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संपादकीय विश्लेषण- विकास की पीड़ा

विकास की पीड़ा- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 3: भारतीय अर्थव्यवस्था– आयोजना, संसाधनों का अभिनियोजन, वृद्धि, विकास एवं रोजगार से संबंधित मुद्दे।

दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक चुनौतियां- विश्व बैंक की रिपोर्ट

  • विश्व बैंक ने जनवरी में जारी 7.6% के अनुमान से बुधवार को दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए 2022 के विकास अनुमानों को घटा कर 6.6% कर दिया।

 

एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

  • कोविड-19 महामारी: विश्व बैंक की रिपोर्ट ने  बलपूर्वक कहा कि महामारी के बाद की वृद्धि असमान तथा नाजुक थी, जिससे श्रीलंका एवं पाकिस्तान जैसी दुर्बल एशियाई अर्थव्यवस्थाएं दुष्प्रभावित हुईं।
  • रूस यूक्रेन युद्ध: विश्व अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर कोविड-19 महामारी का भयप्रद प्रभाव जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष से और गहन हो गया था।
  • खाद्य वस्तुओं एवं ईंधन की उच्च कीमतें: विश्व बैंक की रिपोर्ट में पाया गया कि तेल तथा खाद्य वस्तुओं की उच्च कीमतों का तरंगित प्रभाव जो रूस यूक्रेन युद्ध से पूर्व भी अस्तित्व में था, युद्ध के कारण और भी तीव्र हो गया था।

 

भारत पर विश्व बैंक की रिपोर्ट

  • विश्व बैंक ने कहा कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2023-24 में और गिरकर 7.1% होने से पूर्व अब 2022-23 में 8% की वृद्धि दर से बढ़ सकता है, न कि 8.7% की वृद्धि दर से जैसा कि उसने पूर्व में अनुमान लगाया था।
  • बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा है कि उनका समग्र आकलन है कि सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि वास्तव में 1.3 प्रतिशत अंक कम या 7.4% हो सकती है।
  • यद्यपि, हाल के आंकड़ों जैसे सुदृढ़ डिजिटल सेवाओं के निर्यात में कुछ सकारात्मक आश्चर्य के कारण विश्व बैंक ने अपने शीर्ष प्रक्षेपण में उस परिमाण का समायोजन करने से परहेज किया।

 

भारतीय आर्थिक विकास के बारे में अन्य अनुमान

  • एशियाई विकास बैंक को उम्मीद है कि वर्ष के लिए भारत का सकल घरेलू उत्पाद 7.5% वृद्धि करेगा एवं खुदरा मुद्रास्फीति लगभग 5.8% होगी।
  • आरबीआई ने फरवरी के 7.8% से 7.2% की वृद्धि की संभावनाओं को पुनः समायोजित (रीसेट) किया, जबकि वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति अनुमान को 4.5% से बढ़ाकर 5.7% कर दिया।

 

भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां

  • भारत की घरेलू खपत में कोविड-19 के पश्चात की उत्साहहीन रिकवरी उच्च मुद्रास्फीति और अधूरे श्रम बाजार के पुनरुद्धार से और अधिक प्रभावित होगी।
  • पिछली तिमाहियों की तुलना में जनवरी से मार्च 2022 तिमाही में भारत की वृद्धि पहले से ही सापेक्ष मंदी का अनुभव कर रही थी।
  • भारत की रिकवरी सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से भिन्न है एवं कमजोर मांग तथा बढ़ती लागत लागत के कारण विनिर्माण क्षेत्र संकट में है। यह नवीनतम औद्योगिक उत्पादन डेटा द्वारा जनित है।
  • अर्थशास्त्रियों को अपेक्षा है कि मुद्रास्फीति वर्ष की प्रथम छमाही में 7% से भी ऊपर तथा संपूर्ण वर्ष में 6% की सांत्वना प्रदायक सीमा से भी अधिक होगी।

आगे की राह

  • मुद्रास्फीति का प्रतिरोध: मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति को और अधिक आक्रामक रूप से हल करने की आवश्यकता है, ऐसा न हो कि यह पुनर्प्राप्ति (रिकवरी) को पटरी से उतार दे, जिसके बारे में बैंक ने चेतावनी दी है कि बैंक तथा व्यावसायिक जगत के तुलन पत्र (बैलेंस शीट) में सुधार पर दबाव को नवीनीकृत कर सकता है।
  • विकास इंजनों पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है- मुक्त व्यापार समझौतों का अनुसरण एक नए रुख का संकेत देता है।
  • आरसीईपी पर पुनर्विचार: आरसीईपी से दूर रहने पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जैसा कि प्रमुख सहयोगी जापान ने सलाह दी है- वियतनाम जैसे प्रतिद्वंदी, वस्त्र जैसे रोजगार-प्रधान क्षेत्रों में भारत के भविष्य के निर्यात में सेंध लगाते हैं।
  • कृषि क्षेत्र में सुधार: कृषि क्षेत्र, जो अब तक महामारी के सर्वाधिक खराब चरणों के दौरान लोचशील रहा है और अब उच्च वैश्विक खाद्य कीमतों के कारण लाभ प्राप्त कर सकता है, इस क्षेत्र को भी सावधानी से  प्रबंधित करने की आवश्यकता है।
    • जबकि सामान्य मानसून पूर्वानुमान खरीफ फसल के लिए अच्छा भविष्य कथन करता है एवं संभावना है, ग्रामीण मांग, आदान (इनपुट) की लागत- चाहे वह उर्वरक हो अथवा कुक्कुट दाना (चिकन फ़ीड)- किसानों के लिए भी तेजी से बढ़ रही है।

 

 

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