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विद्यालय बंद होने के विनाशकारी प्रभाव: प्रासंगिकता
- जीएस 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास एवं प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।
विद्यालय बंद होने के विनाशकारी प्रभाव: संदर्भ
- कोविड-19 के नवीनतम संस्करण ओमिक्रोन ने एक बार पुणे लोगों के जीवन पर विराम लगा दिया है। रात्रि कर्फ्यू एवं सीमा जांच जैसे प्रतिबंध फिर से लगाए गए तथा लोग दो कारणों से इस कदम पर सवाल उठा रहे थे:
- ओमिक्रोन, यद्यपि अधिक संक्राम्य है,किंतु डेल्टा की तुलना में बहुत कम गंभीर है। ऐसे में ओमिक्रोन के प्रति असंगत अनुक्रिया पर सवाल उठाए गए।
- लोगों ने यह भी बताया कि जब प्रतिबंधों ने पहले वाले संस्करण को सीमित नहीं किया, तो वे अधिक संक्राम्य को सीमित नहीं करेंगे।
विद्यालय बंद होने के विनाशकारी प्रभाव: प्रमुख बिंदु
- कोविड-19 की दूसरी लहर के आघात से पूर्व, चतुर्दिक विशेषज्ञों ने सलाह दी कि विद्यालय बंद होने वाले सबसे अंतिम प्रतिष्ठान एवं सबसे पहले खुलने वाले होने चाहिए।
- सरकार ने इन सभी सलाहों की उपेक्षा कर दी एवं विद्यालयों को बंद कर दिया, इस प्रकार यह कुछ ऐसे देशों में सम्मिलित हो गया जिन्होंने यह कदम उठाया है।
- ओमिक्रोन की तेज लहर के बावजूद, अधिकांश अन्य देशों ने बच्चों के कल्याण को प्राथमिकता देते हुए, विद्यालयों को खुला रखा है।
विद्यालय बंद के विनाशकारी प्रभाव: निर्णय के पीछे तर्क
- विद्यालय बंद करने के लिए दिया गया प्राथमिक कारण बच्चों की सुरक्षा करना था।
- सरकार का विचार था कि बच्चे इस संक्रामक वायरस के प्रति अधिक संवेदनशील थे एवं उन्हें यथासंभव अलग-थलग रखा जाना चाहिए।
विद्यालय बंद होने के विनाशकारी प्रभाव: आलोचना
- आलोचकों ने बताया कि बच्चों की सुरक्षा के लिए विद्यालयों को बंद करना उतना ही निरर्थक है जितना कि बच्चों को कारों में यात्रा करने से रोकना।
- विद्यालयों के कोविड-19 हॉटस्पॉट के रूप में होने के वैज्ञानिक प्रमाण अत्यंत दुर्बल हैं। वास्तव में, अध्ययनों ने इसके विपरीत दिखाया है।
- उदाहरण के लिए, स्पेन में एक अध्ययन ने विद्यालयों में सभी उम्र के 1 मिलियन से अधिक बच्चों के डेटा का अवलोकन किया एवं पाया कि सभी विद्यालयी बच्चों के लिए आर-वैल्यू (वायरस के प्रसार की दर) एक से काफी कम है।
- इसके अलावा, कम उम्र के बच्चों के लिए आर-वैल्यू कम है, प्राथमिक कक्षा-पूर्व (प्री-प्राइमरी) बच्चों के लिए 2 जितना कम है।
- आलोचकों ने कहा है कि आंगनबाड़ियों एवं प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का कार्य अवैज्ञानिक है।
- अधिक से अधिक, स्वीडन ने 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए अपने विद्यालय कभी बंद नहीं किए तथा अन्य व्यवसायों की तुलना में शिक्षकों के लिए कोई अतिरिक्त जोखिम नहीं था।
- आलोचकों ने विद्यालयों के अति प्रसारक (सुपर-स्प्रेडर) होने पर भी आपत्ति जताई है, जब भारत में बैंकों, बाजारों, बसों सहित अन्य स्थानों पर काफी भीड़ भाड़ है।
- बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन: शिक्षा एक संवैधानिक अधिकार है। इतने दिनों तक विद्यालयों को बंद करके तथा ऑनलाइन शिक्षा का अपर्याप्त विकल्प देकर हमने बच्चों के अधिकारों का हनन किया है।
विद्यालय बंद होने के परिणाम
- ऑनलाइन शिक्षा: सितंबर 2021 की एक विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव की सीमा को दर्शाती है। बच्चों के पढ़ने एवं लिखने के स्तर में गिरावट आई है, जिनमें से लगभग आधे बच्चे कुछेक शब्दों से अधिक पढ़ने में असमर्थ हैं। उनमें से एक तिहाई से ज्यादा पढ़ाई नहीं कर रहे थे।
- मानसिक स्वास्थ्य: अमेरिका एवं ब्रिटेन दोनों ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को एक प्रमुख मुद्दा माना है, इस तथ्य के बावजूद कि इन स्थानों पर विद्यालय बंद होने की अवधि भारत की तुलना में बहुत कम अवधि के लिए थी।
- कुपोषण: विद्यालय बंद होने का अर्थ है कि अब बच्चों को मध्याह्न भोजन नहीं दिया जाता था। इससे दूरदराज के इलाकों में कुपोषण में वृद्धि हुई है।
- बाल श्रम: विद्यालयों के बंद होने की अवधि के विस्तार के कारण, बच्चे बाल श्रम में वापस चले गए तथा बाल श्रम के गंभीर द्वेष के प्रति दशकों की प्रगति उलट गई है।
विद्यालय बंद होने के विनाशकारी प्रभाव: आगे की राह
- बच्चों को अनावश्यक रूप से बहुत लंबे समय तक तर्कहीन एवं असंगत प्रतिबंधों तथा विद्यालय बंद होने का सामना करना पड़ा है।
- अच्छा विद्यालयी जीवन तथा खुशहाल बचपन सहित सभी संदर्भों को बच्चों के लिए 2022 को सामान्य बनाया जाना चाहिए।