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संपादकीय विश्लेषण- इंडियाज क्लाइमेट इंपरेटिव

भारत की जलवायु अनिवार्यता- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 3: पर्यावरण- संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण।

समाचारों में भारत की जलवायु अनिवार्यता

  • कोविड-19 की अनुपस्थिति में, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित आपदाएं हाल के वर्षों में भारत की सर्वाधिक वृहद रेड अलर्ट होतीं।

 

भारत की जलवायु संवेदनशीलता

  • तापमान में वृद्धि: 1950 के दशक से हिंद महासागर के तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि हुई है, जिससे मौसम की चरम घटनाओं में वृद्धि हो रही हैं। प्रलय के कुछ उदाहरण हैं-
    • इस वर्ष राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं नई दिल्ली में भीषण गर्मी ने झुलसा दिया;
    • 2021 में दक्षिण भारत में मूसलाधार वर्षा; तथा
    • सुपर साइक्लोन अम्फन जिसने 2020 में पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा पर प्रहार कर दिया।
  • जलवायु प्रवासन: भारत जलवायु प्रवास में चौथा सर्वाधिक प्रभावित देश है। भारत में उष्ण लहरों (हीट वेव) के कारण 1970 के दशक से अनुमानित 17,000 लोगों की मृत्यु हुई है।
    • प्रभाव: बढ़ती गर्मी से श्रम हानि, एक अनुमान के अनुसार, प्रति वर्ष 1.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, यदि वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाती है, तो भारत सर्वाधिक प्रभावित होगा।
  • हीट वेव्स: वनोन्मूलन एवं भूमि क्षरण से हीटवेव में वृद्धि हो जाती है, जिससे आग लगने की घटनाओं में वृद्धि हो जाती है।
    • जल गहन होने के कारण कृषि, लू की आशंका वाले क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि: दक्षिण में निचले इलाकों में विशाल समुद्री अंतःप्रवेश एवं समुद्र तट के कटाव से बाढ़ तथा तूफान और बदतर हो गए हैं।

भारत की जलवायु अनिवार्यता- आगे की राह

  • मौसम की चरम सीमाओं के प्रति लोच शीलता: भारत को चरम मौसम के प्रति प्रतिरोधक क्षमता निर्मित कर जलवायु प्रभावों के अनुकूल होने की आवश्यकता है।
  • बाढ़ प्रतिरोधी विभिन्न उपाय:
    • केरल में स्तंभों पर बने कुछ  मकान बाढ़ प्रतिरोधी हैं।
    • पवन की शक्ति को कम करने के लिए इष्टतम वायुगतिकीय अभिविन्यास पर विचार करते हुए समुदाय गोल आकार के मकान निर्मित कर सकते हैं।
    • अनेक ढलान वाली छतें तेज हवाओं को अच्छी तरह से सहन कर सकती हैं एवं केंद्रीय शाफ्ट बाहर से हवा खींच कर छत पर हवा के दबाव को कम करते हैं।
    • जल निकासी वाले स्थानों में निर्माण से बचने के लिए दक्षिणी राज्यों को सुदृढ़ दिशानिर्देशों की आवश्यकता है।
    • संवेदनशील क्षेत्रों का प्रबंधन करने के लिए बाढ़-जोखिम वाले क्षेत्रों की योजना निर्मित करना महत्वपूर्ण है।
    • वाणिज्यिक परियोजनाओं के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन अनिवार्य होना चाहिए।
  • शमन उपाय: भारत को जलवायु परिवर्तन को और अधिक घातक बनने से रोकने के लिए पर्यावरणीय विनाश का शमन करने हेतु कार्य करने की आवश्यकता है।
    • भारत सहित, प्रमुख उत्सर्जक राष्ट्रों को जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना चाहिए।
    • किंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण प्रत्येक स्थान पर जलवायु शमन अत्यंत मंदिर गति से होता है।
    • भारत ने निवल शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य के रूप में 2070 का चयन करें में धीमी प्रगति की है।
  • हीट वेव्स का प्रतिरोध करने हेतु सतत कृषि को बढ़ावा देना: एक समाधान, कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना है जो जल गहन नहीं हैं एवं वनीकरण का समर्थन करना जो वैश्विक तापन पर लाभकारी प्रभाव डालते हैं।
    • किसानों को वृक्ष लगाने एवं उपकरण खरीदने में सहायता करने हेतु वित्तीय हस्तांतरण को लक्षित किया जा सकता है – उदाहरण के लिए, ड्रिप सिंचाई के लिए जो जल के अत्यधिक उपयोग को कम करता है।
    • बीमा योजनाएं औद्योगिक, निर्माण एवं कृषि श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली अत्यधिक गर्मी के कुछ जोखिमों को बीमाकर्ताओं को हस्तांतरित कर सकती हैं।
    • जलवायु-प्रतिस्कंदी कृषि विविधीकरण की मांग करती है – उदाहरण के लिए, एक ही खेत में अनेक फसलों की खेती।
    • अधिक स्थानीयकृत खाद्य उत्पादन की आवश्यकता होगी। मौसम आधारित फसल बीमा से सहायता मिलेगी।
  • जलवायु वित्त में वृद्धि करना: आपदा प्रबंधन में भारत के अंश को सकल घरेलू उत्पाद (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट/जीडीपी) के 2.5% तक बढ़ाया जाना चाहिए।
    • जलवायु वित्त विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं एशियाई विकास बैंक से बड़े पैमाने पर वैश्विक वित्त पोषण  हेतु सर्वाधिक उपयुक्त है।
    • समुदाय आधारित अनुकूलन एवं अति संवेदनशील समुदायों के लिए कृषि प्रत्यास्कंदन हेतु नेपाल एवं भूटान के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम का वित्त पोषण एक दिलचस्प मॉडल प्रदान करता है।

 

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