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भारत में प्रवासी कर्मकार यूपीएससी: प्रासंगिकता
- जीएस 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा आबादी के कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएं तथा इन योजनाओं का प्रदर्शन।
भारत में प्रवासी कामगार: संदर्भ
- दो वर्ष पूर्व, भारत देशव्यापी लॉकडाउन के कारण प्रवासी श्रमिकों की भीषण दुर्दशा का साक्षी बना।
- सरकार वन नेशन वन राशन कार्ड (ओएनओआरसी) परियोजना जैसी अनेक पहलों को लेकर आई, किफायती रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स (एआरएचसी) योजना की घोषणा की, ई-श्रम पोर्टल की स्थापना की तथा प्रवासन नीति का प्रारूप तैयार करना प्रारंभ किया।
- दो वर्ष पश्चात, हालांकि, प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं अभी भी एक वास्तविकता हैं।
संपादकीय का स्वर
- यह लेख उन मुद्दों के बारे में बात करता है इनका भारत के प्रवासी कामगारों को दो वर्ष के राष्ट्रीय लॉकडाउन के बाद भी सामना करना पड़ रहा है। लेख में प्रवासी कामगारों की निर्वाह स्थिति में सुधार के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं।
प्रवासी श्रमिकों के मुद्दे
- निम्न आय: बार-बार किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया है कि शहरों में लौटने के बाद भी प्रवासी परिवारों की आय महामारी पूर्व के स्तर से कम बनी हुई है।
- काम के कम अवसर: मजदूरों की अकस्मात आमद के कारण संपूर्ण देश में प्रवासियों को शहरों में आने के बाद काम नहीं मिल पा रहा है।
- निर्धनता में कमी: 1991 के पश्चात से लगभग 300 मिलियन भारतीयों का निर्धनता उन्मूलन, कृषि कार्य से पलायन द्वारा प्रेरित,अधूरा है।
- वियोजित की गई नीतियां: एक समेकित प्रवास नीति मार्गदर्शन दुर्ग्राह्य बना हुआ है। इसके स्थान पर, वियोजित नीतिगत पहल एवं तकनीकी सुधार विशिष्ट कार्यसूची का अनुगमन करते हैं जबकि स्वदेशीवाद अधिवास कोटा तथा आरक्षण के माध्यम से इस पर पुनः पर देता है।
- प्रवासियों को नीतिगत विमर्श में वापस लाने के लिए स्पष्ट आर्थिक तथा मानवीय तर्क के बावजूद, वर्तमान नीति परिदृश्य सर्वाधिक खंडित एवं सर्वाधिक वितरित स्थिति में है।
प्रवासी कामगार: सुझाव
- यह स्वीकार करें कि प्रवास एक राजनीतिक घटना है: राज्य प्रवास की राजनीतिक अर्थव्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। ‘गंतव्य राज्य’ बाहरी बनाम अंदरूनी बहस के मुद्दे से संबंधित है एवं इस प्रकार विनाशकारी नीतियों जैसे कि स्थानीय नीतियों एवं अधिवास प्रतिबंधों की ओर अग्रसर होता है। दूसरी ओर, ‘स्रोत राज्य’ अपने “अपने लोगों” की सेवा उपलब्ध कराने के लिए अत्यधिक प्रेरित होते हैं क्योंकि वे अपने स्रोत गांवों में मतदान करते हैं। राष्ट्रीय समस्या के लिए इस खंडित नीति प्रतिक्रिया ने स्थिति को और बदतर कर दिया।
- मूल समस्या का निदान करें: असंगठित कर्मकार एवं शहरी निर्धन- ये दो श्रेणियां हैं जो निरंतर विकास के विमर्श को उलझाती हैं। प्रमुख शहरी गंतव्यों में नीतिगत हस्तक्षेप शहरी निर्धनों को कम आय वाले प्रवासियों के साथ भ्रमित करने के लिए जारी है। अतः, प्रवासी चिंताओं को कम करने के लिए स्लम विकास प्राथमिक माध्यम के रूप में जारी है, जबकि वास्तव में, अधिकांश प्रवासी ऐसे कार्यस्थलों पर निवास करते हैं जो पूर्ण रूप से नीति की दृष्टि से बाहर हैं।
- एक राष्ट्रीय डेटाबेस निर्मित करें: भारत में वास्तविक पैमाने और आंतरिक प्रवास की आवृत्ति को प्रग्रहित करने के लिए प्रवासियों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस निर्मित करने की आवश्यकता है। नोवेल कोरोना वायरस महामारी ने उन बच्चों को शिक्षित करने तथा उनका टीकाकरण करने जैसी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया है जो अपने प्रवासी माता-पिता के साथ जाते हैं, या यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रवासी महिलाएं विभिन्न स्थानों पर मातृत्व लाभ प्राप्त कर सकें। एक राष्ट्रीय डेटाबेस ऐसे मुद्दों को हल करने में सहायता करेगा।
- उदाहरण: महाराष्ट्र की माइग्रेशन ट्रैकिंग सिस्टम (एमटीएस), जो महिलाओं एवं बच्चों पर केंद्रित है, को पांच जिलों में सफलतापूर्वक संचालित किया गया है। छत्तीसगढ़ की राज्य प्रवासी श्रमिक नीति प्रवासी श्रमिकों को स्रोत पर पंजीकृत करने तथा उन्हें फोन-आधारित पहुंच प्रणाली (आउटरीच सिस्टम) के माध्यम से ट्रैक करने पर आधारित है।
- केंद्र की सक्रिय भूमिका: सुस्पष्ट रूप से किंतु प्रकीर्ण प्रयोग के इस परिदृश्य में, प्रवासियों की आवश्यकताओं की अच्छी तरह से पूर्ति की जाएगी यदि केंद्र रणनीतिक नीति मार्गदर्शन एवं अंतर-राज्य समन्वय के लिए एक मंच प्रदान करके सक्रिय भूमिका निभाए।
- प्रवासी कामगारों पर नीति आयोग की प्रारूप नीति नीतिगत प्राथमिकताओं को स्पष्ट करने एवं उपयुक्त संस्थागत ढांचे का संकेत देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, और इसे शीघ्र जारी किया जाना चाहिए।
- प्रवासी कामगारों पर नीति आयोग की मसौदा नीति नीतिगत प्राथमिकताओं को स्पष्ट करने एवं उपयुक्त संस्थागत ढांचे का संकेत देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है एवं इसे यथाशीघ्र जारी किया जाना चाहिए।