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संपादकीय विश्लेषण- वास्तुकला हेतु सबसे उचित अवसर

वास्तुकला के लिए सबसे उचित अवसर- यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

  • जीएस पेपर 2: शासन, प्रशासन एवं चुनौतियां- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां  एवं अंतक्षेप तथा उनकी अभिकल्पना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

वास्तुकला हेतु सबसे उचित अवसर- राष्ट्रीय शैक्षिक नीति (एनईपी)

  • हाल के प्रलेख (दस्तावेज) इस बात का बोध कराते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी/एनईपी) व्यावसायिक शिक्षा में, विशेष रूप से वास्तुकला में किस प्रकार जारी होगी।

 

भारत में व्यावसायिक शिक्षा का प्रशासन

  • व्यावसायिक शिक्षा को एनईपी से बाहर रखना
    • अनेक वास्तुकारों का दृढ़ मत है कि व्यावसायिक शिक्षा पेशेवरों पर छोड़ दी जानी चाहिए।
    • उनका तर्क है कि व्यवसायी व्यावसायिक शिक्षा को बेहतर ढंग से संचालित कर सकते हैं, जैसा कि वे अब वास्तुकला परिषद (काउंसिल आफ आर्किटेक्चर/सीओए) के माध्यम से करते हैं।
    • वे मांग करते हैं कि एनईपी स्वयं को मानविकी, विज्ञान तक सीमित रखे तथा अधिक से अधिक इंजीनियरिंग को सम्मिलित करे।
  • व्यावसायिक शिक्षा को एनईपी के अंतर्गत रखना
    • एक अप्रेरक दृष्टिकोण, अपर्याप्त प्रशिक्षण, स्नातकों की निम्न रोजगार क्षमता तथा एक श्वासरोधी नियामक ढांचा इस विधा को कमजोर करता है।
    • यह एनईपी को इस व्यवस्था को व्यवस्थित करने हेतु एक आधार प्रदान करता है।

 

भारत में वास्तुकला शिक्षा

  • वास्तुकला को ‘तकनीकी शिक्षा’ के रूप में इंजीनियरिंग के साथ जोड़ा गया एवं शिक्षा मंत्रालय के अधीन लाया गया।
  • यह 1945 में स्थापित अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन/एआईसीटीई) के कार्य क्षेत्र के अंतर्गत आया था।
  • 1987 में जब एआईसीटीई को अपना वैधानिक आधार प्राप्त हुआ, तब तक 1972 में आर्किटेक्ट्स एक्ट लागू किया गया था तथा शिक्षा एक स्वतंत्र सीओए के दायरे में आ गई थी।
  • यद्यपि, इसने इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय में स्थानांतरित नहीं किया, जो कि अधिक पेशेवर रूप से संरेखित होता  जैसा विधि एवं चिकित्सा उनके संबंधित नोडल मंत्रालयों के साथ संरेखित हैं।

 

भारत में वास्तुकला शिक्षा के साथ संबद्ध सरोकार

  • कार्यक्रम की लंबी अवधि: जबकि डिजाइन एवं इंजीनियरिंग चार वर्ष के स्नातक कार्यक्रम हैं, वास्तुकला पांच वर्ष का कार्यक्रम है।
    • औचित्य यह रहा है कि एक लंबा तथा कठिन पाठ्यक्रम आवश्यक है क्योंकि संस्थान पेशे हेतु तत्पर छात्रों को प्रशिक्षित करते हैं।
  • अपर्याप्त उद्योग संपर्क: विनियम उद्योग संपर्कों का पर्याप्त रूप से समर्थन नहीं करते हैं। प्रयत्न करने वालों को भारी अतिरिक्त  व्यय करना पड़ता है। परिणाम स्वरूप, अनेक महाविद्यालयों में अपर्याप्त उद्भासन (एक्सपोजर) है।
  • विशेषज्ञता का अभाव: वास्तुकला विधा के विस्तार तथा बहु-विषयक बनने के बावजूद, शिक्षा विविध विशेषज्ञताओं के लिए निम्न अवसर प्रदान करती है तथा छात्रों को जटिल डिजाइन समस्याओं को हल करने हेतु तैयार नहीं करती है।

 

एनईपी वास्तु शिक्षा में प्रगतिशील पद्धतियों को किस प्रकार ला सकता है?

