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राज्यों को कर हस्तांतरण- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता
- जीएस पेपर 2: संघवाद- स्थानीय स्तर तक शक्तियों एवं वित्त का हस्तांतरण तथा अंतर्निहित चुनौतियां।
राज्यों को कर हस्तांतरण चर्चा में क्यों है?
- हाल ही में, केंद्र सरकार ने एक ही बार में राज्यों को कर हस्तांतरण देय राशि का एक बड़ा हिस्सा हस्तांतरित करने का निर्णय लिया।
- इस वर्ष विवेकाधीन परियोजनाओं के लिए राज्यों को दिए गए 1 लाख करोड़ रुपये के ब्याज मुक्त ऋण के मानदंडों की भी समीक्षा की जा सकती है ताकि इसे राज्य सरकारों के साथ अधिक से अधिक कर्षण प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हो सके।
राज्यों को कर हस्तांतरण
- कारण: कर प्राप्तियों में प्रत्याशित उछाल से अधिक की प्राप्ति ने वित्त मंत्रालय को 2022-23 की प्रथम तिमाही में करों के विभाज्य पूल में राज्यों के मासिक हिस्से को लगभग 48,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर अगस्त के लिए 58,332.86 करोड़ रुपये करने हेतु प्रेरित किया है।
- राजकोष के साथ अधिशेष नकद शेष ने राज्यों को दो माह की बकाया राशि को एक बार में स्थानांतरित करने हेतु स्थान निर्मित किया है, जो लगभग 1.17 लाख करोड़ रुपये की उल्लेखनीय एकमुश्त राशि में परिवर्तित हो गई है।
- महत्व: यह एक व्यावहारिक कदम है जो न केवल वास्तविक स्तर पर नए पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देगा, बल्कि केंद्र एवं राज्यों के मध्य नए दौर की बेचैनी के बीच अस्थायी रूप से शांति भी प्रदान करेगा।
यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है?
- जीएसटी क्षतिपूर्ति चरण का अंत: राज्यों के पास अब 30 जून, 2022 तक पांच वर्षों में जीएसटी क्षतिपूर्ति से सुनिश्चित राजस्व का उपलब्ध विकल्प नहीं है।
- यहां तक कि इस वर्ष अर्जित जीएसटी बकाया के लिए, केंद्र ने अप्रैल एवं मई के लिए राज्यों को लगभग 87,000 करोड़ रुपये जारी किए।
- यद्यपि उस समय जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर खाते में मात्र 25,000 करोड़ रुपये जमा हुए थे, जो कि अपने ही खजाने में डूबा हुआ था।
- जून के लिए बकाया जीएसटी के अन्य 35,000 करोड़ रुपये के साथ, जीएसटी से राज्यों के लिए कुल प्रतिपूर्ति लगभग 1.22 लाख करोड़ रुपये होगी, जो 2021-22 में 2.5 लाख करोड़ रुपये के आधे से भी कम है।
- राज्यों के उधार मानदंडों में परिवर्तन: राज्यों के समक्ष एक और अनिश्चितता है जिसके कारण राज्य विकास ऋणों की हालिया नीलामियों में उनके कोषागारों से अत्यधिक अस्थायी व्यवहार – उनके निवल उधार मानदंडों में परिवर्तन हुआ है।
- जबकि केंद्र ने वर्ष के लिए राज्यों की उधार सीमा उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3.5% पर आंकी थी, इस सीमा को 2020-21 से राज्यों द्वारा उठाए गए बजट से परे (ऑफ-बजट) ऋण के अनुरूप युग्मित किया जाना है।
- हालांकि, वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि मात्र 2021-22 के लिए उनके ऑफ-बजट ऋण को उच्चतम सीमा के विरुद्ध और वह भी, इस वर्ष और 2025-26 के बीच क्रमबद्ध रूप से समायोजित किया जाएगा।
निष्कर्ष
- इन कदमों से राज्यों को सहायता प्राप्त होनी चाहिए, जिन्होंने हाल ही में नीति आयोग की शासी परिषद की बैठक में घटते राजस्व के बारे में चिंता व्यक्त की, एक पूंजीगत व्यय के साथ अर्थव्यवस्था को सुधारने के प्रयास का समर्थन किया।
- केंद्र एवं राज्यों के मध्य संघर्ष बिंदु परिवर्तनशील तीव्रता के साथ बने रहेंगे, किंतु बढ़ता आर्थिक ज्वार दोनों के लिए बाधाओं को कम करेगा।