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एसपीसीबी: यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता
जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, वैधानिक निकाय
एसपीसीबी: परिचय
- भारत के फ्रंटलाइन पर्यावरण नियामक, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड/एसपीसीबी) एवं केंद्र शासित प्रदेशों में प्रदूषण नियंत्रण समितियां (पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी/पीसीसी) अपने संबंधित अधिदेश के अनुसार कार्य नहीं कर रहे हैं।
- यह एक सबसे बड़ा कारण है कि संपूर्ण भारत में प्रमुख पर्यावरणीय संकेतक और बदतर हो रहे हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में, संसदीय स्थायी समिति एवं सरकारी समितियों सहित प्रकाशित की गई कई रिपोर्टों ने एसपीसीबी के खराब प्रदर्शन के कारणों की पहचान की है।
- सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च द्वारा हाल ही में प्रकाशित शोध पत्रों की एक श्रृंखला में, हम पाते हैं कि इनमें से कई कारण एसपीसीबी को और त्रस्त करते हैं।
एसपीसीबी: क्या एसपीसीबी के बढ़े हुए अधिदेश ने काम किया है?
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों का गठन प्रारंभ में जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत किया गया था।
- वायु (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत, वायु गुणवत्ता प्रबंधन को सम्मिलित करने हेतु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिदेश का विस्तार किया गया था।
- इसके बाद, कई नए पर्यावरण नियमों ने उनकी भूमिकाओं एवं कार्यों में बढ़ोतरी की।
- दुर्भाग्य से, इस बढ़े हुए अधिदेश का बोर्डों में बढ़ी हुई क्षमता तथा सामर्थ्य के साथ सुमेलन नहीं किया गया है।
- चूंकि देश के अनेक हिस्सों में वायु गुणवत्ता एवं जल की गुणवत्ता जैसे पर्यावरणीय संकेतक और बदतर होते जा रहे हैं, बोर्ड स्पष्ट रूप से अपने वैधानिक अधिदेश का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने में विफल हो रहे हैं।
एसपीसीबी: प्रमुख संस्थागत बाधाएं जिसके तहत एसपीसीबी कार्य करते हैं
एसपीसीबी की अवैज्ञानिक संरचना
- अधिकांश राज्यों के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में महत्वपूर्ण हितधारक तथा महत्वपूर्ण विशेषज्ञता वाले व्यक्ति अनुपस्थित हैं।
- बोर्ड बहु-सदस्यीय निकाय होते हैं जिनकी अध्यक्षता एक अध्यक्ष एवं एक सदस्य-सचिव द्वारा की जाती है। उनके निर्णय एवं नीतियां संगठन के दैनिक कामकाज का मार्गदर्शन करती हैं।
- एसपीसीबी तथा पीसीसी में बोर्ड के 50% से अधिक सदस्य संभावित प्रदूषकों: स्थानीय प्राधिकरण, उद्योग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- इसी के साथ, वैज्ञानिक, चिकित्सा व्यवसायी एवं शिक्षाविद बोर्ड के सदस्यों का मात्र 7% हिस्सा गठित करते हैं।
- अधिकांश बोर्ड कम से कम दो बोर्ड सदस्यों की वैधानिक आवश्यकता को पूरा नहीं करते हैं, जिन्हें वायु गुणवत्ता प्रबंधन का ज्ञान एवं अनुभव है।
एसपीसीबी का अस्थिर नेतृत्व
- एसपीसीबी के अध्यक्ष एवं सदस्य सचिव – लंबे, स्थिर तथा पूर्णकालिक कार्यकाल का उपभोग नहीं करते हैं।
- अनेक राज्यों में, इन दो पदों पर व्यक्ति अन्य सरकारी विभागों में अतिरिक्त प्रभार रखते हैं।
- एसपीसीबी के नेतृत्व का ध्यान कई भूमिकाओं में क्षीण होने एवं उनका कार्यकाल छोटा होने के कारण, प्रायः उनके पास स्थानांतरण से पूर्व अपने अधिदेश को पूर्ण रूप से समझने का समय भी नहीं होता है।
- ऐसे परिदृश्य में, वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम करने के उद्देश्य से दीर्घकालिक नीति नियोजन, रणनीतिक हस्तक्षेप एवं प्रभावी निष्पादन अत्यंत दुष्कर हैं।
एसपीसीबी में कर्मचारियों की कमी
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में कर्मचारियों की गंभीर रूप से कमी हैं। नौ एसपीसीबी/पीसीसी में कुल स्वीकृत पदों में से कम से कम 40% पद रिक्त हैं, जिसके लिए डेटा उपलब्ध है।
- तकनीकी पदों पर रिक्तियों का स्तर झारखंड में 84% एवं बिहार तथा हरियाणा में 75% से अधिक है।
- अपर्याप्त कर्मचारियों की संख्या बोर्डों को अपने विभिन्न कार्यों के बीच अपनी प्राथमिकताओं को पुनर्निर्धारित करने हेतु बाध्य करती है। इसका प्रदूषण नियमन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है क्योंकि औद्योगिक अनुपालन की निगरानी, उल्लंघन के मामले में प्रवर्तन कार्रवाई प्रारंभ करने तथा मानक निर्धारण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को प्रायः प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
एसपीसीबी: क्या किया जाना चाहिए?
- भारत में वायु प्रदूषण के व्यापक स्तर एवं कारणों को देखते हुए इससे निपटने के लिए बहु-विषयक विशेषज्ञता की आवश्यकता है।
- वायु प्रदूषण नीति तैयार करते समय स्वास्थ्य पर भी स्पष्ट ध्यान दिया जाना चाहिए।
- विशेषज्ञता का अभाव एवं बोर्डों में हितधारकों का विषम प्रतिनिधित्व केवल प्रभावी नीति निर्माण में एक बाधा सिद्ध हो सकता है।
- हमारे फ्रंटलाइन नियामकों में आवश्यक क्षमता, सामर्थ्य, विशेषज्ञता एवं दूरदर्शिता के बिना, वायु गुणवत्ता में निरंतर तथा पर्याप्त लाभ लगभग असंभव है।
- यदि हमारे एसपीसीबी (राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) को अभी भी नियमित कार्यों को निष्पादित करने में असमर्थ हैं, तो हम उनसे नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तेजी से विकसित होने की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं?
- उनके अभीष्ट के अनुरूप कार्य करने में सहायता करने हेतु पर्याप्त रूप से अधिक समर्थन एवं निवेश की आवश्यकता है।