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वन्य प्रजातियों का सतत उपयोग: प्रासंगिकता
- जीएस 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन।
वन्य प्रजातियों का सतत उपयोग: प्रसंग
- हाल ही में, जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतर सरकारी विज्ञान-नीति मंच (इंटरगवर्नमेंटल साइंस पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज/आईपीबीईएस) ने एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लगभग 50,000 वन्य प्रजातियां अरबों लोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकती हैं।
वन्य प्रजातियों का सतत उपयोग: प्रमुख बिंदु
- चार वर्ष की अवधि के पश्चात इस तरह की प्रथम रिपोर्ट की कल्पना की गई है।
- IPBES के 2019 वैश्विक मूल्यांकन (ग्लोबल असेसमेंट) ने वर्तमान जैव विविधता हानि के मुख्य चालकों में से एक के रूप में वन्य प्रजातियों के अति-शोषण की पहचान की है।
- रिपोर्ट में वन्य प्रजातियों के लिए उपयोग की जाने वाली पद्धतियों की पांच श्रेणियों को लघु सूचीबद्ध (शॉर्टलिस्ट) किया गया है – मत्स्यन, अति-संग्रहण, वृक्षों की कटाई (लॉगिंग), स्थलीय पशुओं का दोहन जिसमें शिकार तथा गैर-दोहक जैसे अवलोकन सम्मिलित हैं।
- रिपोर्ट ने विगत दो दशकों में भोजन, सामग्री, चिकित्सा लाभ, ऊर्जा, मनोरंजन एवं औपचारिक उद्देश्यों तथा सजावट के संबंध में प्रत्येक श्रेणी के लिए विशिष्ट उपयोगों की जांच की।
वन्य प्रजातियों का सतत उपयोग: प्रमुख निष्कर्ष
- विभिन्न पद्धतियों के माध्यम से लगभग 50,000 वन्य प्रजातियों को उपयोजित किया जाता है, जिसमें 10,000 से अधिक वन्य प्रजातियां प्रत्यक्ष रुप से मानव भोजन के लिए काटी जाती हैं।
- विकासशील देशों में ग्रामीण लोगों को असंधारणीय उपयोग से सर्वाधिक खतरा होता है, पूरक विकल्पों की कमी के कारण प्रायः उन्हें पूर्व से ही खतरे में पड़ी वन्य प्रजातियों का और अधिक दोहन करने हेतु बाध्य होना पड़ता है।
- पांच स्रोतों में से एक अपना भोजन जंगली पौधों, शैवाल तथा कवक से प्राप्त करता है, जबकि 2.4 बिलियन भोजन पकाने के लिए जलावन की लकड़ी पर निर्भर करता है एवं मत्स्य पालन करने वाली 120 मिलियन आबादी में से लगभग 90 प्रतिशत छोटे पैमाने पर मत्स्यन पर निर्भर हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, वन्य प्रजातियों का उपयोग पहचान तथा आजीविका को परिभाषित करता है एवं सांस्कृतिक महत्व भी रखता है।
- स्वदेशी एवं स्थानीय समुदायों को वन्य प्रजातियों का सतत रूप से उपयोग करने की उनकी क्षमता बनाए रखने में सहायता करना तथा उनसे जुड़ी उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं की रक्षा करना उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करेगा।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्वदेशी लोगों एवं स्थानीय समुदायों ने वन्य प्रजातियों के सतत उपयोग के लिए स्थानीय ज्ञान, पद्धतियों एवं आध्यात्मिकता का उपयोग किया।
- वे प्रकृति का सम्मान करते थे एवं मात्र वही ग्रहण करते थे जिसकी उन्हें आवश्यकता होती थी। इससे यह सुनिश्चित हुआ कि वन्य प्रजातियों की स्वस्थ आबादी सुरक्षित बनी रहे।