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उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) की एनआईआरएफ की रैंकिंग – यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां एवं अंतः क्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं  कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

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एनआईआरएफ की उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) की रैंकिंग चर्चा में क्यों है?

  • हाल ही में जारी राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क/एनआईआरएफ) की उच्च शिक्षा संस्थानों (हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस/एचईआई) की रैंकिंग को शिक्षा के विभिन्न वर्गों से  अत्यधिक आलोचना प्राप्त हुई है।

 

एनआईआरएफ की उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) की रैंकिंग

  • एनआईआरएफ रैंकिंग के बारे में: राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) भारत में उच्च शिक्षा के संस्थानों को श्रेणीकृत करने के लिए शिक्षा मंत्रालय (तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्रालय) द्वारा 2015 में अपनाया गया एक ढांचा है।
  • रैंकिंग हेतु श्रेणियाँ: एनआईआरएफ 11 विभिन्न श्रेणियों के तहत उच्च शिक्षा संस्थानों को श्रेणीकृत (रैंक) करता है। प्रारंभ में, प्रथम एनआईआरएफ रैंकिंग 2016 में मात्र चार श्रेणियां थीं। 11 श्रेणियां हैं-
    • प्रबंधन
    • अभियांत्रिकी
    • विश्वविद्यालय
    • औषध विज्ञान (फार्मेसी)
    • वास्तुकला (आर्किटेक्चर)
    • चिकित्सा
    • दंत चिकित्सा
    • विधि
    • महाविद्यालय
    • शोध संस्थान
    • समग्र
  • एनआईआरएफ रैंकिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले मापदंड: उच्च शिक्षण संस्थानों का मूल्यांकन मंत्रालय द्वारा निम्नलिखित पांच मापदंडों पर किया जाता है-
    • शिक्षण, अधिगम एवं संसाधन (टीचिंग, लर्निंग एंड रिसोर्सेज/टीएलआर)
    • शोध एवं व्यावसायिक अभ्यास (रिसर्च एंड प्रोफेशनल प्रेक्टिस/आरपी)
    • स्नातक परिणाम (ग्रेजुएशन आउटकम्स/जीओ)
    •  पहुंच एवं समावेशिता (आउटरीच एंड इंक्लूजिविटी/OI)
    • सहकर्मी धारणा (पीयर परसेप्शन)

 

एनआईआरएफ इंडिया रैंकिंग 2022 के साथ संबद्ध चिंताएं

  • डेटा धोखाधड़ी: एनआईआरएफ के तहत विभिन्न विषयों में भाग लेने वाले कुछ बहु-विषयक निजी विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तुत डेटा का विश्लेषण डेटा धोखाधड़ी का साक्ष्य प्रदान करता है।
    • उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के एनआईआरएफ द्वारा सत्यापन की एक कठोर प्रणाली का अभाव प्रतीत होता है।
    • उदाहरण के लिए, शिक्षक-छात्र अनुपात (फैकल्टी- स्टूडेंट  रेशियो/एफएसआर) रैंकिंग के लिए एक महत्वपूर्ण मानदंड है।
    • साक्ष्य बताते हैं कि कुछ निजी बहु-विषयक विश्वविद्यालयों ने एक से अधिक विषयों में एक ही संकाय का दावा किया है।
    • एक बेहतर एफएसआर का दावा करने के लिए उदार कला में संकाय को विधि में संकाय के रूप में भी दावा किया गया है।
  • पारदर्शिता की कमी: एनआईआरएफ के लिए आवश्यक है कि इसमें जमा किए गए डेटा को सभी भाग लेने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए ताकि इस तरह के डेटा की जांच की जा सके।
    • कुछ निजी बहु-विषयक विश्वविद्यालयों ने अपनी वेबसाइट पर ऐसे डेटा तक मुक्त पहुंच प्रदान नहीं की है;  इसके स्थान पर, उन्हें एक्सेस चाहने वाले व्यक्ति के विवरण के साथ एक ऑनलाइन फॉर्म भरना होगा।
    • इस तरह की गैर-पारदर्शिता रैंकिंग अभ्यास के विपरीत है।
    • एनआईआरएफ को प्रस्तुत किए गए आंकड़ों एवं इन संस्थानों की वेबसाइटों पर मौजूद आंकड़ों में भी विसंगति है।
    • उदाहरण के लिए, वेबसाइटों पर अपलोड किए गए डेटा में संकाय की संख्या, नाम, योग्यता तथा अनुभव के विवरण सम्मिलित नहीं होते हैं।
  • नियोजित कार्यप्रणाली में अंतर: प्रत्यायन (मान्यता) उद्देश्यों एवं रैंकिंग उद्देश्यों के लिए नियोजित कार्यप्रणाली के मध्य एक अंतर है।
    • जबकि राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद यूजीसी-केयर सूचीबद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशनों को उचित महत्व देती है, एनआईआरएफ मात्र स्कोपस एवं वेब ऑफ साइंस से प्रकाशन डेटा का उपयोग करता है।

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निष्कर्ष

  • एनआईआरएफ में गंभीर कार्यप्रणाली एवं संरचनात्मक मुद्दे रैंकिंग प्रक्रिया को कमजोर करते हैं। सभी हितधारकों के परामर्श से कार्यप्रणाली को संशोधित किया जाना चाहिए।

 

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