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भारत में बैंकिंग घोटाला 2022: प्रासंगिकता
- जीएस 3: भारतीय अर्थव्यवस्था एवं आयोजना,संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।
भारत में बैंकिंग घोटाला: प्रसंग
- हाल ही में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के उत्सव के मध्य भारत में सर्वाधिक वृहद बैंकिंग घोटाला डीएचएफएल घोटाला सामने आया है।
बैंकिंग घोटाला: प्रमुख बिंदु
- दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा संचालित बैंकों के एक संघ को वित्तीय गलत बयानी के माध्यम से 35,000 करोड़ रुपए का धोखा दिया है।
डीएचएफएल बैंकिंग घोटाला: क्या हुआ है?
- बैंकों के एक संघ ने डीएचएफएल के विरुद्ध ऋण चुकौती चूक के गंभीर आरोपों का संज्ञान लेने के लिए बैठक की थी।
- तत्पश्चात, सात सबसे बड़े बैंकों की एक कोर कमेटी – भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), बैंक ऑफ बड़ौदा (बीओबी), बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, सिंडिकेट बैंक एवं यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) – का गठन किया गया था।
- केपीएमजी, एक वैश्विक अंकेक्षण (ऑडिटिंग) कंपनी को 1 अप्रैल, 2015-31 मार्च, 2019 की अवधि के लिए डीएचएफएल की एक विशिष्ट सर्वेक्षण समीक्षा का नेतृत्व करने के लिए मूल्यांकनकर्ता के रूप में सम्मिलित किया गया था।
- केंद्रीय जांच ब्यूरो (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन/सीबीआई) ने अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट में दिखाया है कि भारतीय स्टेट बैंक 9,898 करोड़ रुपए के गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) आधार के साथ सर्वाधिक बुरी तरह प्रभावित हुआ था, जो डीएचएफएल ने इससे प्राप्त की थी।
घोटाले का महत्व
- किसी भी देश की बैंकिंग प्रणाली उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। बैंकों को अत्यधिक हानि देश के प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है क्योंकि बैंकों में जमा की गई राशि देश के नागरिकों की होती है।
घोटाले के कारण
- आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि बैंकिंग उद्योग में लगभग 34% घोटाले बैंक के भीतर पदस्थ व्यक्ति की सहायता के कारण एवं ऋण प्रदान करने की खराब प्रथाओं तथा कनिष्ठ एवं मध्य स्तर के प्रबंधन की भागीदारी के कारण होते हैं।
- आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि भारत में बैंकिंग के विकास के मार्ग में मूलभूत समस्याओं में से एक बढ़ते हुए बैंक घोटालों तथा इसके परिणामस्वरूप संरचना पर लागत के कारण है।
- बैंकिंग उद्योग में धोखाधड़ी को चार वर्गीकरणों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है: ‘प्रबंधन’, ‘बाहरी’, ‘अंदरूनी’ एवं ‘अंदरूनी तथा बाहरी’ (संयुक्त रूप से)।
- सभी घोटाले, चाहे आंतरिक हों या बाहर, परिचालन विफलताओं के परिणाम हैं।
भारत में एनपीए
- वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि सितंबर 2021 में बैंकों के सकल एनपीए के 9% से बढ़कर सितंबर 2022 तक कुल परिसंपत्तियों का 8.1% (बेसलाइन परिदृश्य के तहत) एवं गंभीर तनाव परिदृश्य के तहत 9.5% होने का अनुमान है।
- डेलॉइट द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि भुगतान के पश्चात सीमित परिसंपत्ति निगरानी (38%) तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के पीछे सर्वाधिक प्रमुख कारण था एवं भुगतान से पूर्व अपर्याप्त उचित परिश्रम (21%) इन एनपीए के प्रमुख कारकों में से एक था।
- एक उच्च एनपीए बैंकों की परिचालन लागत में वृद्धि करने के अतिरिक्त उनके शुद्ध ब्याज मार्जिन को भी कम करता है; ये बैंक अपने छोटे ग्राहकों से दैनिक आधार पर सुविधा शुल्क बढ़ाकर इस लागत को पूरा करते हैं।
भारत में बैंकिंग घोटाला: आवश्यक कदम
- बैंकों को धन उपलब्ध कराते समय सम्यक् तत्परता एवं सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि खराब ऋण उच्च एनपीए की ओर ले जाते हैं।
- चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का विनियमन एवं नियंत्रण बैंकों की गैर-निष्पादित आस्तियों को कम करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।
- विदेशों में भारी कर्ज लेने वाली भारतीय कंपनियों को कर्ज देते समय बैंकों को सतर्क रहना चाहिए।
- बैंकों की आंतरिक एवं बाहरी लेखा परीक्षा प्रणाली को सख्त करने की भी तत्काल आवश्यकता है।
- बैंक के ऋण विभाग के कर्मचारियों के तेजी से क्रमावर्तन (रोटेशन) पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ऋण स्वीकृत करने से पूर्व बड़ी परियोजनाओं के कठोर मूल्यांकन के लिए एक आंतरिक रेटिंग एजेंसी स्थापित करनी चाहिए।
- इसके अतिरिक्त, व्यावसायिक परियोजनाओं के बारे में आरंभिक चेतावनी संकेतों की निगरानी के लिए एक प्रभावी प्रबंधन सूचना प्रणाली (मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम/एमआईएस) को लागू करने की आवश्यकता है।
- उधारकर्ता के सिबिल स्कोर का मूल्यांकन संबंधित बैंक एवं आरबीआई अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए। इसमें ऋण एवं वसूली विभागों के वर्गीकरण तथा जिम्मेदारियों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
- वित्तीय लेनदेन की निगरानी के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/एआई) के उपयोग से वित्तीय धोखाधड़ी को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- बड़े निगमों के डूबत ऋणों को लगातार बट्टे खाते में डालने के स्थान पर, भारत को अपनी ऋण वसूली प्रक्रियाओं में सुधार करना होगा तथा भुगतान – पश्चात के चरण में एक आरंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करनी होगी।
- बैंकों को प्रत्येक तिमाही में धोखाधड़ी के जोखिम का आकलन करना चाहिए।