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द कॉस्ट टू द कंट्री टू जस्ट फॉर सेविंग्स इन सीटीसी- द हिंदू संपादकीय विश्लेषण 

सीटीसी में बचत के लिए देश की लागत की यूपीएससी के लिए प्रासंगिकता 

भारत में रोजगार की स्थिति भारतीय अर्थव्यवस्था एवं देश में मानव संसाधन उपयोग का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। संविदा कर्मियों की बढ़ती हिस्सेदारी एवं स्थायी रोजगार में गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का कारण है।

भारत में रोजगार की स्थिति यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा 2023 एवं यूपीएससी मुख्य परीक्षा (जीएस पेपर 3- भारतीय अर्थव्यवस्था एवं रोजगार) के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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भारत में संविदात्मक रोजगार की स्थिति

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, भारत में लगभग 100 मिलियन अस्थायी श्रमिक एवं 50 मिलियन वेतनभोगी कर्मचारी हैं जिनके पास नौकरी का कोई लिखित अनुबंध नहीं है।
    • यह हमें अनुमानित 150 मिलियन – या देश में कुल श्रम बल का लगभग 30% अनुबंध श्रमिक का अनुमान देता है।
  • उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण में, कुल औद्योगिक रोजगार में अनुबंध रोजगार की हिस्सेदारी 2004 में 24% से बढ़कर 2017 में 38% हो गई।
  • इन गैर-भुगतान रजिस्टर अनुबंध श्रमिकों को सर्वत्र तकनीशियनों, ड्राइवरों, कार्यालयों एवं वाणिज्यिक परिसरों में हाउसकीपिंग स्टाफ, या कारखानों में अकुशल श्रम के रूप में देखा जाता है।
  • चूंकि आउटसोर्सिंग का चलन बन गया है, बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए देश में अनेक कार्य बल (मैनपावर) आपूर्तिकर्ता कंपनियां तेजी से बढ़ी हैं।
  • 2001 के बाद, सार्वजनिक क्षेत्र ने भी विभिन्न रिक्तियों को गैर-प्रमुख क्रियाकलापों के रूप में उद्धृत करते हुए आउटसोर्स करना प्रारंभ कर दिया।
  • सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण 2021 में, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग/पीएसयू) में कैजुअल/ठेका श्रमिकों की हिस्सेदारी 2011-12 में 17.1% थी, जो 2015-16 में बढ़कर 19% एवं 2020-21 में 37.2% हो गई।
    • 2021 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) में 4,81,395 संविदा कर्मचारी थे।
    • 2011 में यह आंकड़ा 2,68,815 था, जो कई स्थायी नौकरियों को संविदा में रूपांतरित करें का संकेत देता है।

 

अर्थव्यवस्था एवं कंपनियों को लाभ 

  • अर्थव्यवस्था के लिए: स्पष्ट रूप से, स्थायी रोजगार की तुलना में अनुबंध रोजगार के लिए कंपनी की लागत (सीटीसी) कम है।
    • इसे अर्थव्यवस्था के लिए लाभप्रद माना जाता है क्योंकि कम सीटीसी ने न केवल इंडिया इंक. के मुनाफे में सुधार किया है, बल्कि विदेशी निवेश को भी आकर्षित किया है।
  • कंपनियों के लिए: मजदूरी के अतिरिक्त, पांच विशिष्ट मानव संसाधन लागतें हैं: किराए पर लेने की लागत, प्रेरण लागत, कैरियर की प्रगति लागत, विच्छेद एवं अधिवर्षिता लागत। निजी क्षेत्र की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए किराए पर लेने की लागत अधिक है। सार्वजनिक क्षेत्र में कुछ सौ रिक्तियों के लिए लाखों अभ्यर्थी आवेदन करते हैं। इस पैमाने पर परीक्षा आयोजित करना राज्य तंत्र के लिए दुःस्वप्न बन जाता है।
    • कार्य बल आपूर्तिकर्ताओं के माध्यम से किराए पर लेना लागत एवं समय कुशल है। चूंकि ठेका श्रमिकों को न्यूनतम प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, यह सीटीसी को कम करता है।
    • प्रबंधन अनुबंध  श्रमिकों को वरीयता देता है क्योंकि वे एक स्थायी कर्मचारी द्वारा प्राप्त उदार सवैतनिक अवकाश के हकदार नहीं हैं।
    • आगे की बचत संविदा कर्मियों को पदोन्नति या सेवानिवृत्ति के उपरांत के लाभों के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं होने से आती है।
    • अंत में, अनुबंधित कर्मचारियों को हटाए जाने के लचीलेपन को श्रम उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाला माना जाता है।

