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संपादकीय विश्लेषण: ए लैंग्वेज लैडर फॉर ए एजुकेशन रोडब्लॉक
प्रासंगिकता
- जीएस 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
मुख्य बिंदु
- आठ राज्यों के 14 अभियांत्रिकी महाविद्यालयों ने नए शैक्षणिक वर्ष से चुनिंदा शाखाओं में क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है।
- भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने नवीन शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुरूप 11 देशीय भाषाओं में बी.टेक कार्यक्रमों की अनुमति देने का निर्णय लिया है।
- प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए विद्या प्रवेश कार्यक्रम आरंभ किया गया है।
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मातृभाषा का उपयोग : क्यों आवश्यक है?
- यह बालकों के अधिगम परिणामों में सुधार करता है और उसकी संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास करता है।
- अनेक अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि जो बच्चे अपनी प्रारंभिक जीवन में, प्रारंभिक रचनात्मक वर्षों में अपनी मातृभाषा में सीखते हैं, वे विदेशी भाषा में पढ़ाए जाने वाले बच्चों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
- यूनेस्को के अनुसार, मातृभाषा में सीखना आत्म-सम्मान एवं आत्म-अस्मिता के निर्माण के साथ-साथ बच्चे के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।
- शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा का उपयोग निर्धन, ग्रामीण एवं जनजातीय पृष्ठभूमि के छात्रों में आत्मविश्वास सृजित करता है।
- यह लाखों छात्रों को अपनी मातृभाषा में व्यावसायिक पाठ्यक्रम करने के उनके स्वप्न को साकार करने में सहायता प्रधान करेगा।
- एआईसीटीई द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, लगभग 44% छात्रों ने अपनी मातृभाषा में अभियांत्रिकी की पढ़ाई के पक्ष में मतदान किया।
- महान भारतीय भौतिक विज्ञानी एवं नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी.वी.रमन ने इस बात का समर्थन किया कि विज्ञान को सहभागी बनाने के लिए इसे मातृभाषा में पढ़ाया जाना चाहिए।
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वर्तमान स्थिति
भारत
- यद्यपि हमारी शिक्षा प्रणाली अभियांत्रिकी, चिकित्सा, विधि एवं मानविकी जैसे विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम उपलब्ध कराती है, हमने अपने लोगों को इसके अधिगम से अपवर्जित कर दिया है।
- अंग्रेजी माध्यम के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के बुलबुलों ने हमारे छात्रों की विशाल संख्या की प्रगति को बाधित करते हुए एक अकादमिक अवरोध उत्पन्न कर दिया है।
एशिया
- दक्षिण कोरिया के लगभग 70% विश्वविद्यालय कोरियाई भाषा में पढ़ाते हैं।
- जापान तथा चीन में, अधिकांश विश्वविद्यालय प्रधान(स्थानीय) भाषा में पढ़ाते हैं।
यूरोप
- विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के रूप में फ्रांस की ‘मात्र-फ्रांसीसी‘ नीति प्रचलित है।
- जर्मनी में, जबकि स्कूलों में शिक्षा की भाषा मुख्य रूप से जर्मन है, यहां तक कि तृतीयक शिक्षा में भी, सभी परास्नातक कार्यक्रमों में से 80% से अधिक जर्मन में पढ़ाए जाते हैं।
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उत्तरी अमेरिका
- कनाडा में, यद्यपि अधिकांश प्रांतों में अंग्रेजी शिक्षा का प्रमुख माध्यम है, क्यूबेक में, एक बहुसंख्यक फ्रांसीसी-भाषी आबादी वाला प्रांत, फ्रांसीसी भाषा विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों दोनों में शिक्षा का माध्यम है।
भारत में स्थिति को कैसे सुधारें?
- जैसा कि एनईपी द्वारा परिकल्पित किया गया है, हमें प्राथमिक शिक्षा (कम से कम कक्षा 5 तक) छात्र की मातृभाषा में प्रदान करनी चाहिए, धीरे-धीरे इसमें वृद्धि की जानी चाहिए।
- व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए 14 अभियांत्रिकी महाविद्यालयों की पहल को पूरे देश में दोहराया जाना चाहिए।
- निजी विश्वविद्यालयों को एक साथ आना चाहिए एवं कुछ द्विभाषी पाठ्यक्रमों की पेशकश करनी चाहिए।
- देशी भाषाओं में, विशेष रूप से तकनीकी पाठ्यक्रमों में उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकों की कमी को तत्काल दूर करने की आवश्यकता है।
- दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले छात्रों के लिए उन्हें सुलभ बनाने के लिए डिजिटल शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र में सामग्री को भारतीय भाषा के पाठ्यक्रमों में निर्मित किया जाना चाहिए।
- उच्च शिक्षा का लोकतंत्रीकरण करने के लिए स्वयं (स्टडी वेब्स ऑफ एक्टिव-लर्निंग फॉर यंग एस्पायरिंग माइंड्स) जैसी तकनीकी – नेतृत्व वाली पहलों की आवश्यकता है।
आगे की राह
- ‘मातृभाषा बनाम अंग्रेजी‘ दृष्टिकोण को ‘मातृभाषा सहित/प्लस अंग्रेजी‘ दृष्टिकोण से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए।
- हीनता की भावना जो हममें से कुछ लोग अपनी भाषा में बोलने के मामले में प्रदर्शित करते हैं, को ऐसे व्यवहार जोखिमों के रूप में दूर किया जाना चाहिए जो आने वाली पीढ़ियों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों और सामाजिक और भाषाई विरासत से वंचित करते हैं।