एनईपी की चार प्रमुख सिफारिशें पाठ्यक्रम को बदल सकती हैं-

  • एनईपी शिक्षा तथा पेशे के मध्य घनिष्ठ संबंध की आकांक्षा रखता है एवं सीओए जैसे पेशेवर निकायों को ऐसे मानकों को निर्धारित करने का निर्देश देता है जो शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगी।
    • इसका तात्पर्य है कि यद्यपि शिक्षा परिसर में प्रारंभ होती है, यह व्यवहार में परिपक्व होगी।
  • स्नातक पाठ्यक्रमों को उदार होना चाहिए, जिससे छात्रों को प्रशिक्षित किया जा सके तथा उनके रास्तों की पहचान करने में सहायता मिल सके।
  • वर्तमान मॉडल के विपरीत, जो केवल एक पेशेवर प्रशिक्षु को प्रशिक्षित करता है, एनईपी छात्रों को अभ्यास या शोध मार्ग लेने में सक्षम बनाता है।
    • यह विविध कार्यक्रमों एवं अनुसंधान प्रशिक्षण का समर्थन करने का मार्ग प्रशस्त करने हेतु बाध्य है।
  • संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान की जाएगी, जो उन्हें नियामक व्यवस्थाओं एवं उनके द्वारा संचालित किए जा रहे मानकीकृत कार्यक्रमों से सुरक्षित करेंगी।

आगे की राह- एनईपी की सिफारिशों को लागू करना

  • वास्तुकला कार्यक्रम का पुनर्गठन: तीन वर्षीय, उदार, विस्तृत आधार युक्त शिक्षा के रूप में स्नातक शिक्षा के पुनर्गठन के लिए एनईपी का मिशन वास्तुकला के लिए उपयुक्त भविष्य कथन करता है।
    • छोटे कार्यक्रम उद्योग/क्षेत्र-आधारित संगठनों में प्रशिक्षुओं के रूप में कार्य करने हेतु पर्याप्त क्षमता का निर्माण कर सकते हैं।
    • जब एक तथा दो वर्ष की विशेषज्ञता एवं इतने ही वर्षों के कार्य अनुभव के साथ जोड़ा जाता है, तो छात्र एक पेशेवर के रूप में बेहतर प्रशिक्षित होता है।
  • लचीलापन सुनिश्चित करना: कार्यक्रमों में अनेक प्रविष्टियाँ तथा निकास भी लचीलेपन में वृद्धि करते हैं।
    • तीन वर्ष के बाद शोध के लिए योग्यता रखने वाले छात्र दूसरा मार्ग अपना सकते हैं।
  • संस्थागत स्वायत्तता सुनिश्चित करें: इन सभी को एक वास्तविकता में परिवर्तित होने के लिए, संस्थानों को स्वायत्तता की आवश्यकता होती है जिसका वादा एनईपी द्वारा किया जाता है।
    • संपूर्ण विश्व में, पेशेवर निकाय पेशेवर मानकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं एवं शैक्षणिक संस्थानों को उद्देश्यों को पूर्ण करने हेतु अपने रचनात्मक तरीके निर्धारित करने देते हैं।
  • व्यक्तिगत विकास के लिए स्थान बनाना: वास्तुकला संस्थान कई विषयों के साथ सेमेस्टर पैक करते हैं। वे औसतन 55 घंटे कार्य सप्ताह से कहीं अधिक हैं एवं व्यक्तिगत विकास की खोज के लिए स्थान प्रदान  करने से इनकार करते हैं।
    • एनईपी एक विकल्प-आधारित 20-क्रेडिट-प्रति-सेमेस्टर वर्कलोड की सिफारिश करता है, जिससे छात्रों को तलाशने के लिए एक बेहतर स्थान प्राप्त होता है।
  • पर्याप्त फैकल्टी-छात्र अनुपात बनाए रखना: विजिटिंग फैकल्टी द्वारा आवश्यक 50% कर्मचारियों को भरने की अनुमति प्रदान कर, एनईपी अधिक पेशेवरों को शिक्षा प्रदान करने में सक्षम बनाता है।

 

निष्कर्ष

  • उपरोक्त सिफारिशों को परिवर्तनकारी परिवर्तनों में रूपांतरित करने हेतु, एनईपी को अपने वादे को निभाना होगा तथा वास्तुकारों को परिवर्तनों को अपनाना होगा।

 

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