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जलवायु संकट से निपटना

जलवायु संकट से निपटना- यूपीएससी परीक्षा हेतु प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 3: पर्यावरण– संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं अवक्रमण।

जलवायु संकट से निपटना- पृष्ठभूमि

UPSC Current Affairs

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जलवायु संकट से निपटना- जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) छठी आकलन रिपोर्ट

  • वैश्विक तापन पर: विगत दशक (2011-2020) 1850 से 1900 की अवधि की तुलना में 09 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था।
  • पूर्वानुमान: आईपीसीसी रिपोर्ट में पूर्वानुमान किया गया है कि 5 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापन सीमा शीघ्र ही भंग होने की संभावना है।
  • भारत पर: आईपीसीसी रिपोर्ट भारत को और अधिक तीव्र उष्णता लहरों, भारी मानसून एवं भविष्य में मौसम की प्रचंड स्थिति में वृद्धि के प्रति आगाह करती है।
    • प्रचंड मौसम: ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (2021) ने भारत को प्रचंड मौसम से सर्वाधिक प्रभावित देशों में सातवां स्थान प्रदान किया।

डब्ल्यूएचओ वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा निर्देश 2021

जलवायु संकट से निपटना- भारत की अनुकूलन रणनीतियाँ

  • भारत ने 2030 तक 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है एवं इसने मेगा सौर एवं हरित हाइड्रोजन मिशन आरंभ किया है।
  • नीति आयोग द्वारा शून्य कार्यक्रम: इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में तीव्रता लाने का लक्ष्य, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने की दिशा में एक अन्य प्रयास है।
  • अन्य अनुकूलन रणनीतियाँ: भारत में अनुकूलन की दिशा में, जैसे कि जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना एवं राष्ट्रीय अनुकूलन कोष, कुछ समर्पित पहलें हैं।

जलवायु प्रेरित प्रवासन एवं आधुनिक दासता

जलवायु संकट से निपटना- आगे की राह

  • कठिन परिश्रम से अर्जित विकासात्मक लाभों को सुरक्षित करने एवं नवीन जलवायु परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने हेतु अनुकूलन एवं लचीलापन कार्यों पर सफलता की आवश्यकता है।
  • अनुकूलन योजना को व्यवसाय के सामान्य दृष्टिकोण से आगे जाने की आवश्यकता है:
    • एक विकास-केंद्रित दृष्टिकोण जो जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका के दृष्टिकोण को संरेखित करता है तथा क्षेत्रीय विशिष्टताओं को ध्यान में रखता है, निर्धनता एवं संकट प्रव्रजन को कम करने हेतु महत्वपूर्ण है।
    • विभिन्न स्तरों पर शासन को भेद्यता एवं जोखिम को कम करने के लिए समझने, योजना निर्मित करने, समन्वय करने, एकीकृत करने एवं कार्य करने की आवश्यकता है।
  • अनुकूलन एवं लोच शीलता को सुदृढ़ करें:
    • उन्नत पूर्व सूचना (चेतावनी) प्रणाली एवं पूर्वानुमान: उच्च गुणवत्ता वाले मौसम संबंधी आंकड़ों के साथ भारत को जलवायु परिवर्तन के लिए बेहतर तैयारी करने में सहायता करेगा।
    • सुदृढ़ जोखिम आकलन के लिए क्षेत्रीय जलवायु अनुमानों को विकसित करने हेतु प्रमुख शोध संस्थानों को सम्मिलित किया जा सकता है।
  • पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लिए अच्छी तरह से कार्य करने वाले बाजारों का विकास करना एवं वांछित व्यवहार परिवर्तन हेतु उनका प्रसार करना।
    • इसके परिणामस्वरूप सतत उत्पादन प्रणालियों का विकास होगा।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करें: इससे अनुकूलन प्रौद्योगिकियों में निवेश में सहायता प्राप्त होगी एवं कृषि, स्वास्थ्य,  आधारिक अवसंरचना, बीमा एवं जोखिम प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में नवीन जलवायु सेवाओं तथा समाधानों को डिजाइन एवं कार्यान्वित करने में सहायता मिलेगी।
  • मैंग्रोव एवं वनों की रक्षा करना: पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ मिश्रित कर जलवायु संबंधी जोखिमों का समाधान करना एवं स्थानीय तथा गैर-राज्य प्रतिभागियों को सक्रिय रूप से भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना।
  • जलवायु-सह्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सुनिश्चित करना: प्रतिस्कंदी आधारिक अवसंरचना परिसंपत्तियों का निर्माण करना, अर्थव्यवस्था में विविधता लाना एवं ग्रामीण परिवारों की अनुकूलन क्षमता में वृद्धि करने।
  • प्रभावी प्रतिक्रिया तंत्र: निरंतर अनुश्रवण एवं मूल्यांकन में सहायता करेगा एवं मध्य-पाठ्यक्रम सुधार के अवसर प्रदान करेगा।
    • जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजनाओं का आवधिक रूप से परिशोधन, सूक्ष्म स्तर की संवेदनशीलताओं को व्यवस्थित रूप से समझने, संसाधन आवंटन की योजना बनाने एवं जलवायु संकटों की तीव्रता के विभिन्न स्तरों पर कार्य करने के लिए डिजाइन प्रतिक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है।

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जलवायु संकट से निपटना- निष्कर्ष

  • जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के प्रति अधिक सहयोगात्मक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। अगली पीढ़ी के सुधार अनेक क्षेत्रों में नवीन व्यापार एवं जलवायु सेवा के अवसरों में वृद्धि करेंगे एवं इस प्रकार एक स्थायी अर्थव्यवस्था का निर्माण करेंगे।

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