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संपादकीय विश्लेषण: फॉलिंग शॉर्ट

प्रासंगिकता

  • जीएस 3: साइबर सुरक्षा की मूलभूत बातें

 

प्रसंग

 

मुख्य बिंदु

  • जेपीसी ने विवादास्पद छूट खंड को बरकरार रखा है जो सरकार को अपनी किसी भी एजेंसी को मामूली परिवर्तनों के साथ कानून के दायरे से बाहर रखने की अनुमति प्रदान करता है है।
  • निजता पर न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ के वाद के पश्चात  विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया था, जहां  सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ‘निजता का अधिकार’ एक मौलिक अधिकार है।

 

प्रमुख चिंताएं

  • प्रारूप विधेयक ऐतिहासिक निर्णय के आधार पर विधिक ढांचे के निर्माण के लिए न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति द्वारा निर्धारित मानकों की अपेक्षा के अनुरूप नहीं है।
  • न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण समिति के प्रारूप विधेयक से मुख्य अंतर डेटा संरक्षण प्राधिकरण (डीपीए) के अध्यक्ष एवं सदस्यों के चयन में है, जो डेटा प्रिंसिपलों के हितों की रक्षा करेगा एवं केंद्र सरकार को अपनी एजेंसियों को इस नियम के अनुप्रयोग से छूट देने के लिए अपमार्ग प्रदान किया जाएगा।
  • जबकि 2018 के प्रारूप विधेयक को न्यायिक निरीक्षण के लिए अनुमति प्रदान की गई है, 2019 का विधेयक पूर्ण रूप से डीपीए के लिए चयन प्रक्रिया में कार्यपालिका सरकार के सदस्यों पर निर्भर करता है।
  • 2019 का विधेयक लोक व्यवस्थाको अधिनियम से सरकार की एक एजेंसी को छूट प्रदान करने के एक कारण के रूप में जोड़ता है, इसके अतिरिक्त मात्र उन कारणों को लिखित रूप में अभिलिखित करने हेतु प्रावधान करता है।
    • 2018 का विधेयक जिसने राज्य संस्थानों को डेटा प्रिंसिपलों से संसूचित सहमति प्राप्त करने अथवा मात्र “राज्य की सुरक्षा” से संबंधित मामलों के मामले में डेटा को संसाधित करने से छूट की अनुमति प्रदान की एवं साथ “संसदीय निरीक्षण और व्यक्तिगत डेटा तक गैर-सहमति के उपयोग की न्यायिक स्वीकृति” के लिए एक कानून का आह्वान किया।

 

आगे की राह

  • विधेयक में उन छूटों को सम्मिलित किया जाना चाहिए जो लिखित रूप में प्रदान की गई हैं,  उन्हें कम से कम संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाना चाहिए
  • लोक व्यवस्थाइस आधार को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि यह दुरुपयोग की बहुत अधिक गुंजाइश प्रदान करता है।
  • अब यह संसद का कार्य है कि वह प्रावधानों को और सख्त करे एवं उन्हें 2018 के विधेयक के अनुरूप लाए।
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