 

संविदात्मक रोजगार का नकारात्मक प्रभाव

  • वेतन अवरोध: सीटीसी में एक बड़ी बचत वेतन मैं कमी से आती है। यह एक ज्ञात तथ्य है कि ठेकेदार किसी तरह मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान कर देते हैं।
    • इसका तात्पर्य यह है कि देश में 15 करोड़ संविदा कर्मियों में से अधिकांश का भुगतान कम है।
    • अनुबंध रोजगार की शोषणकारी प्रकृति का हानिकारक वितरणात्मक प्रभाव है जो स्थायी श्रमिकों के वेतन को भी कम कर देता है।
  • खपत एवं बचत को कम करता है: इस तरह से ठेकेदारों या व्यावसायिक कंपनियों द्वारा अर्जित लाभ के बावजूद, कम खपत एवं बचत के कारण अर्थव्यवस्था को हानि उठानी पड़ती है।
  • गुणवत्ता में गिरावट: काम पर रखने एवं प्रशिक्षण में कटौती से सेवा की गुणवत्ता में गिरावट आती है, जिसके परिणामस्वरूप दूसरे क्रम की हानि होती है एवं कभी-कभी दुर्घटनाएं भी होती हैं।
    • द लैंसेट में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, इंग्लैंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में आउटसोर्स व्यय में 1% की वार्षिक वृद्धि 0.38% की उपचार योग्य मृत्यु दर में वृद्धि के साथ जुड़ी हुई है।
  • मानव पूंजी में गिरावट: चूंकि कम वेतन वाले संविदा कर्मचारी अपने एवं अपने परिवार के सदस्यों के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल का खर्च नहीं उठा सकते हैं, इसलिए देश की समग्र मानव पूंजी में गिरावट आई है।
    • जैसा कि अनुबंध श्रमिकों के कौशल विकास में कोई निवेश नहीं करता है, जिसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था की श्रम उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी: मनोबल में कमी के कारण, अनुबंध श्रमिकों को उत्पाद एवं सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, इस प्रकार अर्थव्यवस्था की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है।

 

कंपनियों द्वारा उपयोग की जाने वाली नवीन रणनीति

  • प्लेटफ़ॉर्म एवं टेक कंपनियों ने श्रम अधिनियमों के विधिक प्रावधानों से बचने के लिए नई विधियां  आविष्कृत किए हैं।
  • उदाहरण के लिए, कर्मचारियों को व्यावसायिक साझेदार के रूप में नामित करना (ऑनलाइन कैब बुकिंग एवं खाद्य वितरण कंपनियों के मामले में) तथा प्रमुख क्रियाकलाप को तकनीकी व्यवसाय के रूप में विभाजित करना (अधिकांश सेवा एग्रीगेटर्स के मामले में)।

 

आगे की राह

  • जबकि स्थायी नौकरियों को अनुबंध रोजगार से प्रतिस्थापित करने के प्रतिकूल प्रभाव को मापने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है, यदि लाखों श्रमिकों को कम भुगतान किया जाता है एवं स्वास्थ्य के खतरों के प्रति संवेदनशील होते हैं तो निश्चित रूप से देश की अर्थव्यवस्था को हानि होती है।
  • सीटीसी में बचत, देश को अनुबंध श्रमिकों एवं उनके परिवार के सदस्यों के कल्याण की कीमत पर नहीं  करनी चाहिए।
  • यह तर्क कि रोजगार का स्थायित्व अक्षमता को जन्म देता है एवं इसका अपना गुण है तथा इसके मूल कारणों से निपटा जाना चाहिए।
  • सार्वजनिक क्षेत्र को अपने मूल्यांकन तंत्र में सुधार करना चाहिए ताकि स्थायी कर्मचारियों की दक्षता को पुरस्कृत किया जा सके।
  • निजी क्षेत्र को यह महसूस करना चाहिए कि देश के लिए आउटसोर्सिंग की लागत लंबे समय में कंपनी की लागत से कहीं अधिक हो सकती है।

 

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