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सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा – यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- शिक्षा से संबंधित सामाजिक क्षेत्र / सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
- जीएस पेपर 4:
- नैतिकता एवं मानव अंतरापृष्ठ- मूल्यों को विकसित करने में परिवार, समाज एवं शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका;
- भावनात्मक प्रज्ञा –अवधारणाएँ तथा प्रशासन एवं शासन में उनकी उपयोगिताएँ एवं अनुप्रयोग।
सामाजिक एवं भावनात्मक शिक्षा – पृष्ठभूमि
- सामाजिक एवं भावनात्मक अधिगम/शिक्षा (एसईएल) भारत में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है जैसा कि नवीनतम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) में उल्लेख किया गया है।
- सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा- शिक्षा के माध्यम से तदनुभूति
- सामाजिक एवं भावनात्मक शिक्षा की परिभाषा: एसईएल भावनाओं को पहचानने एवं प्रबंधित करने तथा सामाजिक स्थितियों को प्रभावी ढंग से मार्ग निर्देशित करने हेतु सीखने की प्रक्रिया है।
- एसईएल का महत्व: यह छात्रों के मध्य संचार, सहयोग, महत्वपूर्ण विचार एवं रचनात्मकता जैसे कौशल का समर्थन करता है जो संख्यात्मकता एवं साक्षरता (एनईपी 2020 का केंद्रीय उद्देश्य) जितना ही महत्वपूर्ण है।
- एसईएल निम्नलिखित के लिए आधारभूत है-
- मानव विकास,
- स्वस्थ संबंध निर्माण,
- स्वयं की एवं सामाजिक जागरूकता रखना,
- समस्याओं का समाधान,
- उत्तरदायी निर्णय लेना, एवं
- सैद्धांतिक शिक्षा।
- शोध में पाया गया है कि अधिक सामाजिक कौशल एवं भावनात्मक विनियमन वाले छात्रों के सफल होने की संभावना अधिक होती है।
- एसईएल निम्नलिखित के लिए आधारभूत है-
- एसईएल के प्रमुख तत्व: एसईएल के प्रमुख तत्वों में ‘तदनुभूति’ एवं ‘प्रज्ञा के सिद्धांत’ (थ्योरी ऑफ़ माइंड) को विकसित करना शामिल है।
- तदनुभूति: यह किसी अन्य व्यक्ति की भावनाओं को समझने एवं इस बात से अवगत होने की क्षमता है कि वे अपने दृष्टिकोण से उन भावनाओं को क्यों महसूस कर रहे हैं।
- प्रज्ञा का सिद्धांत: यह दूसरों के अभिप्राय, ज्ञान एवं भावनाओं को समझने तथा यह पहचानने की क्षमता है कि वे आपके अपने इन गुणों से पृथक हो सकते हैं।
- कोविड-19 के कारण विद्यालय बंद होने का प्रभाव:
- नकारात्मक प्रभाव: विद्यालय बंद होने से छात्रों के लिए सामाजिक संबंधों को गहन करने एवं साझा भौतिक स्थानों में सहयोगात्मक रूप से सीखने के अवसरों में कमी आई है।
- सकारात्मक प्रभाव: दूरस्थ शिक्षा ने माता-पिता को अपने बच्चों के सामाजिक एवं भावनात्मक जीवन की खोज करने का अवसर प्रदान किया।
किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015
सामाजिक एवं भावनात्मक शिक्षा- आगे की राह
- सामाजिक एवं भावनात्मक शिक्षा (एसईएल) को इसमें मात्र एक अध्याय के रूप में जोड़ने के स्थान पर वृहद पाठ्यक्रम के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।
- यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि सीखने की प्रक्रिया एक सामाजिक एवं भावनात्मक अनुभव है।
- एक भारतीय एसईएल ढांचा विकसित करना: यह निम्नलिखित पर आधारित होना चाहिए-
- एसईएल अभ्यासों का अनुप्रयोग छात्रों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि पर आधारित होना चाहिए,
- प्रभारियों एवं शिक्षकों की एसईएल रणनीतियों को एक दूसरे के साथ संरेखित करना चाहिए,
- दीर्घकालीन सफलता के लिए आवश्यक है कि एसईएल वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित हो।
- नीति निर्माताओं की भूमिका: नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य के बदलाव “समावेशी एवं एवं न्यायसंगत गुणवत्ता वाली शिक्षा को प्राथमिकता दें एवं सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा दें।”