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आईटी अधिनियम की धारा 69 ए

आईटी अधिनियम की धारा 69 ए – यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

आईटी अधिनियम की धारा 69ए: सूचना प्रौद्योगिकी (इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी/आईटी) अधिनियम एक महत्वपूर्ण विधान है जो देश में सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित पहलुओं को शासित एवं विनियमित करता है। यूपीएससी  सिविल सेवा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन के पेपर 2 (शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- सरकारी नीतियां एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए अंतःक्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दों के लिए आईटी अधिनियम की धारा 69 ए महत्वपूर्ण है।

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समाचारों में आईटी अधिनियम की धारा 69  

  • हाल ही में, ट्विटर ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसमें केंद्र सरकार के कई अविरोधीआदेशों को निरस्त करने के साथ-साथ व्यक्तिगत खातों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के स्थान पर विशिष्ट उल्लंघनकारी सामग्री की पहचान करने के लिए उनके निर्देशों को बदलने की मांग की गई।
  • ट्विटर का मानना ​​है कि सरकार ने कथित तौर पर यह प्रदर्शित नहीं किया है कि लोक व्यवस्था के हित में या किसी अन्य कारण से प्रतिबंध क्यों आवश्यक थे।

 

आईटी एक्ट की धारा 69ए क्या है?

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 ए सरकार को देश की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में किसी भी सामग्री तक पहुंच को प्रतिबंधित करने का अधिकार प्रदान करती है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी  (इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी/आईटी) अधिनियम की धारा 69 ए के तहत, संचलन में सूचना या सामग्री को प्रतिबंधित करने के सभी निर्देशों को लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।
  • प्रतिबंधों हेतु आधार: सरकार किसी भी विषय वस्तु/सामग्री की पहुंच को निम्नलिखित आधार पर प्रतिबंधित कर सकती है-
    • देश की संप्रभुता एवं अखंडता,
    • राज्य की सुरक्षा,
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक/लोक व्यवस्था।
  • दंड: नियमों का अनुपालन करने में विफल रहने वाले सोशल मीडिया मध्यवर्ती संस्थाओं/ मध्यस्थों को कारावास की अवधि के साथ-साथ सात वर्ष तक की अवधि के लिए मौद्रिक रूप से दंडित किया जा सकता है।

 

सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध करने हेतु प्रक्रिया एवं सुरक्षा) नियम, 2009

सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2009 सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों को क्रियान्वित करने की प्रक्रियाओं को सूचीबद्ध करता है। मुख्य विवरण नीचे सूचीबद्ध हैं-

  • सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में कहा गया है कि सरकार द्वारा नामित अधिकारी एक परीक्षा समिति के साथ विचाराधीन सामग्री का आकलन लिखित अनुरोध प्राप्त करने के 48 घंटों के भीतर करता है।
    • इसे सामग्री के लेखक या प्रवर्तक को स्पष्टीकरण प्रदान करने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
  • इसके बाद सिफारिशों को सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव के पास पहुंच को प्रतिबंधित करने हेतु सोशल मीडिया मध्यस्थ को एक अनुरोध अग्रेषित करने के लिए अनुमोदन हेतु भेजा जाता है।
  • आपातकालीन प्रावधान यह निर्धारित करते हैं कि विशिष्ट कारणों से विषय वस्तु/सामग्री को अवरुद्ध किए जाने के बाद, किंतु 48 घंटों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा जाए।
  • उचित जांच के पश्चात उन्हें निरस्त किया जा सकता है।

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संबद्ध सरोकार

  • इंटरनेट पक्षपोषण (एडवोकेसी) समूह नियम 16 ​​के विशेष रूप से आलोचक रहे हैं जो सुझाव देते हैं कि सभी अनुरोधों तथा उनके द्वारा की गई कार्रवाइयों पर सख्त गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए – प्रायः पारदर्शिता की कमी के कारण जिम्मेदार ठहराया जाता है।
  • उल्लिखित विधानों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के दायरे में पढ़ा जाना है जो वाक् तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
    • हालांकि, अनुच्छेद का खंड 2 राज्य को उन्हीं समान कारणों से ‘युक्तियुक्त प्रतिबंध’ लगाने की अनुमति देता है, जो धारा 69ए के लिए हैं।

 

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