से पीड़ित थे, जो हिंदुओं में प्रचलित थी।
- संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत, राष्ट्रपति जातियों, नस्लों या जनजातियों या जातियों, नस्लों या जनजातियों के कुछ हिस्सों या समूहों को निर्दिष्ट कर सकते हैं जिन्हें…अनुसूचित जाति माना जाएगा।
- इस प्रावधान के तहत पहला आदेश 1950 में जारी किया गया था एवं इसमें केवल हिंदुओं को सम्मिलित किया गया था।
- सिख समुदाय की मांगों के बाद, 1956 में एक आदेश जारी किया गया, जिसमें अनुसूचित जाति कोटे के लाभार्थियों में दलित मूल के सिख सम्मिलित थे।
- 1990 में, सरकार ने दलित मूल के बौद्धों की इसी तरह की मांग को स्वीकार कर लिया तथा आदेश को संशोधित कर कहा गया: “कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से पृथक धर्म को मानता है, को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 1990 के पश्चात, इस उद्देश्य के लिए संसद में अनेक निजी सदस्य विधेयक लाए गए।
- 1996 में, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) विधेयक नामक एक सरकारी विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया था, किंतु विचारों की भिन्नता को देखते हुए, विधेयक को संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया था।
- तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने दो महत्वपूर्ण पैनल गठित किए:
- रंगनाथ मिश्रा आयोग: राष्ट्रीय धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक आयोग, जिसे लोकप्रिय रूप से रंगनाथ मिश्रा आयोग के रूप में जाना जाता है, अक्टूबर 2004 में गठित किया गया।
- सच्चर समिति: मार्च 2005 में मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में सात सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया।
संस्तुतियां
- सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि धर्मांतरण के पश्चात दलित मुसलमानों एवं दलित ईसाइयों की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
- रंगनाथ मिश्रा आयोग, जिसने मई 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, ने संस्तुति की कि अनुसूचित जाति का दर्जा धर्म से पूर्ण रूप से पृथक किया जाना चाहिए एवं अनुसूचित जातियों को अनुसूचित जनजातियों की तरह पूर्ण रूप से धर्म-निरपेक्ष बनाया जाना चाहिए।
संस्तुतियों पर प्रतिक्रिया
- रिपोर्ट को 2009 में संसद में प्रस्तुत किया गया था, किंतु अपर्याप्त क्षेत्रीय आंकड़ों तथा जमीन पर वास्तविक स्थिति के साथ पुष्टि के मद्देनजर इसकी सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया था।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा किए गए कुछ अध्ययनों को भी अपर्याप्त डेटा के कारण विश्वसनीय नहीं माना गया था।
आगे की राह
- रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों के आधार पर, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कुछ याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें दलित मूल के ईसाइयों एवं मुसलमानों के लिए आरक्षण लाभ की मांग की गई है।
- पिछली सुनवाई में, तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने भारत के सॉलिसिटर जनरल को इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का रुख प्रस्तुत करने हेतु तीन सप्ताह का समय दिया था।
- अगली सुनवाई प्रतीक्षित है।