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भारतीय संविधान: प्रासंगिकता
- जीएस 2: भारतीय संविधान-ऐतिहासिक आधार, उद्विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान एवं आधारिक संरचना।
भारत का संविधान: संदर्भ
- हाल ही में, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत को एक नए संविधान की आवश्यकता है, क्योंकि केंद्र की सरकारें वर्षों से राज्यों की शक्तियों का दमन करती रही हैं।
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भारतीय संविधान: केंद्र द्वारा राज्य की शक्तियों का अनाधिकार ग्रहण
- सर्वोच्च न्यायालय ने एस. आर, बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) एवं केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ (2018) जैसे निर्णयों में ने राज्य सरकारों की शक्तियों को दबाने की कोशिश के लिए केंद्र में सरकारों को फटकार लगाई है।
एक नए संविधान का निर्माण
- प्रसिद्ध न्यायविद फली एस. नरीमन ने कहा, “हम कोशिश करने पर भी वर्तमान समय एवं युग में एक नए संविधान को एक साथ नहीं जोड़ पाएंगे: क्योंकि अभिनव विचार – चाहे कितने ही शानदार हों, परामर्श पत्रों एवं आयोगों की रिपोर्टों में खूबसूरती से व्यक्त किए गए – किंतु हमें एक बेहतर संविधान नहीं प्रदान कर सकते।
नया संविधान असंभव क्यों है?
- बी.आर. अम्बेडकर का समायोजन: अम्बेडकर के समायोजन ने दिखाया कि उस समय के सबसे बड़े दल, कांग्रेस में समायोजन की भावना थी, जिसका आज अभाव प्रतीत होता है।
- उत्तरदायी विधि निर्माता: संविधान सभा की चर्चाओं के दौरान, यदि एक दिन में पांच मिनट व्यर्थ हो जाते हैं, तो सदन अगले दिन पांच मिनट पहले एकत्रित होता है एवं लंबित कार्य को पूर्ण करने हेतु रात तक बैठा है। इसने समय के महत्व एवं राष्ट्र के लिए किए गए कार्यों के महत्व को दिखाया। अब, हम केवल संसद में हंगामा एवं शोर देखते हैं, विधेयकों पर बहुत कम बहस या चर्चा हो रही है।
- स्वस्थ वाद-विवाद: संविधान सभा की बहसों के दौरान, असंतुष्टों एवं कट्टर आलोचकों को सहन किया गया तथा उनके सुझावों को, यदि उपयुक्त पाया गया, समायोजित किया गया। यदि उनके सुझाव उपयुक्त नहीं पाए गए, तो एक स्वस्थ बहस होती थी। अब, विपक्षी सदस्यों को अपने विचार पूर्ण रूप से व्यक्त करने की अनुमति दिए बिना विधेयकों को पारित किया जाता है।
- श्रेष्ठ भावना: संविधान सभा के सदस्य औपनिवेशिक शासन के चंगुल से उदित हुए थे। वे उन कष्टों को जानते थे जो उन्होंने एवं राष्ट्र ने विदेशी शासन के तहत झेले थे तथा एक संविधान निर्मित करने के प्रति दृढ़ थे। आज के नेताओं में उस भावना की कमी है। संविधान सभा के सदस्यों ने पहले राष्ट्र को चुना; आज के नेता सबसे पहले अपनी पार्टी का चयन करते हैं।
- लोकतांत्रिक सिद्धांत: संविधान में कहा गया है कि भारत एक “संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” है। यह समाज के हर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करता है। दूसरी ओर आज के नेता विचारधारा विशेष एवं जाति विशेष को प्राथमिकता देते हैं। इसे देखते हुए, एक नए संविधान का प्रारूप निर्मित करना एक अराजक अभ्यास होगा तथा कुछ वर्गों, विशेष रूप से कमजोर लोगों की आवाज को बंद कर सकता है।
- विश्वसनीय अनिर्वाचित निकाय: एक अनिर्वाचित निकाय पर संविधान निर्माताओं ने कानून घोषित करने हेतु विश्वास प्रकट किया था। एक अनिर्वाचित निकाय का चयन करने के पीछे का उद्देश्य यह था कि न्यायपालिका स्वतंत्र, मुक्त, युक्तियुक्त एवं निष्पक्ष तरीके से विवादों का निर्णय कर सके। आज, नेता स्वयं को न्यायाधीश के साथ-साथ शासक बनना भी चुन सकते हैं।
सहकारी संघवाद: आगे की राह
- यद्यपि यह सत्य है कि केंद्र विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों को अशक्त बना देने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है, किंतु यह एक नया संविधान निर्मित करने को आवश्यक नहीं बनाता है।
- इसका समाधान आम चुनावों में क्षेत्रीय दलों को चयनित करने हेतु लोगों से जनादेश प्राप्त करना है ताकि संघ में राज्यों का प्रभुत्व हो सके।
- इसके अतिरिक्त, जब भी केंद्र एवं राज्य के मध्य संघर्षों को सुलझाने की आवश्यकता हो, तो अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय से संपर्क किया जाना चाहिए।