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संपादकीय विश्लेषण- एक ग्रहीय समायोजन

एक ग्रहीय समायोजन- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण।

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एक ग्रहीय समायोजन- संदर्भ

  • हाल ही में, प्रधानमंत्री ने अपने पहले संबोधन में टिप्पणी की थी कि यह ग्रह “नाजुक” नहीं था, बल्कि लोग एवं प्रकृति के संरक्षण के प्रति लोगों की प्रतिबद्धता “नाजुक” थी।

 

एक ग्रहीय समायोजन- मानवता को प्रकृति को संरक्षण की आवश्यकता

  • एक गलत धारणा है कि जलवायु परिवर्तन से मानवता की बजाय प्रकृति को सुरक्षा की आवश्यकता है। इस धारणा को अनेक व्यक्तियों द्वारा बल प्रदान किया गया गया है। उदाहरण के लिए-
    • जेम्स लवलॉक की गैया परिकल्पना: इसने प्रकृति की परस्पर संबद्धता को स्वीकृत किया।
    • नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुटजेन: उन्होंने चेतावनी दी कि रासायनिक अपशिष्ट ग्रह के वातावरण को परिवर्तित कर रहे हैं  एवं हानिकारक जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रिया प्रभाव उत्पन्न कर रहे हैं।
  • अनेक व्यक्ति गलत ढंग से विश्वास करते हैं कि मानवता एंथ्रोपोसीन युग में है एवं एक भूवैज्ञानिक शक्ति की   भांति है जो ग्रह की नियति को आकार दे रही है।
    • यद्यपि, यह विकृत अर्थ देता है कि यह एक अस्पष्ट रूप से परिभाषित ‘ग्रह’ है जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है, गलनशील हिमनदों पर एक धारणा जिसे भविष्यसूचक वृत्तचित्रों द्वारा बल प्रदान किया गया है।

 

एक ग्रहीय समायोजन- जलवायु परिवर्तन में मानवता की भूमिका

  • कृषि का समावेश: खाद्य फसलों के रूप में गेहूं तथा चावल के प्रभुत्व एवं वन क्षेत्रों की सफाई के कारण वैश्विक जलवायु में उनके प्रभाव के माध्यम से प्रथम वृहद व्यापक स्तरीय परिवर्तन हुए जो केवल सदियों से ही स्पष्ट थे।
  • औद्योगिक युग: औद्योगिक युग के प्रारंभ के कारण वायुमंडलीय परिवर्तन एवं जीवाश्म ईंधन के उपयोग से पृथ्वी की जलवायु में व्यापक परिवर्तन हुआ।
  • प्रभाव: उपरोक्त दोनों युगों में जो सर्वाधिक पीड़ित हैं, वे निर्धन हैं अथवा जिनके पास क्षुब्ध प्रकृति से स्वयं की रक्षा करने हेतु न्यूनतम साधन उपलब्ध हैं।
  • अज्ञानता: विगत वर्ष, उत्तराखंड में चट्टान  तथा बर्फ के हिमस्खलन ने दो जल विद्युत परियोजनाओं को नष्ट कर दिया एवं मौतों का कारण बना।
    • इन परियोजनाओं को शुरू किया गया था, यद्यपि वैज्ञानिकों ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि हिमालय का भूविज्ञान इस क्षेत्र की बड़ी मेगा-इंजीनियरिंग परियोजनाओं के लिए अग्राह्य है।
    • विगत कुछ वर्षों में अनेक बाढ़, भूस्खलन  तथा भूकंप ने उपरोक्त को बार-बार रेखांकित किया है।

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एक ग्रहीय समायोजन-  आगे की राह 

  • मानवता को सुरक्षा की आवश्यकता है: जब पृथ्वी स्वयं को पुनर्व्यवस्थित करती है, यह इस तरह से करती है कि यह असंतुलन उत्पन्न करने हेतु न्यूनतम जिम्मेदार लोगों के लिए विनाशकारी एवं घातक हो सकता है।
    • इस प्रकार, यदि “नाजुक” का अर्थ देखभाल की आवश्यकता वाली भंगुरता है, तो यह व्यक्तियों एवं पशुओं को एक अस्पष्ट रूप से परिभाषित ‘ग्रह’ की तुलना में सुरक्षा की आवश्यकता है।
  • जलवायु न्याय पर भारत की स्थिति में परिवर्तन: वर्तमान स्थिति यह है कि भारत को विश्वसनीय ऊर्जा तक सीमित पहुंच वाले अधिकांश भारतीयों की जीवन स्थितियों को सुधारने के लिए प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
    • यह स्थिति आर्थिक विकास की खोज में लाखों संवेदनशील व्यक्तियों के जीवन को जलवायु जोखिम में डाल देगी।
  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों हेतु त्वरणशील संक्रमण: भारत को ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण को त्वरित करना एवं प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिए जो प्राकृतिक संतुलन को न्यूनतम उद्विग्न कर रहे हैं।
    • वर्तमान में, निवल शून्य (नेट-जीरो) के लिए भारत की प्रतिबद्धता भविष्य में दशकों से 2070 पर निर्धारित है।
    • इसके आकार एवं जनसंख्या को देखते हुए, भारत जलवायु परिवर्तन के लिए असंगत रूप से भेद्य होगा।

 

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