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भारत में अक्षय ऊर्जा की संस्थिति- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 3:
- आधारिक अवसंरचना- ऊर्जा;
- पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण।
भारत में अक्षय ऊर्जा संस्थिति- संदर्भ
- इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन ने देश में अक्षय ऊर्जा अधिष्ठापनों को मंद कर दिया है एवं इस तरह के अधिष्ठापन की गति भारत के 2022 के लक्ष्य से पीछे है।
- आईईईएफए यूएसए स्थित एक गैर-लाभकारी निगम है।
भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य एवं प्रदर्शन
- हरितगृह गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए, भारत का लक्ष्य 2022 तक 175 गीगावाट (जीडब्ल्यू) एवं 2030 तक 450 गीगावाट हरित ऊर्जा स्थापित करना है।
- वित्त वर्ष 2020/21 में ऐसी क्षमता का मात्र 7 गीगावाट जोड़ा गया था।
- केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ों से ज्ञात होता है है कि भारत को मार्च 2023 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता (40 गीगावॉट रूफटॉप सोलर एवं 60 गीगावॉट भूतल-आरूढ़ उपादेयता अनुमाप/ग्राउंड-माउंटेड यूटिलिटी स्केल) स्थापित करनी थी।
- भारत 31 जुलाई, 2021 तक मात्र 94 गीगावाट स्थापित करने में सफल रहा है।
भारत में अक्षय ऊर्जा एवं भूमि उपयोग
अक्षय ऊर्जा संस्थिति- प्रमुख निष्कर्ष
- इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) पर कुल ऊर्जा कारोबार एवं मूल्यों में में वृद्धि: व्यापार की गई ऊर्जा की मात्रा में 2020 की तुलना में 20%, 2019 की तुलना में 37% तथा 2018 की तुलना में 30% की वृद्धि हुई।
- इससे 2020 की तुलना में कीमतों में औसतन 38%, 2019 की तुलना में 8% एवं 2018 की तुलना में 11% की वृद्धि हुई।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से पवन एवं जल विद्युत तक अधिक पहुंच होती, तो यह ऊर्जा की कीमतों को कम करने में योगदान दे सकती थी।
- कोयला भंडार: यह वित्त वर्ष 2020/21 के अंत में 1,320 लाख टन (एमटी) के नए रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया एवं विगत पांच वर्षों के मासिक औसत से अधिक हो गया।
- घरेलू कोयले पर ध्यान केंद्रित करने से आयातित कोयले पर निर्भरता बढ़ी। भारत के सर्वाधिक वृहद कोयला उत्पादक के पास लगभग दो माह की आपूर्ति थी।
- अधिकांश ताप विद्युत संयंत्रों ने कोयले की आपूर्ति की संकटमय स्थिति की सूचना दी: अधिकांश संयंत्रों में 1 से 5 दिनों के लिए कोयले का भंडार शेष था। यद्यपि, तापीय ऊर्जा केंद्र की आवश्यकता 21 दिनों अथवा न्यूनतम 15 दिनों तक कोयले की आपूर्ति बनाए रखने की है।
- अधिकांश मामलों में, आपूर्ति का मुद्दा सीआईएल के पास कोयले के भंडार की कमी के मुद्दे के बजाय थर्मल पावर उत्पादक के सिरे पर था।
हिमालय में जल विद्युत परियोजनाएं
संबद्ध सुझाव
- ‘लोचशील एवं गतिशील उत्पादन समाधान‘ भारत की बढ़ती दैनिक अधिकतम मांग की चुनौती को पूर्ण करने हेतु भारतीय विद्युत प्रणाली की आवश्यकता है।
- इसके लिए अतिरिक्त बेस लोड थर्मल क्षमता में निवेश की आवश्यकता नहीं है।
- ‘लोचशील एवं गतिशील उत्पादन समाधान‘: जैसे बैटरी भंडारण, पंप किए गए हाइड्रो स्टोरेज, गैस संचालित धारिता एवं इसके मौजूदा कोयला बेड़े का लोचशील संचालन।
- सरकार को ऐसे स्रोतों के परिनियोजन में तेजी लानी चाहिए ताकि अधिकतम मांग को पूर्ण करने में सहायता प्राप्त हो सके एवं कम लागत पर ग्रिड को संतुलित किया जा सके।
- उनकी कीमतें गिर रही थीं एवं इसलिए यह लागत प्रभावी होगी तथा अधिकतम मांग के दौरान पावर एक्सचेंज में अत्यंत उच्च कीमतों के विरुद्ध एक उभयरोधी (बफर) होगा।